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मंगलवार, 17 जुलाई 2012

गुवाहाटी की अनाम लड़की के नाम : ब्रह्मपुत्र रो रही है !!! विजय कुमार सपत्ति

गुवाहाटी की अनाम लड़की के नाम : 

ब्रह्मपुत्र रो रही है  !!!

 

विजय कुमार सपत्ति
*

भाग एक :

हे बाला [श्री भूपेन हजारिका अक्सर उत्तर-पश्चिम  की लडकियों को बाला कहते थे]; तो हे बाला! हमें माफ़ करना, क्योंकि इस बार हम तुम्हारे लिये किसी कृष्ण को इस बार  धरती पर अवतरित नहीं कर सके.असच यह है कि कृष्ण भी हम से डर गए है. उनका कहना है कि वो दैत्य से लड़ सकते है, देवताओं से लड़ सकते है;जानवरों से लड़ सकते है; लेकिन इस आदमी का क्या करें......!!! वे जान गये हैं कि हम आदमी इस जगत के सबसे बुरी कौम है. न हमारा नाश होंगा और न ही हम आदमियों का नाश होने देंगे. कृष्ण चाहते थे कि वहाँ कोई आदमी कृष्ण बन जाए. लेकिन वे भूल गये, धोखे में आ गये. वहाँ हर कोई सिर्फ और सिर्फ आदमी ही था सिर्फ दु:शासन ही बनना चाहता था. कोई भी कृष्ण नहीं बनना चाहता था. सच यह है कि  अब कृष्ण कालबाह्य हो गये है. वहाँ उन लडको में सिर्फ आदमी ही था. वहाँ जो भीड़ खड़ी होकर तमाशा देख रही थी, वो भी आदमियों से ही भरी हुई थी. हे बाला! हमें माफ़ करना. क्योंकि  हम आदमी बस गोश्त को ही देखते है, हमें उस गोश्त में हमारी बेटी, बहन या हमारी कोई अपनी ही सगी औरत नज़र नहीं आती है.

भाग दो :

दोष किसका है? मीडिया का... जो आये दिन अपने चैनेल्स पर दुनिया की गंदगी परोसकर युवा-मन को उकसाती  है  या इस सूचना क्रांति का जिसका दुरूपयोग होता है और युवा मन बहकते रहता हैं या हमारे गुम होते संस्कारों का जो हमें स्त्रियों का आदर करना सिखाते थे  या हम माता-पिता का जो कि अपने बच्चो को ठीक शिक्षा नहीं  दे पा रहे हैं  या युवाओं का जो अब स्त्रियों को सिर्फ एक  भोग की वस्तु ही समझ रहे हैं.  टी.वी. में आये दिन वो सारे विज्ञापन क्या युवाओं को और उनके मन को नहीं उकसाते होंगे? फिल्मों में औरतों का चरित्र जिन तरीकों से, जिन कपड़ो में दर्शाया जा रहा है क्या वह इस युवा पीढ़ी को  इस अपराध के लिये नहीं उकसाते होंगे? कहाँ गलत हो रहा है? किस बात की कुंठा है? तन का महत्व कैसे हमारे युवाओं के मन में गलत जगह बना रहा है?  माता-पिता का दोष इन युवाओ से कम नहीं? क्यों उन्होंने इतनी छूट दे रखी है. कुछ तो गलत हो रहा है, हमारी सम्पूर्ण सोच में. अब  हम सभी को एक मज़बूत सोच और पुनर्विचार की जरुरत है.

भाग तीन :

तो बाला, हमें इससे क्या लेना-देना कि अब सारा जीवन तुम्हारे मन में हम आदमियों को लेकर किस तरह की सोच उभरे, कि तुम सोचो कि आदमी से बेहतर तो जानवर ही होते होंगे. हमें इससे क्या लेना-देना कि तुम्हारे घरवालों  पर इस बात का क्या असर होगा? हमें इससे क्या लेना-देना कि तुम्हारी माँ कितने आंसू रोयेंगी? हमें इससे भी क्या लेना- देना कि तुम्हारे पिता या भाई  को हम आदमी और हम आदमियों की कुछ  औरतें पीठ पीछे कहा करेंगी कि ये उस लड़की के पिता या भाई हैं. हमें इस बात से क्या लेना-देना  कि अगर तुम्हारी कोई छोटी  बहन हो तो हम आदमी उसे भी सहज उपलब्ध समझेंगे. इससे भी क्या लेना-देना कि अब तुम्हारी ज़िन्दगी नरक बन गयी है और जीवन भर अपने मरने तक तुम इस घटना को नहीं भुला पाओगी और कि अब इस ज़िन्दगी में कोई भी पुरुष अगर तुम्हे प्रेम से भी छुए तो तुम सिहर-सिहर जाओगी और अंत यह भी कि तुम यह सब कुछ सहन नहीं कर पाओ और आत्महत्या ही कर लो. हमें क्या करना है बेटी? हम आदमी हैं. ये हमारा ही समाज है.

भाग चार :
 
चंद आदमी कहेंगे कि उस लड़की को इतनी रात को उस पब में क्या करना था? क्या यह उस लड़की की गलती नहीं है?, कि आजकल लडकियां  भी तो कम नहीं है, कि उस लड़की ने उत्तेजक पोषाक पहन रखी थी. लडकियाँ अपने वस्त्रों और बातों से लडकों/आदमियों [?] को उकसाती हैं . चंद आदमी यह भी कहेंगे कि उस लड़की के माँ-बाप को समझ नहीं है क्या जो इतनी रात को उसे पब भेज रहे हैं, वह भी ११ वीं पढनेवाली लड़की को. चंद आदमी यह  भी कहेंगे कि उस लड़की का चरित्र ठीक नहीं होगा या कि देश सिर्फ ऐसी लडकियों और औरतो की वजह से ही ख़राब हो रहा है. मतलब यह कि ये चंद आदमी पूरी तरह से सारा दोष उस लड़की पर ही डाल देंगे. ये चंद आदमी यह भी नहीं सोचेंगे कि उत्तर-पश्चिम हमारे देश का सबसे अधिक प्रगतिशील राज्य है और वहाँ ज्यादा लिंग पूर्वाग्रह   की घटनाएं नहीं होती हैं. [सिवाय इसके जब हमारी तथाकथित सेना के चंद जवान वहाँ की औरतों का जब-तब  दोहन करते रहते हैं] और अब ये चंद आदमी इस देश में तय करेंगे कि औरतें ख़राब होती  हैं.

भाग पाँच  :

हे बाला! हम सब का क्या? हम थोड़ा लिखना-पढना जानते हैं  इसीलिए हम थोड़ा लिख/ पढ़/ बोलकर अपना गुस्सा जाहिर करते हैं. उस तरह के लिखने-पढने-बोलनेवाले अब नहीं रह गये है जिनके कहे से क्रान्ति आ जाती थी... और न ही उनकी बातों को सुनकर जोश में कुछ करनेवाले बन्दे रह गये हैं. तुम समझ लो कि हम सबका खून ठंडा हो चला है. और... और... हम एक तरह से नपुंसक ही हैं. हाँ, हमें दुःख है कि तुम्हारे साथ यह हुआ. ये तुम्हारे साथ तो क्या, किसी के भी साथ नहीं होना था. हमें दुःख है कि आदमी नाम से तुम्हारा परिचय इस तरह से हुआ है. लेकिन हम यह भी कहना चाहते हैं कि सारे आदमी ख़राब भी नहीं होते, जिस पत्रकार  ने हम तक यह खबर पहुंचाई वह भी एक भला आदमी ही है. बेटी! तुम इतनी सी बात याद रखो  कि ये बातें भी एक आदमी ही लिख  रहा है. ईश्वर तुम्हे मन की शान्ति दे.  हाँ, एक बात और मुझे नहीं पता कि यह समाज कब बदलेंगा लेकिन मैं एक बात तुमसे और सारी औरतों से कहना चाहता हूँ कि " अबला तेरी यही कहानी, आँचल में है दूध और  आँखों में पानी" वाली स्त्रियों का ज़माना नहीं रहा. समाज ऐसे ही घृणित जानवरों से भरा पड़ा है. इनसे तुन्हें और सभी स्त्रियों को खुद ही लड़ना होंगा... खुद को तैयार करो और इतनी सक्षम बनो कि हर मुसीबत का सामना कर सको. ईश्वर से प्रार्थना है कि तुम्हें जीवन में कोई ऐसा आदमी जरूर दे जो तुम्हारे मन से आदमी के नाम पर बैठ गए डर को ख़त्म कर सके, उसे जड़ से निकाल दे.  आमीन !!

भाग छह :

ब्रह्मपुत्र की लहरों को सबसे ज्यादा गुस्सैल और उफनती कहा गया है. आज ब्रम्हपुत्र जरूर रो रही होगी कि वह एक नदी है और उसीकी धरती पर उसीकी एक बच्ची के साथ  ऐसा घृणित कार्य हुआ. हे ब्रम्हपुत्र! मैं सारे आदमियों की तरफ से तुमसे माफ़ी माँगता हूँ.  इतना ही मेरे बस में है और यह भी कि मैं एक कोशिश करूँ कि  अपने आसपास के समाज को दोबारा ऐसा करने से रोकूँ और अपने दूसरे सारे बच्चो को बताऊँ कि औरत एक माँ होती है और उन्हें जन्म देनेवाली भी एक औरत ही है यह भी कि मैं उन सभी को  औरत की इज्जत  करना सिखाऊँ (और यह कि मैं ऐसी दुर्घटना का शिकार हुई किसी लडकी को अपनी पुत्रवधू बनाने से मन ना करूँ). हे ब्रम्हपुत्र! मुझे इतनी शक्ति जरूर देना कि मैं यह कर सकूँ.

भाग सात :  एक कविता

:
दुनिया की उन  तमाम औरतो के नाम, उन आदमियों  कि तरफ से जो ये सोचते हैं कि  औरतों का  बदन उनके जिस्म से ज्यादा नहीं होता है:
 
जानवर

अक्सर शहर के जंगलों में;
मुझे जानवर नज़र आतें है!
आदमी की शक्ल में,
घूमते हुए;
शिकार को ढूंढते हुए;
और झपटते हुए...
फिर नोचते हुए...
और खाते हुए !

और फिर
एक और शिकार के तलाश में,
भटकते हुए..!

और क्या कहूँ,
जो जंगल के जानवर है;वे परेशान है!
हैरान है!!
आदमी की भूख को देखकर!!!

मुझसे कह रहे थे..
तुम आदमियों  से तो 
हम जानवर अच्छे !
हम कभी, किसीसे 
बलात्कार नहीं करते!!

उन जानवरों के सामने;
मैं निशब्द था,
क्योंकि;
मैं भी एक आदमी  था!!!

*****
 - vksappatti@gmail.com 

3 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

सटीक प्रस्‍तुति ..

समग्र गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

vicharvimarsh


आ० विजय कुमार सप्पाती जी , तथा मान्यवर अन्य सदस्य ,
गुवाहाटी की घटना पर आपके संवेदनशील और प्रभावशाली उदगार
सराहनीय हैं | मैं समझता हूँ कि सारा दोष आदमी का नारी के प्रति विकृत
विचारधारा का है जिस पर कोई प्रभावी अंकुश नहीं लग पा रहा है | नारी
की स्वछंदता का लाभ और उपयोग स्थानीय समाज के मनोविज्ञान पर भी
निर्भर करता है | इस घटना को मैं भी टीवी पर देखता रहा हूँ कि किस प्रकार
वहाँ उपस्थित भीड़ मूक दर्शक रही | टीवी चैनेल ने इस घटना की VDO बना
कर दर्शको को आकृष्ट करने वाला कुत्सित दृश्य फिल्माया | पकडे गये अपराधियों
के चहरे किसी लफंगे से साफ़ नज़र आये | समय यदि मैं गलती नहीं कर रहा तो
रात ग्यारह बजे किसी पब के सामने का है जिससे वह लडकी निकलकर वापस
जा रही थी | आसाम या सभी पूर्वोत्तर प्रदेशों के समाज में नारी के प्रति आदर भाव
व सम्मान है | बल्कि उससे मिले मणिपुर आदि को तो नारी प्रधान देश कहा जाता है |
इस परिदृश्य की समग्रता में कुछ विचारणीय प्रश्न मेरे मन में उठ खड़े हुए हैं जिनका
कोई विश्वस्त और समुचित उत्तर मुझे नहीं मिल रहा है मैं वे प्रश्न उनसे पैदा हुए
निष्कर्ष आप और मंच के गंभीर चिंतकों के समक्ष रख कर समाधान पाने की आशा
करता हूँ |
१- रात ग्यारवीं क्लास की छात्रा का बदनाम पब में अकेले आना जाना और रात 11
बजे अकेली बाहर निकलना क्या उसके आचरण पर प्रश्न चिन्ह नहीं लगाता ? छात्रा
के मातापिता गार्जियन को लडकी के अकेले पब आने जाने का पाता था क्या और
क्या इस पर उनकी रजामंदी थी ?

२- शायद उस छात्रा का पहलीबार पब जाने का वाकया नहीं | वह अक्सर जाती होगी और
अराजक तत्वों की उस पर नज़र रही होगी तभी सबकी मिलीभागति से यह घटना सोचे समझे
ढंग से की गई होगी |

3- किसी चैनेल के छायाकार का वहाँ उपस्थित होना और उस लड़की को नायिका बना कर
दृश्य दोहराते शूटिंग के समान फिल्माने का कार्य उपस्थित भीड़ के साथ करना तथा लडकी
की इस दृश्यांकन की अनुमति कुछ अलग कहानी कहते हैं |

४ - इस बीच पुलिस अवश्य वहाँ पहुँच चुकी होगी आपराधियो को पकड़ने के बजाय उसका भी
मूक दर्शक बना रहना औएर चुचाप शूटिंग देखना गले नहीं उतरता |

यह पूरी घटना अनेक प्रश्न उठा रही है | कुछ कड़े कदम उठाये गये हैं अपराधी पकडे गये हैं
SHRC भी हरकत में है और पूरी घटना पर तफ्तीश भी की जारही है | जब तक उक्त प्रश्नों का
समाधान न हो तबतक कामख्या नगरी कि पवित्र ब्रम्हपुत्र को रुलाना मेरी समझ से जल्दबाजी है |
कोरी भावुकता वश समस्त पुरुष समाज को नपुंसक या दोषी मान लेना शायद जल्द- बाजी होगी |

कमल

deepti gupta ने कहा…

आदरणीय विजय जी,

आपकी कलम को, नारी के प्रति आपकी सम्मान भावना और गहरी सोच को, आपके संवेदनशील ह्रदय को, आपकी निश्छल अभिव्यक्ति को, आपकी चिंतनशीलता को, आपके तरह-तरह के अनुमान को, आपकी विनम्रता और कोमल भावों को सलाम ...!

आपके उद्गारों के लिए, आपकी जितनी भी सराहना की जाए कम है !

इस दुखद वाकये का सुखद पहलू यह है कि इस घटना से सारा देश आंदोलित हुआ, महिला आयोग और आसाम सरकार सक्रिय हो उठी... ! जिससे वे एक दर्जन दैत्य शीघ्रता से पकडे गए और उनके चेहरे सारी दुनिया की नज़र में आए (शायद एक की खोज जारी है) !
हम अपराधियों को मात्र धिक्कारने में ही नहीं वरन, पूरी तरह दण्डित करने में विश्वास करते हैं जिससे वे भी उस दर्द से गुज़रे, जो उन्होंने किसी को दिया ! हम यह देख कर आश्वस्त है की उन ज़ालिम अपराधियों को बकायदा सज़ा देने की तैयारी हो रही है ! हमारा सोचना है कि सज़ा के बाद उनकी काउंसलिंग होनी चाहिए, जिससे उन्हें दिल की गहराईयों से अपने अपराध का, अमानुषिक गलती का एहसास हो और वे आने वाले समय में अच्छे इंसान बने ! क्योंकि अपराधी कई बार बहुत अच्छे इंसान बनते देखे गए हैं ! सारी युवा पीढ़ी को शिद्दत से ऐसी घटनाओं से अपने को आंकना चाहिए ! लडके-लडकियाँ सभी को समझदारी से माध्यम मार्ग अपनाना चाहिए ! 'अति सर्वत्र वर्जयेत....! 'हँसाना, गाना, नाचना, उत्सव मनाना सब होना चाहिए लेकिन होश खोए बिना ..........! साथ ही बच्चों के माता-पिता को भी किसी न किसी तरह बच्चों को समय - समय पर उनके शुभ चिन्तक होने के नाते; हिदायते देते रहना चाहिए ! ऐसा करना समाज हित और देश हित में अपेक्षित है ! यह एक Team Work है , मात्र समाज सेवी संगठनॉ, पुलिस , महिला आयोग या सरकार के दखल देने से इच्छित परिणाम मिलने वाले नहीं - ऐसे में, जो सुधार सामने आएगे, वे कुछ समय के लिए यानी अस्थायी होंगे ! सबको अपने अपने स्तर पर एकजुट होना पडेगा - तभी युवा पीढ़ी सधेगी ! सुधार शब्द भूल कर, हमें उन्हें साधने की कोशिश करनी चाहिए !

विजय जी आपके लिखे को पुन: नमन !

सादर,
दीप्ति