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शनिवार, 7 जुलाई 2012

लोकगीत:: बनरा मोरा ब्याहन आया .....!! अनुपमा त्रिपाठी

लोकगीत::

बनरा मोरा ब्याहन आया .....!! 

अनुपमा त्रिपाठी

री सखी ...
देख न ..
सुहाग के बादल छाये ....
उमड़ घुमड़ घिर आये ...
सरित मन तरंग उठे....
हुलसाये ...!!


झड़ी सावन की लागि ...
माथे लड़ियन झड़ियन  बुंदियन सेहरा ...
गले मुतियन बुंदियन हार पहन .....
बनरा मोरा ब्याहन आया ...!


मन उमंग लाया ....
जिया हरषाया ...
सलोना सजन 
धर रूप सावन आया ....!!
धरा पलक पुलक छाया ..
हिरदय हर्षाया ....!!
बनरा मोरा ब्याहन आया ....!



संगीत मे बंदिशों के बोल इसी प्रकार के होते है .......जिनका अर्थ शाब्दिक न लेकर उनकी अनुभुती से लिया जाता है ............बनरा की प्रतीक्षा कर रही बनरी ....या वर्षा की प्रतीक्षा कर रही धरा .....या राग के सधने की प्रतीक्षा कर रहा है मन ....या ...कविता के और निखरने की प्रतीक्षा कर रहा है कवि ....या ....अरे अब इस अनुभुति मे ना जाने क्या क्या जुड़ जाये .....
यही अनुभुति .....यही स्पंदन तो संचार है जीवन का .....


 

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