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रविवार, 8 जुलाई 2012

कविता:: आज़ादी के दीवानों जैसा --गुलाम कुन्दनम

कविता::
आज़ादी के दीवानों जैसा
गुलाम कुन्दनम 
आज़ादी के दीवानों जैसा...
हमारे ही प्रतिनिधि
हमें आँख दिखाते हैं.
जनता की एकता देख
अब सांसद भय खाते हैं.

संसद चल रहा हो तो
जनता घर में रहेगी?
भ्रष्टाचार और महंगाई,
घुट घुट कर सहेगी?

भ्रष्टों के भय से
कब तक भागेंगे.
उदासीनता की तन्द्रा
से कब हम जागेंगे.

सबको इस बार सड़क
पर आना होगा.
आज़ादी के दीवानों जैसा
जेल भी जाना होगा. ........

.... आज़ादी के दीवानों जैसा
जेल भी जाना होगा. .......

Jai Anna….. Jai Awam..…
Jai Janta.....Jai Janlokpal...
ॐ . ੴ . اللّٰه . † …….
Om.Onkar. Allâh.God…..
Jai Hind! Jai Jagat (Universe)!

(सम्पूर्ण व्यवस्था परिवर्तन :- दल विहीन लोकतंत्र की स्थापना , लाभ रहित विशुद्ध समाज सेवा वाली राजनैतिक व्यवस्था, वर्ग विहीन समाज की स्थापना, सबके लिए समान और निःशुल्क शिक्षा व्यवस्था, गरीबी उन्मूलन कोष की स्थापना [धर्म स्थलों की आमदनी भी इसी कोष में जमा हो], जनलोकपाल, चुनाव सुधार तथा काला धन को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करने जैसे क़ानून, सभी करों को समाप्त कर एक समान कर प्रणाली ट्रांजेक्सन टैक्स लगाना, सभी तरह के लेन-देन बैंक, चेक या मोबाइल के द्वारा किया जाना सुनिश्चित करना, बड़े नोटों का प्रचलन बंद करना....सरकार के निर्णयों में जनता की प्रत्यक्ष भागीदारी... ग्राम स्वराज और मोहल्ला स्वराज की स्थापना ... ये सब कुछ नए और विचाराधीन समाधान हैं .....जो भारत और भारत के लोगों को संच्चाई, ईमानदारी और मानवता पर आधारित एक नए युग में ले जायेंगे.)


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