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मंगलवार, 24 जुलाई 2012

गीत: साँसों की खिड़की पर... संजीव 'सलिल'


गीत: 

साँसों की खिड़की पर... 

संजीव 'सलिल'


 
 
 
 
*
साँसों की खिड़की पर बैठी, अलस्सुबह की किरण सरीखी 
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

 

सत्य जानकर नहीं मानता, उहापोह में मन जी लेता
अमिय चाहता नहीं मिले तो, खूं के आँसू ही पी लेता..
अलकापुरी न जा पायेगा, मेघदूत यह ज्ञात किन्तु नित-
भेजे पाती अमर प्रेम की, उफ़ न करे लब भी सी लेता..
सुधियों के दर्पण में देखा चाह चदरिया बिछी धुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...



ढाई आखर पढ़ा न जिसने, कैसे बाँचे-समझे गीता?
भरा नहीं आकंठ सोम से, जो वह चषक जानिए रीता.
मीठापन क्या होता? कैसे जान सकेगी रसना यदि वह-
चखे न कडुआ तिक्त चरपरा, स्वाद कसैला फीका तीता..
मनमानी कुछ करी नहीं तो, तन का वाहक आत्म कुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...



कनकाभित सिकता कण दिखते, सलिल-धार पर पड़ी किरण से.
तम होते खो देते निज छवि, ज्यों तन माटी बने मरण से..
प्रस्तर प्रस्तर ही रहता है, तम हो या प्रकाश जीवन में-
चोटें सह बन देव तारता, चोटक को निज पग-रज-कण से..
माया-छाया हर काया में, हो अभिन्न रच-बसी-घुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...



श्वास चषक से आस सुधा का, पान किया जिसने वह जीता.
जो शरमाया हो अतृप्त वह, मरघट पहुँचा रीता-रीता..
जिया आज में भी कल जिसने, वह त्रिकालदर्शी सच जाने-
गत-आगत शत बार हुआ है, आगत होता पल हर बीता..
लाख़ करे तू बंद तिजोरी, रम्य रमा हो चपल डुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...



देह देह से मिल विदेह हो, हो अगेह जो मिले गेह हो.
तृप्ति मिले जब तुहिन बिंदु से, एकाकारित मृदुल मेह हो..
रूपाकार न जब मन मोहे, निराकार तब 'सलिल' मोहता-
विमल वर्मदा, धवल धर्मदा, नवल नर्मदा अमित नेह हो..
नयन मूँद मत पगले पहले, देख कि मूरत-छवि उजली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...



******
Acharya Sanjiv verma 'Salil'

http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



13 टिप्‍पणियां:

Pranava Bharti ✆ ने कहा…

Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


वाह आचार्य जी
इस प्रभातकाल में
आपको शत-शत प्रणाम

साँसों की खिड़की पर बैठी ,रात सदा करती है खट-खट
और पूछती रहती मुझसे कितना रीता तेरा पनघट ?
जीवन भर ही चेताती है ,नींद कहाँ हम ले पाते हैं
और शब्द कुछ गडमड होकर कितने प्रश्न बना जाते हैं!
'आसों'की चिड़िया की चह -चह हमको जगा जगा जाती है
हुए पुराने वस्त्र तुम्हारे ,कहकर कुछ सिखला जाती है
'जाग प्रणव अब आ मिल मुझमें' चिड़िया चूँ चूँ करती कहती
स्नेह बाँट ले सबमें तू अब, हुई भोर अब उठ जा पगली ||

सादर ,सस्नेह
सबका

deepti gupta ✆ ने कहा…

drdeepti25@yahoo.co.in द्वारा yahoogroups.com kavyadhara


आदरणीय संजीव जी,

निशब्द हूँ आपकी अद्भुत रचना पढ़कर!
शत-शत साधुवाद .....

सादर,
दीप्ति

saurabh pande ने कहा…

Saurabh Pandey

भाव पूरित उकीर्ण पंक्तियाँ, शब्दांकन उत्साह भरा है

गीत सजाये मनस-द्वार को, हृदय देहरी भली खुली है

इस भावपूर्ण रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें,

आदरणीय सलिलजी.

SURENDRA KUMAR SHUKLA 'BHRAMAR' ने कहा…

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR

श्वास चषक से आस सुधा का, पान किया जिसने वह जीता.
जो शरमाया हो अतृप्त वह, मरघट पहुँचा रीता-रीता..
जिया आज में भी कल जिसने, वह त्रिकालदर्शी सच जाने-
गत-आगत शत बार हुआ है, आगत होता पल हर बीता..
लाख़ करे तू बंद तिजोरी, रम्य रमा हो चपल डुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

आदरणीय सलिल जी अभिवादन ..रस बरसाती ..मन को छूती हुयी रचना ..गहन भाव सुन्दर सन्देश ...बधाई
भ्रमर ५

ganesh ji bagee ने कहा…

Ganesh Jee "Bagi"

मीठापन क्या होता? कैसे जान सकेगी रसना यदि वह-
चखे न कडुआ तिक्त चरपरा, स्वाद कसैला फीका तीता..

इस भाव पूर्ण एवं अर्थ प्रधान गीत हेतु बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें आचार्यवर,

sandeep kumar patel ने कहा…

SANDEEP KUMAR PATEL

बहुत सुन्दर सर जी
क्या ही सुन्दर गीत वाह वाह
भावों को सुन्दर पिरोया है
वाह के अतिरिक कुछ और कहना कठिन ही है मेरे लिए
बधाई हो आपको

arun sharma 'anant' ने कहा…

अरुन शर्मा "अनन्त"

आदरणीय आपकी रचना ने मन मोह लिया

Albela Khatri ने कहा…

Albela Khatri

प्रणाम गुरूवर प्रणाम
क्या कहने.......
भीतर तक भर दिया काव्यानंद
__जय हो

सुधियों के दर्पण में देखा चाह चदरिया बिछी धुली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

___इन पंक्तियों पर बलिहारी.........
सादर

UMASHANKER MISHRA ने कहा…

UMASHANKER MISHRA

देह देह से मिल विदेह हो, हो अगेह जो मिले गेह हो.
तृप्ति मिले जब तुहिन बिंदु से, एकाकारित मृदुल मेह हो..
रूपाकार न जब मन मोहे, निराकार तब 'सलिल' मोहता-
विमल वर्मदा, धवल धर्मदा, नवल नर्मदा अमित नेह हो..
नयन मूँद मत पगले पहले, देख कि मूरत-छवि उजली है...
आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है...

आत्मा में प्रवेश कर गई ये लाईन... सम्पूर्ण गीत मन भावन है आदरणीय सलिल जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने इतनी सुन्दर उम्दा रचना पढने का सौभाग्य हमें प्रदान किया ..पुनः आभार

ambarish Srivastava ने कहा…

ambarish Srivastava

ब्रह्मसृष्टि का सार समाहित, सम्मुख विष्णु अलौकिक माया.

गीत आपका सरस्वती सा, इसमें जीवन सिंधु समाया..

निर्मल तन मन ज्ञान गंग से, प्रेषित करता हृदय बधाई-

स्वीकारें यह काव्य सुमन प्रभु, रूप आपका यह मन भाया..

खेतों में अब छंद उगेंगें, प्रखर शिल्प की धूप खिली है

आसों की चिड़िया का कलरव, सुनकर गहरी नींद खुली है... सादर

sn Sharma ने कहा…

sn Sharma
आ० आचार्य जी ,
" साँसों की खिड़की पर " रचना बेमिसाल है | मैंने उसका प्रिंट निकाल कर कई बार पढ़ा
और हर बार उसका शिल्प,और कल्पना मुग्धतर करती गई | आज सुबह भी उसकी गूँज
मस्तिस्क में समाई रही और उसकी छाया में चन्द पंक्तिया उतर आईं जिन्हें आज प्रकाशित करूंगा |
एक शब्द " आसों " आपने किस अर्थ में प्रयोग किया है | dilect में आसों अर्थ कुछ ' इसबार' जैसा होता
है | कृपया इसका समाधान कीजिये ,आभारी रहूँगा |
सादर
कमल

salil ने कहा…

आदरणीय आपका आशीष मिलना मेरा सौभाग्य है. 'आस' का बहुवचन 'आसों' इस अर्थ में ही प्रयोग किया है. आपका बताया अर्थ भी सटीक बैठता है.

Mukesh Srivastava ✆ kavyadhara ने कहा…

Mukesh Srivastava ✆ kavyadhara


आचार्य जी -

नमन !नमन ! नमन
एक और सुन्दर - ज्ञानवर्धक और अद्भुत रचना के लिए
मुकेश इलाहाबादी