बाल कविता - फैशन
-सन्तोष कुमार सिंह, मथुरा
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-सन्तोष कुमार सिंह, मथुरा
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देख-देख रोजाना टी०वी०,
फैशन का चढ़ गया बुखार।
कपड़े, गहने, सेंडल लेने,
बिल्ली पहुँची बिग बाजार।।
फैशन का चढ़ गया बुखार।
कपड़े, गहने, सेंडल लेने,
बिल्ली पहुँची बिग बाजार।।
स्लीव लैस दो सूट खरीदे,
ऊँची ऐड़ी के सेंडल।
भरि-भरि हाथ खरीदी चूड़ीं,
और गले का इक पेंडल।।
ऊँची ऐड़ी के सेंडल।
भरि-भरि हाथ खरीदी चूड़ीं,
और गले का इक पेंडल।।
पहना सूट, पहन कर सेंडल,
भागी चूहे के पीछे।
सेंडल फिसल गया सीढ़ी पर,
बिल्ली गिरी धम्म नीचे।।
भागी चूहे के पीछे।
सेंडल फिसल गया सीढ़ी पर,
बिल्ली गिरी धम्म नीचे।।
फैशन की मारी बिल्ली की,
किस्मत उस दिन फूट गई।
चूहा छूटा, सिर भी फूटा,
एक टाँग भी टूट गई।।
किस्मत उस दिन फूट गई।
चूहा छूटा, सिर भी फूटा,
एक टाँग भी टूट गई।।
कष्ट देख कर उस बिल्ली का,
बात समझ में यह आई।
कभी-कभी ज्यादा फैशन भी,
बात समझ में यह आई।
कभी-कभी ज्यादा फैशन भी,
बच्चो बनती दुःखदाई।।
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