मुक्तक:
एक दिल...
संजीव 'सलिल'
*

*
एक दिल अरमान सौ हैं.
गगन एक उड़ान सौ हैं..
नास्तिकता बढ़ी इतनी-
भक्त कम भगवान सौ हैं..
*
जो दिल के मेहमान बन गये.
हम उनके दरबान बन अगये..
दिल के तार छेड़ने बैठे-
दिल-दिलवर सुर-तान बन गये..
*
दिल-बगिया में दिलवर फूल.
दिवस विरह के चुभते शूल..
महका महुआ मदिर मिलन-
सब दुनिया को जाओ भूल..
*
कभी है सीता, कभी है राम.
कभी है राधा, कभी है श्याम..
दिल की दुनिया का दस्तूर-
भुला नाम दिल वरे अनाम..
*
दर्दे-दिल को मौन हो पीना सीखो.
मरदे-दिल हो दुनिया में जीना सीखो..
जान को जान पर निसार करो-
परदे-दिल होकर 'सलिल' जीना सीखो..
*
दिल में दिलदार को इस तरह बसाया जाए.
दिल को दिलदार का मंदिर ही बनाया जाये..
दिल को दिल दे जो सदा, भूल न पाये दिलवर-
दिलरुबा दिल का 'सलिल' ऐसे बजाया जाए..
*
दिल लगी चुभती बहुत है, दिल्लगी मत कीजिये.
दिल लगी दिल से लगाकर, बन्दगी हँस कीजिये..
दर्दे-दिल दिल में छिपाकर, हर्षे-दिल करिए बयां-
फख्रे-दिल दिलवर के बनकर, स्वर्ग सा सुख लीजिये..
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एक दिल...
संजीव 'सलिल'
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एक दिल अरमान सौ हैं.
गगन एक उड़ान सौ हैं..
नास्तिकता बढ़ी इतनी-
भक्त कम भगवान सौ हैं..
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जो दिल के मेहमान बन गये.
हम उनके दरबान बन अगये..
दिल के तार छेड़ने बैठे-
दिल-दिलवर सुर-तान बन गये..
*
दिल-बगिया में दिलवर फूल.
दिवस विरह के चुभते शूल..
महका महुआ मदिर मिलन-
सब दुनिया को जाओ भूल..
*
कभी है सीता, कभी है राम.
कभी है राधा, कभी है श्याम..
दिल की दुनिया का दस्तूर-
भुला नाम दिल वरे अनाम..
*
दर्दे-दिल को मौन हो पीना सीखो.
मरदे-दिल हो दुनिया में जीना सीखो..
जान को जान पर निसार करो-
परदे-दिल होकर 'सलिल' जीना सीखो..
*
दिल में दिलदार को इस तरह बसाया जाए.
दिल को दिलदार का मंदिर ही बनाया जाये..
दिल को दिल दे जो सदा, भूल न पाये दिलवर-
दिलरुबा दिल का 'सलिल' ऐसे बजाया जाए..
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दिल लगी चुभती बहुत है, दिल्लगी मत कीजिये.
दिल लगी दिल से लगाकर, बन्दगी हँस कीजिये..
दर्दे-दिल दिल में छिपाकर, हर्षे-दिल करिए बयां-
फख्रे-दिल दिलवर के बनकर, स्वर्ग सा सुख लीजिये..
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6 टिप्पणियां:
Pranava Bharti ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita
आ .संजीव जी
बहुत सुंदर मुकतक ......ढेर सी बधाई !
जब ये दिल उदास होता है
जाने कौन आस पास होता है
रौशनी बन के समा जाता है दिल में जो
शायद एक अहसास होता है|
अब तस्वीर कहाँ से लें?
आपके निर्देश पर एक बार प्रयास किया था
पर चेला कुछ कम बुद्धि का निकला|
एक दिन आपसे पूछकर समय लेकर सीखूंगी|
सादर
प्रणव भारती
sn Sharma ✆ ahutee@gmail.com द्वारा yahoogroups.com kavyadhara
आ० आचार्य जी ,
' दिल ' पर लिखे मुक्तक रुचिकर लगे | बधाई |
विशेष नीरज-शैली में -
दिल में दिलदार को इस तरह बसाया जाए.
दिल को दिलदार का मंदिर ही बनाया जाये..
दिल को दिल दे जो सदा, भूल न पाये दिलवर-
दिलरुबा दिल का 'सलिल' ऐसे बजाया जाए..
सादर
कमल
deepti gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com
kavyadhara
अतिसुन्दर, संजीव जी !
सादर,
दीप्ति
- mcdewedy@gmail.com
Dil ko khub matha hai-badhai.
Mahesh Chandra Dewedy
आज 09/07/2012 को आपकी यह पोस्ट (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति मे ) http://nayi-purani-halchal.blogspot.com पर पर लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत बढ़िया मुक्तक ..
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