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गुरुवार, 5 जुलाई 2012

मुक्तक : दिल --संजीव 'सलिल'

मुक्तक :



संजीव 'सलिल'
*
आ के जाने की बात करते हो.
दिल दुखाने की बात करते हो..
छीनकर चैनो-अमन चैन नहीं-
दिल लगाने की बात करते हो..
*



आज हमने भी काम कर डाला.
काम गुपचुप तमाम कर डाला..
दिल सम्हाले से जब नहीं सम्हला-
हँस के दिलवर के नाम कर डाला..
*



चाहतों को मिला है स्वर जबसे..
हौसलों को मिले हैं पर जबसे..
आहटें सुन रहा मुक़द्दर की-
दिल ने दिल में किया है घर जबसे.
*



दिल से दिल को ही चुराऊँ कैसे?
दिल से दिलवर को छिपाऊँ कैसे?
आप मुझसे न गुजारिश करिए-
दिल में दिल को ही बिठाऊँ कैसे??
*



चाहतें जब जवान होती हैं.
ज़िंदगी का निशान होती हैं..
पाँव पड़ते नहीं जमीं पे 'सलिल'-
दिल की धडकन अजान होती है..
*
Acharya Sanjiv verma 'Salil'
http://divyanarmada.blogspot.com
http://hindihindi.in



6 टिप्‍पणियां:

PRAN SHARMA ने कहा…

SABHEE MUKTKON NE MAN MOH LIYAA HAI .

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com ने कहा…

sn Sharma ✆ द्वारा yahoogroups.com

kavyadhara


वाह आचार्य जी,
श्रृंगार-रस भीने जवान मुक्तक बूढ़े मन को भी गदगद कर गये |
आपको साधुवाद |
सच है दिल सदा जवान रहता है, काया की उमर का उस पर असर नहीं | विशेष -
दिल से दिल को ही चुराऊँ कैसे?

दिल से दिलवर को छिपाऊँ कैसे?
आप मुझसे न गुजारिश करिए-
दिल में दिल को ही बिठाऊँ कैसे?
कमल

kusum sinha ✆ ekavita ने कहा…

kusum sinha ✆ ekavita


priy sanjiv ji
aajkal ek se ek kavitayein likh rahe hain? bhagwan kare hamesha swasth rahen aur khub likhen
kusum

Mahipal Singh Tomar ✆ ने कहा…

Mahipal Singh Tomar ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


दिल की धड़कन अजान होती है
-वाह खूब ' सलिल ' जी ,बधाई

Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा ने कहा…

Dr.M.C. Gupta ✆ द्वारा yahoogroups.com ekavita


सलिल जी,

आपने क्या कमाल कर डाला !!--


आज हमने भी काम कर डाला.
काम गुपचुप तमाम कर डाला..
दिल सम्हाले से जब नहीं सम्हला-
हँस के दिलवर के नाम कर डाला..


इस माहौले-उल्फ़त में चार पंक्तियाँ नज़र करता हूँ--

हुस्न पे ऐसे ताब आई है
आग पानी में ज्यों लगाई है
देख के चांद सा चेहरा ख़लिश
चांदनी जैसे सकपकाई है.

- chandawarkarsm@gmail.com ने कहा…

- chandawarkarsm@gmail.com

आदरणीय आचार्य सलिल जी,
बहुत खूब! दिलकश!!
मैं ने यह पढा था:
"बहुत शोर सुनते थे दिल के पहलू में
जो चीरा तो क़तरा खून न निकला" (शायर याद नहीं- शायद अकबर इलाहाबादी?)
सस्नेह
सीताराम चंदावरकर