कुल पेज दृश्य

गुरुवार, 20 सितंबर 2018

एक रचना

गीत
*
यह रीझा
वह रीझी
पल-पल मधुमास
.
पूर्वा रतनार हुई
ऊषा है छुईमुई
आसमान बौराया
वसुधा भी हुलसाई
मन भाया
मन भाई
टपरी रनिवास
.
अँखुआए नव सपने
देह लगी लुक-छिपने
हरियाई मन-बगिया
हाय! उड़ गई निंदिया
यह कूका
वह कूकी
दहकी उच्छ्वास
.
यह वह है,  वह यह है
जग जीवन महमह है
बोल-बताते अबोल
भेद की नहीं तह है
यह हेरे
वह हेरे
साँसों का रास
***
संजीव
20.9.2018

कोई टिप्पणी नहीं: