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रविवार, 13 जनवरी 2013

पाठकनामा: संजीव 'सलिल'


पाठकनामा:                                                                           संजीव 'सलिल'
(मेरी आपबीती, (बेनजीर भुट्टो डॉटर ऑफ़ ईस्ट एन ओटोबायग्राफी का हिंदी अनुवाद), डिमाई आकार, ४१६ पृष्ठ, अनुवादक अशोक गुप्ता-प्रणयरंजन तिवारी, २२५ रु., राजपाल एंड संस दिल्ली).
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गत दिनों बेनजीर भुट्टो की लिखी पुस्तक मेरी आपबीती पढ़ी. मेरे पिता की हत्या, अपने ही घर में बंदी, लोकतंत्र का मेरा पहला अनुभव, बुलंदी के शिखर छूते ऑक्सफ़ोर्ड के सपने, जिया उल हक का विश्वासघात, मार्शल लॉ को लोकतंत्र की चुनौती, सक्खर जेल में एकाकी कैद, करचे जेल में- अपनी माँ की पुरानी कोठारी में बंद, सब जेल में अकेले और २ वर्ष, निर्वासन के वर्ष, मेरे भाई की मौत, लाहौर वापसी और १९८६ का कत्ले-आम, मेरी शादी, लोकतंत्र की नयी उम्मीद, जनता की जीत, प्रधानमन्त्री पद और उसके बाद. इन १७ अध्यायों में बेनजीर ने काफी बेबाकी से अपनी ज़िंदगी के पृष्ठों को पलटा है. ४१६ पृष्ठों की इस कृति के अनुसार ''पश्चिम (अमेरिका) पकिस्तान में फ़ौजी शासकों को उकसाता रहता है... तो स्वतंत्रता को कुचले जाने के दौर में आनेवाली पीढ़ी तालिबान और अल-कायदा के बाद इस्लाम के नाम को पश्चिम के साथ हिंसात्मक मुठभेड़ में नष्ट कर देगी. यह सिर्फ पाकिस्तानियों की ही जिम्मेदारी नहीं है जो वह पाकिस्तान में स्वतंत्रता और लोकतान्त्रिक सरकार का रास्ता बनाये, बल्कि उन सबका लक्ष्य है जो दुनिया भर में 'सभ्यता पर आक्रमण' को रोकना चाहते हैं.''

== 'पीपल्स पार्टी चुनाव जीतकर सत्ता में पहुँची, मेरे पिता ने आधुनिकीकरण कार्यक्रम शुरू किया... सामंतों के पास पीढ़ियों से चली आ रही ज़मीन लेकर गरीबों में बाँट दी, लाखों लोगों को अज्ञान के अँधेरे से निकालकर शिक्षा दिलाई, प्रमुख उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया, न्यूनतम मजदूरी दर तय की, रोजगार की सुरक्षा के कानून बनाये, औरतों और अल्पसंख्यकों के साथ भेद-भाव मिटाया... जिया उल-हक मेरे पिता के बेहद विश्वासपात्र मानेजाने वाले सेना प्रमुख ने ही आधी रात को अपने सैनिक भेजकर मेरे पिता का तख्ता पलट किया... जबरदस्ती ताकत के दम पर देश को हड़प लिया... मेरे पिता की लोकप्रियता को नहीं कुचल पाया ... पिता का हौसला मौत की कोठरी तक में नहीं तोड़ पाया''            

बेनजीर ने ४अप्रैल १९९७ की रात ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो को फांसी के पूर्व उनके जीवन रक्षा के उपायों, बार-बार चुनावों की घोषणा किन्तु भुट्टो के ही जीतने की सम्भावना देखकर चुनाव न कराने, परिजनों को कैदकर बेइन्तिहा ज़ुल्म ढाने, दुनिया भर के देश प्रमुखों द्वारा कैद भुट्टो को फांसी न देने के नुरोध ठुकराने आदि वाक्यात इस किताब में दर्ज़ हैं.

बेनजीर की यह संघर्ष कथा उनके हौसले, राजनैतिक चातुर्य, त्वरित निर्णयक्षमता, दूरंदेशी और जनता से ताल-मेल बैठाने के अनेक दृष्टान्त सामने लाती है.


तानाशाह जिया उल हक को धन व हथियारों सहित राजनैतिक समर्थन, राजनैतिक नेतृत्व को न पनपने देना, तानाशाहों के जुल्मों की अनदेखी, तानाशाही के दौर में पाकिस्तानी जेलों में राजनैतिक कार्यकर्ताओं के साथ निकृष्टतम तथा निर्दयतापूर्ण व्यवहार, कोड़े मारने, प्राण लेने की अनेक घटनाएँ वर्णित हैं, यहाँ तक कि भुट्टो तथा अन्य नेताओं के परिवारों को भी अमानवीय यंत्रणा दी गयीं. 

बेनजीर के अनुसार 'हमारा इतिहास भारत पर भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों के रूप में सीधे जोड़कर देखा जाता है. जो ईसा के ७१२ वर्ष बाद भारत आये. ..हम मूलतः उन राजपूतों की संतान हैं जो हिन्दुस्तानी वीर योद्धा थे और उन्होंने मुस्लिम आक्रमण के समय इस्लाम कबूल कर लिया था या हम उन अरबवासियों की पीढ़ी के हैं जो हमारे गृह प्रान्त सिंध के रास्ते भारत आये.''  
कुछ उद्धरण :

'मेरे नहाने और दाढ़ी बनाने का इंतजाम करो, दुनिया खूबसूरत है और मैं इसे साफ़-सुथरा होकर छोड़ना चाहता हूँ.' -ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो, फांसी के पूर्व.

'चुनौती के लिए उठ खड़े हो. तमाम कठिनाइयों को जीतते हुए लड़ो. दुश्मन को जीतो. सच की झूठ पर, अच्छाई की बुराई पर हमेशा जीत होती है.... तुम चाहे किसी कारगर मौके को पकड़ लो या उसे खो जाने दो, तुम प्रेरणा से भरे रहो या संशय में घिर जाओ, तुम अपना मनोबल भरपूर ऊँचा रखो या झुकते चले जाओ, यह तुम्हें खुद तय करना है.'' --ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो,

== हजरत मुहम्मद साहब ने अरब में उस समय भी लड़कियों को पैदा होते ही मार डालने की प्रथा पर पाबंदी लगाई थी और लडकियों की पढ़ाई पर जोर दिया था. औरतों के जायदाद पर हक के लिए इस्लाम ने उससे पहले ही राय दी थी जब पश्चिम में इस पर सोच-विचार किया जा रहा था...मुस्लिन इतिहास ऐसी औरतों की कथाओं से भरा पड़ा है जिन्होंने जनता के बीच काम किया और किसी भी मायने में पुरुषों से कमतर साबित नहीं हुईं... मैंने सब जगह औरतों को राज करते पाया और उन्होंने अपनी प्रजा को अपनी सत्ता के नाते पूरा सब कुछ दिया. कुरान शरीफ में लिखा है: मर्द जो कमाते हैं वह उन्हें हासिल होता है और औरतें भी अपना कमाया हासिल करती हैं.''
Meri Aapbeeti
== ''जो बात हम मुसलमानों में किसी भी भेदभाव से ऊपर उठकर है वह है हमारा खुद की मर्जी के आगे सर झुक देना. हम अल्लाह में विश्वास करते हैं और यह मानते हैं कि मोहम्मद साहब हमारे आखिरी पैगम्बर हैं. कुरआन में मुसलमान की यही परिभाषा है.''

== 'मैं अपनी संस्कृति, अपने धर्म और विरासत पर गर्व करती हूँ. सच्चे इस्लाम की मूल भावना में एकता और उदारता है, ऐसा मेरा मानना है और मेरे इसी विश्वास का मजाक बनाते हुए अतिवादी और भी उग्र हो गए हैं.

== मेरी राजनैतिक यात्रा ज्यादा चुनौती भरी इसलिए रही है क्योंकि मैं एक औरत हूँ... हम औरतों को जी तोड़ मेहनत करके यह सिद्ध कर देना है कि हम पुरुषों से किसी भी मायने में कमतर नहीं हैं... हमें समाज के दोहरे मापदंड के लिए शिकायत नहीं करनी है, बल्कि उन्हें जीतने की तैयारी करनी है... भले ही मर्दों के मुकाबले दुगनी मेहनत करनी पड़े और दुगने समय तक काम करना पड़े... माँ बनने की तैयारी एक शारीरिक क्रिया है और उसे रोजमर्रा के काम में बाधा नहीं बनाने देना चाहिए.
१९७१ के बंगला देश समर पर बेनजीर:
==''...मैं नहीं देख पाई कि लोकतान्त्रिक जनादेश की पकिस्तान में अनदेखी हो रहे एही. पूर्वी पकिस्तान का बहुसंख्यक हिस्सा अल्पसंख्यक पश्चिमी पाकिस्तान द्वारा एक उपनिवेश की तरह रखा जा रहा है. पूर्वी पकिस्तान की ३१ अरब की निर्यात की कमाई से पश्चिमी पकिस्तान में सड़कें, स्कूल, यूनिवर्सिटी और अस्पताल बन रहे हैं और पूर्वी पकिस्तान में विकास की कोई गति नहीं है. सेना जो पकिस्तान की सबसे अधिक रोजगार देनेवाली संस्था रही, वहां ९० प्रतिशत भारती पश्चिमी पकिस्तान से की गयी. सरकारी कार्यालयों की ८० प्रतिशत नौकरियां प. पाकिस्तान के लोगों को मिलती हैं. केंद्र सरकार ने उर्दू को राष्ट्रीय भाषा बताया है जबकि पूर्वी पाकिस्तान के कुछ ही लोग उर्दू जानते हैं....
'पाकिस्तान एक अग्नि परीक्षा से गुजर रहा है' मेरे पिता ने मुझे एक लंबे पत्र में लिखा... 'एक पाकिस्तानी ही दुसरे पाकिस्तानी को मार रहा है, यह दु:स्वप्न अभी टूटा नहीं है. खून अभी भी बहाया जा रहा है. हिंदुस्तान के बीच में आ जाने से स्थिति और भी गंभीर हो गयी है...'
निर्णायक और मारक आघात ३ दिसंबर १९७१ को सामने आया...व्यवस्था ठीक करने के बहाने ताकि हिन्दुस्तान में बढ़ती शरणार्थियों की भीड़ वापिस भेजी जा सके, हिन्दुस्तान की फौज पूर्वी पकिस्तान में घुस आयी और उसने पश्चिमी पकिस्तान पर हमला बोल दिया.'
बेनजीर को सहेले समिया का पत्र 'तुम खुशकिस्मत हो जी यहाँ नहीं हो, यहाँ हर रात हवाई हमले होते हैं और हम लोगों ने अपनी खिडकियों पर काले कागज़ लगा दिए हैं ताकि रोशनी बाहर न जा सके... हमारे पास चिंता करने के अलावा कोई काम नहीं है... अखबार कुछ नहीं बता रहे हैं... सात बजे की खबर बताती है कि हम जीत रहे हैं जबकि बी.बी.सी. की खबर है कि हम कुचले जा रहे हैं... हम सब डरे हुए हैं... ३ बम सडक पर हमारे घर के ठीक सामने गिरे... हिन्दुस्तानी जहाज़ हमारी खिड़की के इतने पास इतने नीचे से गुजरते हैं कि हम पायलट को भी देख सकते हैं... ३ रात पहले विस्फोट इतने तेज़ थे कि मुझे लगा कि उन्होंने हमारे पड़ोस में ही बम गिर दिया है... आसमान एकदम गुलाबी हो रहा था. अगली सुबह पता चला कराची बंदरगाह पर तेल के ठिकाने पर मिसाइल दागी गयी थी....'
                                                                                                                           ... शेष अगली क़िस्त में 

















































5 टिप्‍पणियां:

Laxman Prasad Ladiwala ने कहा…

Laxman Prasad Ladiwala

बेनजीर भुट्टो के बारे में पुस्तक में दिए उद्धरणों द्वारा आपने महत्व पूर्ण जानकारियाँ दी है । इससे उनके विचारो को जानने में मदद मिली है । हार्दिक धन्यवाद/आभार आदरणीय श्री संजीव वर्मा सलिल जी 'हमारा इतिहास भारत पर भारत पर मुस्लिम आक्रमणकारियों के रूप में सीधे जोड़कर देखा जाता है. जो ईसा के ७१२ वर्ष बाद भारत आये. ..हम मूलतः उन राजपूतों की संतान हैं जो हिन्दुस्तानी वीर योद्धा थे और मुस्लिम आक्रमण के समय इस्लाम कबूल कर लिया था या हम उन अरबवासियों की पीढ़ी के हैं जो हमारे गृह प्रान्त सिंध के रास्ते भारत आये.''
''जो बात हम मुसलमानों में किसी भी भेदभाव से ऊपर उठकर है वह है हमारा खुद की मर्जी के आगे सर झुक देना. हम अल्लाह में विश्वास करते हैं और यह मानते हैं कि मोहम्मद साहब हमारे आखिरी पैगम्बर हैं. कुरआन में मुसलमान की यही परिभाषा है.''
== 'मैं अपनी संस्कृति, अपने धर्म और विरासत पर गर्व करती हूँ. सच्चे इस्लाम की मूल भावना में एकता और उदारता है ।
== मेरी राजनैतिक यात्रा चुनौती भरी रही है क्योंकि मैं एक औरत हूँ..हम औरतों को जी तोड़ मेहनत करके यह सिद्ध कर देना है कि हम पुरुषों से कमतर नहीं हैं... हमें समाज के दोहरे मापदंड के लिए शिकायत नहीं कर, उन्हें जीतने की तैयारी करनी है..भले ही मर्दों के मुकाबले दुगनी मेहनत करनी पड़े/ काम करना पड़े... माँ बनने की तैयारी एक शारीरिक क्रिया है और उसे रोजमर्रा के काम में बाधा नहीं बनाने देना चाहिए

Saurabh Pandey ने कहा…

Saurabh Pandey

आचार्यजी, उद्धरण घोषणा करते हैं, वाचन के क्रम में आपका समय बेहतर कटा होगा. पुस्तक के सफल समापन के लिए बधाई.. .

PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA ने कहा…

PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA

आभार सर जी, साझा करने हेतु

सादर

rajesh kumari ने कहा…

rajesh kumari

बेनजीर की पुस्तक को साझा करने हेतु आभार सलिल जी किसी भी सफल महिला का इतिहास मिलता जुलता है ना जाने कितने संघर्ष के बाद सफलता हासिल होती है पर सही में सफल वही नारी है जो दूसरी नारी के अधिकारों के लिए भी लड़े उसकी स्थिति को भी अच्छा दर्जा दिलवाए वर्ना वो शोहरत ,वो नाम किस काम का

sanjiv salil ने कहा…

लक्ष्मण जी, प्रदीप जी, सौरभ जी, राजेश जी
रूचि लेने के लिए आभार. बेनजीर ने अपने देश के बहुत कुछ किया, देश में नर-नारी दोनों होते हैं. राष्ट्र नायक दोनों में भेद नहीं करते. मैं कुछ और अंश आगे प्रस्तुत करूंगा. विशेषकर नयी पीढ़ी जो बांगलादेश युद्ध के समय नहीं थी उसे कुछ जानकारियां मिलेंगी और मेरे हमउम्र पुरानी यादें ताज़ा कर सकेंगे. कुछ घटनाओं पर हमें अपने विरोधी पक्ष के मत की जानकारी मिलेगी.
यह एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जिसे पढ़ा जाना चाहिए.