हिंदी मुहावरा
कौआ स्नान
प्रणव भारती
कौआ स्नान
प्रणव भारती
कउवा नदी किनारे गया ! सर्दी के मौसम में पानी देख कर बेचारा 'गरीब' कंपकपा गया !

फिर पानी में उतरा ! कउवा सोचने लगा
कि स्नान करूँ या न करूँ ?

फिर उसने पत्नी ने से पूछा - नहाना ज़रूरी है क्या ..? बिना नहाये नहीं चलेगा क्या ????

पत्नी ने डाल पर से गुस्से में तरेर कर देखा और कहा -
' अच्छा अभी तक सोच ही रहे हो ........'

कौए ने कहा - हाँ ..हाँ नहाता हूँ ....मैं तो यूँ ही पूछ रहा था ...वो चला फिर नदी की ओर धीरे धीर, बेमन से ....

पानी के कुछ और नज़दीक पहुँचा और लगा घूरने जान के दुश्मन पानी को .....

उसने पत्नी की आँख बचा कर, जल्दी से पानी में पैर भिगो लिए और फुर्र -फुर्र करके छीटें उडाए ...हो गया 'कउवा स्नान ' !

एक बार चोंच में पानी लेरकर गर्दन पे छिड़क लिया , देखो तो गर्दन कैसी झुंझलाई फूली सी हो गई
है.....बेचारा कौआ !

अब तो नहा के उसकी शक्ल ही अजीब सी हो गई है.....बेचार, सूखने को एक चट्टान पे जा बैठा है !

कव्वी ने फिर भी शक करते हुए पूछा - ठीक से
नहाये भी कि नहीं ?
बेचारा डरा सा और कुछ खीजा सा बोला - अरे भागवान, नहा तो लिया ........!

इसे कहते है 'कउवा स्नान' !
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