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सोमवार, 28 जनवरी 2013

छंद सलिला: उल्लाला संजीव 'सलिल'

छंद सलिला: 
उल्लाला 
संजीव 'सलिल'
*
उल्लाला हिंदी छंद शास्त्र का पुरातन छंद है। वीर गाथा काल में उल्लाला तथा रोल को मिलकर छप्पय छंद की रचना की जाने से इसकी प्राचीनता प्रमाणित है। उल्लाला छंद को स्वतंत्र रूप से कम ही रचा गया है। अधिकांशतः छप्पय में रोला के 4  चरणों के पश्चात् उल्लाला के 2 दल (पद या पंक्ति) रचे जाते हैं। प्राकृत पैन्गलम तथा अन्य ग्रंथों में उल्लाला का उल्लेख छप्पय के अंतर्गत ही है।
जगन्नाथ प्रसाद 'भानु' रचित छंद प्रभाकर तथा ॐप्रकाश 'ॐकार' रचित छंद क्षीरधि के अनुसार उल्लाल तथा उल्लाला दो अलग-अलग छंद हैं। नारायण दास लिखित हिंदी छन्दोलक्षण में इन्हें उल्लाला के 2 रूप कहा गया है। उल्लाला 13-13 मात्राओं के 2 सम चरणों का छंद है। उल्लाल 15-13 मात्राओं का विषम चरणी छंद है जिसे हेमचंद्राचार्य ने 'कर्पूर' नाम से वर्णित किया है। डॉ. पुत्तूलाल शुक्ल इन्हें एक छंद के दो भेद मानते हैं। हम इनका अध्ययन अलग-अलग ही करेंगे।
'भानु' के अनुसार:
उल्लाला तेरा ला, दश्नंतर इक लघु ला।
सेवहु नित हरि हर रण, गुण गण गावहु हो रण।।
अर्थात उल्लाला में 13 कलाएं (मात्राएँ) होती हैं दस मात्राओं के अंतर पर ( अर्थात 11 वीं मात्रा) एक लघु होना अच्छा है।

दोहा के 4 विषम चरणों से उल्लाला छंद बनता है। यह 13-13 मात्राओं का सम पाद मात्रिक छन्द है जिसके चरणान्त में यति है। सम चरणान्त में सम तुकांतता आवश्यक है। विषम चरण के अंत में ऐसा बंधन नहीं है। शेष नियम दोहा के समान हैं। इसका मात्रा विभाजन 8+3+2 है अंत में 1 गुरु या 2 लघु का विधान है।
सारतः उल्लाला के लक्षण निम्न हैं-
1. 2 पदों में तेरह-तेरह मात्राओं के 4 चरण
2. सभी चरणों में ग्यारहवीं मात्रा लघु
3. चरण के अंत में यति (विराम) अर्थात सम तथा विषम चरण को एक शब्द से न जोड़ा जाए।
4. चरणान्त में एक गुरु या 2 लघु हों।
5. सम चरणों (2, 4) के अंत में समान तुक हो।
6. सामान्यतः सम चरणों के अंत एक जैसी मात्रा तथा विषम चरणों के अंत में एक सी मात्रा हो। अपवाद स्वरुप प्रथम पद के दोनों चरणों में एक जैसी तथा दूसरे पद के दोनों चरणों में
 उदाहरण :
1.नारायण दास वैष्णव
रे मन हरि भज विष तजि, सजि सत संगति रै दिनु।
काटत भव के फन् को, और न कोऊ रा बिनु।।
2. घनानंद
प्रेम नेम हित चतुई, जे न बिचारतु नेकु मन।
सपनेहू न विलम्बियै, छिन तिन ढिग आनंघन।
3. ॐ प्रकाश बरसैंया 'ॐकार'
राष्ट्र हितैषी धन् हैं, निर्वाहा औचित् को।
नमन करूँ उनको दा, उनके शुचि साहित् को।।
प्रथम चरण 14 मात्राएँ,
4.

संजीव 'सलिल'

9 टिप्‍पणियां:

Rajesh Kumar Jha ने कहा…

Rajesh Kumar Jha
आदरणीय आचार्य जी

1. ''इसका मात्रा विभाजन 8+3+2' है तथा
2. '' सम तथा विषम चरण को एक शब्द से न जोड़ा जाए । इन दोनों चीजों को समझ नहीं पाया, यदि सोदाहरण समझाएं तो आभारी रहूंगा

sanjiv salil ने कहा…

प्रिय राजेश जी!

आपकी रूचि और जिज्ञासु वृत्ति प्रशंसनीय है. शुभकामनाएं.

पिंगल में उक्तानुसार उल्लेख है. पुराने कवियों ने इसका यथासंभव पालन भी किया है किन्तु सर्वत्र नहीं कर सके. आधुनिक कवि इस बंधन का पालन नहीं कर रहे हैं. पाठकों की जानकारी हेतु इसका उल्लेख किया गया है किन्तु लक्षणों में इसका उल्लेख नहीं किया है.

चरणान्त में दो लघु या १ गुरु का विधान होने से प्रवाह के लिए उसके पूर्व ३ मात्रा के शब्द प्रायः उपयोग हुए हैं, इन्हें छोड़ दें तो तो शेष शब्दों की मात्रा ८ आती हैं. नारायण दास तथा घनानंद के उदाहरणों से यह स्पष्ट होगा.

रे मन हरि भज = ८, विषय = ३ तजि =२, सजि सत संगति = ८ रैन = ३ दिनु = २ ।

काटत भव के = ८, फन्द = ३, को = २, और न कोऊ = ८, राम = ३, बिनु = २।।

प्रेम नेम हित = ८, चतुर = ३, ई =२, जे न बिचारतु = ८, नेकु = ३, मन = २।

सपनेहू न वि = ८, लम्बि = ३, यै = २ , छिन तिन ढिग आ = ८, नंद = ३, घन = २। (इस पंक्ति में नियम के अनुसार शब्द नहीं रह सके हैं.)

तथा 2. '' सम तथा विषम चरण को एक शब्द से न जोड़ा जाए ।

विषम चरण (पहला, तीसरा) तथा सम चरण (दूसरा, चौथा) में मध्य यति (विराम का विधान है) यदि विषम चरण के अंत में कोई लम्बा शब्द प्रयोग किया जाए जो सम चरण के प्रारंभ तक चला जाए तो तेरह मात्रा के चार चरणों का नियम भंग होकर २६ मात्रा के दो पद मात्र रह जायेंगे और उल्लाला की लय ही नष्ट हो जायेगी.

आशा है समाधान हो गया होगा.1. ''इसका मात्रा विभाजन 8+3+2' है.

Om Prakash Tiwari yahoogroups.com ने कहा…

Om Prakash Tiwari द्वारा yahoogroups.com


आदरणीय आचार्य जी,
इस छंद के बारे में दिया गया उदाहरण सहित ज्ञान बहुत संग्रहणीय एवं महत्त्वपूर्ण है। यह ज्ञान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद ।
सादर
ओमप्रकाश तिवारी

Saurabh Pandey ने कहा…

Saurabh Pandey

जिस तार्किकता और संतुलित भाव से प्रस्तुत छंद का सार साझा किया गया है, वह रुचिकर है. यही वह कारण है जिससे आज के किसी प्रयासकर्ता के मन में किसी छंद के प्रयोग के प्रति ललक पैदा होती है. छंद विधान स्पष्ट हैं. लेकिन अक्सर उनकी महीनी समझाने वाला मौके पर सुलभ नहीं हो पाता, अतः आज के रचनाकार छंदों पर प्रयास करने से ही बिदकते हैं. दूसरे, इनके विधान के प्रस्तुतिकरण में आज के कतिपय विद्वानों और जानकारों द्वारा अनावश्यक क्लिष्टता बरती जाती है.

यह स्पष्ट है कि इतने उदाहरणों को देखने-समझने के बाद छंद से संबंधित कई-कई भ्रांतियाँ या व्यक्तिगत मान्यताएँ पाठकों को हाशिए पर चली गयी दिखेंगीं.

दोहा, रोला और कुण्डलिया पर अभ्यास करने वाले आसानी से इस उल्लाला छंद पर अभ्यास कर सकते हैं.

आपके इस अनुपम योगदान के लिए आपका सादर आभार आदरणीय आचार्यजी.

Rajesh Kumar Jha ने कहा…

Rajesh Kumar Jha

आदरणीय आचार्य जी,
आपने जितनी सुंदरता के साथ समझाया है उससे तो सीधे-सीधे विधान कंठस्‍थ हो गया। आपका आभार कि बारीकियों को भी सहजता के साथ बताया, सादर

sanjiv salil ने कहा…

राजेश जी, सौरभ जी, आपको यह प्रयास रुचिकर लगा तो मेरा श्रम सार्थक हुआ. हम सब एक दूसरे से सीखकर ही हिंदी के विकास में सहायक हो सकते हैं.

Dr.Prachi Singh ने कहा…

Dr.Prachi Singh 5 hours ago

आदरणीय संजीव जी,

सादर आभार उल्लाला छंद पर विस्तृत समझाता हुआ आलेख प्रस्तुत करने के लिए, यह छंद दोहा छंद के काफी करीब है.

आदरणीय संजीव जी एक संशय है, कृपया निवारण कीजिये

हाय! देश में उपेक्षित, राजनीति से पराजित।।.......................जैसा की आपने विधान में बताया की ११वीं मात्र सदैव लघु होनी चाहिए. किन्तु प्रस्तुत पंक्ति के सम व विषम चरण दोनों में ही ग्यारहवीं मात्रा दीर्घ है. या मैं ही गणना में त्रुटी कर रही हूँ.

सादर.

sanjiv verma salil ने कहा…

प्राची जी!
वन्दे मातरम.
आपकी सूक्ष्म दृष्टि ने ठीक ही देखा.
हाय! देश में उपेक्षित, राजनीति से पराजित।।
प्रथम अर्ध- उपेक्षित में 'क्षि' में तो ध्वनियों का मेल है. 'क्' + 'शि', 'क्' 'पे' के साथ जोड़कर पढ़ा जाएगा. शेष 'शि' लघु है.
उत्तरार्ध में 'पराजित' में त्रुटि है जिसका खेद है. उत्तरार्ध को 'राजनीति से पद-दलित' कर त्रुटि निवारण किया जा सकता है. ध्यान आकर्षित करने हेतु आभार.

sanjiv salil ने कहा…

Rajesh Kumari

बहुत बढ़िया ज्ञानवर्धक पोस्ट आदरणीय सलिल जी, मैंने भी आज ये ग्रुप ज्वाइन कर लिया.