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गुरुवार, 6 जनवरी 2022

कांता रॉय के गीत

कांता रॉय के गीत  


बसंत गीत 


देखिए जरा, जरा ठहरिए 
प्रकृति खड़ी करके श्रृँगार 
तान छेड़ा है घटा ने 
सुना है
प्यार के मौसम में मन बहकते हैं 

शाम सुरमई जूही महकी 
 प्रेम में उमगी कचनार 
शतदल खिलती होठों में 
सुना है 
अंग-अंग में पलास दहकते हैं 

कामदेव की तीर साधना  
ऋतुराज हैं बहके आज 
सुप्त लालसाएँ लेकर 
सुना है
अमलतास पर भँवरे मचलते है
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फाग 

बिन साजन कैसी होली हो रामा,
उड़े रंग सिनुरिया.......

कंगना मोरा चुप-चुप रोई 
माथे की बिंदिया खोई-खोई
पिया बिना चुनर दिवानी हो रामा,
उड़े रंग सिनुरिया.........

गली-गली में खिल-खिल गोरी 
गावे फागुन गावे होरी 
पिया संग नैन लड़ावे हो रामा 
उड़े रंग सिनुरिया............

प्रेम-डगर पर ऋतु ये सुहानी 
पुरवा छेड़े धुन मस्तानी 
पल-पल जिया तरसावे हो रामा 
उड़े रंग सिनुरिया............

बाँके-बिहारी चुप से अइहैं 
ले पिचकारी अंगिया भिजैहें 
रंग-गुलाल मोहे  सोइहें हो रामा 
उड़े रंग सिनुरिया........…
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 क्या फिर से नया साल आया !

बर्फ बर्फ  दिन ,सर्द सर्द  रातें 
गुनगुनी सी धुप लेकर 
कोहरे  से झाँके 
दस्तक कौन देने आया ?
क्या फिर से नया साल आया ! 

तारीखों ने तारीखों से 
मिलन के वादे निभाये 
मिलन की बातें  बनाने   
दस्तक कौन देने आया ?
क्या फिर से नया साल आया !

झील के किनारे इठलाते इतराते 
सफेद राजहँसो का जोड़ा 
 जोडों को विह्लाने 
दस्तक कौन देने आया ?
क्या फिर से नया साल आया !

उम्मीदों की डोली कजरारे नैन  
सतरंगी  सपनों के धागे 
अंधियारे पथ पर 
कहरिया कहाँ से आया ?
क्या फिर से नया साल आया !

थम गया है शोर तुफानों का 
सन्नाटा है  रथ पर सवार 
छमछम घुँघरू की कानों में  
दस्तक कौन देने आया ?
क्या फिर से नया साल आया !

आँचल है कुछ उलझी-उलझी 
सपने है गड्ड मड्ड - गड्ड मड्ड 
मुड़ी - तुडी गठियाई मुठियाई 
दस्तक कौन देने आया ?
क्या फिर से नया साल आया !
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 पुण्य काल की बेला


तिल गुड़ खाकर गुड़- गुड़ बोले 
रिश्तों को मिले आधार
मनवा डोले पतंग बनकर
है उत्तरायण त्योहार 
मकर संक्रातिss.......पुण्य काल की बेला।

सूर्य देव भ्रमण को निकले 
छोड़ धनु को मकर में पहुँचे 
राशि-चाल की अदला- बदली 
ज्यों गति उतरायन बिहुँसे
मकर संक्रातिss....... पुण्य काल की बेला।

 
संतों का है गंगासागर 
गंगा में डूबकी लगाकर
तिल-मुँगफलियाँ गुड़-रेवड़ी 
गौ-दान से बैतरणी पार 
मकर संक्रातिss.... पुण्य काल की बेला

भैया-भौजी छत पर देखें 
नील गगन में पेंचमपेंची 
चुपके-चुपके मम्मी-पापा 
थामे डोरी थामे चरखी 
मकर संक्रातिss....पुण्य काल की बेला।

सिंह साहब  लोहड़ी गाए
ओ सुंदर मुंदरिये हो जी 
दुल्ले भट्टी वाला चंगा 
दुल्ले घी व्याही हो जी 
मकर संक्रातिss..... पुण्य काल की बेला।

रमन्ना जी का पोंगल आया 
हर्ष का उल्लास का पोंगल
भोगी पोंगल भोगी कोट्टम 
सूर्य पोंगल मट्टू पोंगल 
मकर संक्रातिss......  पुण्य काल की बेला।
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 एक तुम्हारे होने से 

साक्षी है सिंधू मन मेरा एक तुम्हारे होने से
हृदय की भित्तियों में चित्तियाँ तुम्हारे होने से

ऊँची काली दीवारें थाह पता कोई ना जाने
जीने -मरने में भेद मिटा संत्रासों के ढोने से

हृदय की भित्तियों में चित्तियाँ तुम्हारे होने से .......

उलट-पुलट है यह जग सारा पुरवाई भी व्याकुल है
लहरों की उछ्वासित साँसों को क्या मलाल अब खोने से

हृदय की भित्तियों में चित्तियाँ तुम्हारे होने से ........

लय की अनंतता में अंतर्मन का रमकर रमना
नित्य-निरंतर उसके गति में अविचलता के होने से

हृदय की भित्तियों में चित्तियाँ तुम्हारे होने से .........
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 पीड़ा तू आ

पीड़ा तू आ, आ तेरा श्रृंगार करूँ ....
शब्दों के फूलों से अंतरंग सजा लूँ ....
पीड़ा तू आ, तुझे हृदय में बसा लूँ
पीड़ा तू आ, आ तेरा श्रृँगार करूँ .........

बौने मन की काठी पर
प्रीत की लम्बी बेल चढ़ाई
लतर - चतर कर उलझ गई
ये कैसी मैने खेल रचाई

पीड़ा तू आ,तुझे पलकों पर बिठा लूँ...
पीड़ा तू आ, आ तेरा श्रृँगार करूँ.....

गर्द -गर्द धूमिल- सी चाँदनी
चाँद का रूप कितना मैला
रौंद कर सपनों को
टिड्डों का दल निकला

पीड़ा तू आ,तुझे अधरों का सुख दूँ.....
पीड़ा तू आ, आ तेरा श्रृँगार करूँ.....

सागर की उन्मुक्त लहरें
बदली का यूँ ही घिरना
पत्थर जो गल कर बर्फ बने
गर्म उँसासों का जमकर जमना

पीड़ा तू आ,तुझे मन महुए का नशा करा दूँ......
पीड़ा तू आ, आ तेरा श्रृँगार करूँ.....

वह कदंब का फूल शस्त्र-सा
शूल- सा चुभता भ्रष्ट बसंत
गर्मी है अब सर्द-सर्द-सी
धुप झुलस कर हो गई पस्त

पीड़ा तू आ, तुझे इच्छाओं का माँस खिला दूँ....
पीड़ा तू आ, आ तेरा श्रृँगार करूँ.....

हड्डियों के ढाँचे में
कर्ज़ कर्ज़ डूबा स्वार्थ
अंधेरों का बढ़ता आकार
घट कर पलछिन गया उजास

पीड़ा तू आ,तुझे वाणी की आँख दूँ....
पीड़ा तू आ, आ तेरा श्रृँगार करूँ.....
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 भारत स्वच्छ बनाना है


स्वच्छता की शपथ लेकर,घर- घर अलख जगाना है 
भारत स्वच्छ बनाना है, आदर्श देश बनाना है-----------

नागरिक की भागीदारी, जन-सेवा की अब तैयारी 
स्वच्छता की जिम्मेदारी, जन-जन की हो भागीदारी 

जन-आँदोलन स्वच्छता के , नाम पर चलाना है.....
भारत स्वच्छ बनाना है ,आदर्श देश बनाना है.......

स्वच्छता ही सम्पदा है ,बात यह तुम जान लो
सड़कों ,गलियों की सफाई ,अभियान यह ठान लो 

सुव्यवस्थित शौचालय ,कचरा ठिकाने लगाना है.......
भारत स्वच्छ बनाना है ,आदर्श देश बनाना है............

स्वच्छ देश हो यह अपना, गाँधी जी का है सपना 
यह सपना सच कर जाना है ,सपनों का देश बनाना है 

मंदिर-मस्जिद -गिरजाघर से ,अबकी बिगुल बजाना है .......
भारत स्वच्छ बनाना है, आदर्श देश बनाना है.......
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गीत

रुक - रुक , ऐ दिल ,जरा थम के चलना
लम्बा सफर है, दूर है मंजिल, थम-थम के चलना

रुक - रुक ,ऐ दिल ,जरा थम के चलना

आयेंगी कई-कई बाधाएँ ,डर कर मत रहना
नदिया की धारा बनकर ,कलकल तुम बहना ,

रुक-रुक , ऐ दिल ,जरा थम के चलना

पग -पग , काँटों का चुभना , खून-खून तर लेना
आँख-मिचौनी ,हौसलों से , खेल सुख -दुख कर लेना

रुक-रुक ,ऐ दिल ,जरा थम के चलना

पीतल में सोने सी आभा,चमक-चमक ,छल का छलना
हाथ की रेखा ,कर्म सत्य है,प्यार के पथ पर ही चलना

रुक - रुक ,ऐ दिल ,जरा थम के चलना

पत्थर की बस्ती , पत्थर के दिल ,तुम पथरीली ना बनना
रात अंधेरी , रैन भयावनी , चाँद -चाँदनी बन खिलना

रुक- रुक ,ऐ दिल , जरा थम के चलना
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दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ

धूमिल होती भ्रांति सारी, गण-गणित मैं तोड़ रही हूँ
कलम डुबो कर नव दवात में, रूख समय का मोड़ रही हूँ

मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......

नई भोर की चादर फैली, जन-जीवन झकझोर रही हूँ
धधक रही संग्राम की ज्वाला, सागर सी हिल-होर रही हूँ

मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ......

टूटे हृदय के कण-कण सारे, चुन-चुन सारे जोड़ रही हूँ
उद्वेलित मन अब सम्भारी, विषय-जगत अब छोड़ रही हूँ

मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .....

मृदंग- मृदंग सा है मन मेरा, हरकाती सी शोर रही हूँ
क्षितिज रखी है मैने अंगुली, प्रत्यक्षित हिलकोर रहीं हूँ

मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .........

रोक सको दम गर है तुममें, प्रलय-प्रकाश जोड़ रहीं हूँ
आत्म स्वरों को रौंदने वालें नर - नारायण तोड़ रहीं हूँ

मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ ........

शक्ति प्रकृति ढोना होगा, मन मृगछाल ओढ रही हूँ
पग-पग रक्तबीज राजे है, अस्त्र अक्षर बल जोर रही हूँ

मैं दुर्गेश्वरी बोल रही हूँ .........

सिंहासन डोले मनु रक्षक का, ठीकर सारे फोड़ रही हूँ
कोंपलें नई फूट रही है, निर्माण सेतु जोड़ रही हूँ

मैं दुर्गेश्वरी मै बोल रही हूँ .......
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मन अभिमानी माने न बतिया 
पिया बिनु जागू सारी रतिया

मन अभिमानी -----

जल-जल मरू मैं, प्रेम दाह में 
प्रीत की चाह में कलपत सथिया  

मन अभिमानी------ 

ला रे सखी मोरी, माहुर ला दे,
सोन सजन बिनु फाटत छतिया

मन अभिमानी ----- 

पिया कल आये मैं न बोली 
वश में ना मैं ना मोरा मतिया 

मन अभिमानी -------
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 वे दिन भी भले थे...


फूल से दिन खिले थे,साँझ गुलशन-सी रही
खुशियों का चलन था,अब विरानी भली

वे दिन भी भले थे , ये साँझ भी है भली


छूटना था छूट गये, रंग कच्चे प्रेम के
चाशनी ना थी घनी, हम तो पगे , तुम ना पगे

वे दिन भी भले थे ,ये साँझ भी है भली

हिल रहे थे मिल रहे थे ,सुख सपने सब खिल रहे थे
दुध जल से मिल रहे थे,घुलकर एक ही बने

वे दिन भी भले थे ,ये साँझ भी है भली

जुग जैसे दिन अब बीते,पाते खोते मन भी रीते
सगों ने किया  किनारा,अलग बहे नदी जल धारा

वे दिन भी भले थे ,ये साँझ भी है भली
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 बेटी अभिमान है


बेटी से हैं सृष्टि सारी,बेटी से संसार है न्यारी
बेटी घर देहरी फुलवारी,बेटी से मान और गान है
बेटी अभिमान है,देश का सम्मान है

शिक्षा, पोषण में रही अधूरी,सदियों मर-मर जीती आयी
बहुत हुआ ये भेदभाव,बहुत हुआ अब अपमान है
बेटी अभिमान है,देश का सम्मान है

धोखा धोखा है जग आशा,बेटी पर ना किया भरोसा
बेटा ही बेटा करते आये,समझा क्या बेटी शान है 
बेटी अभिमान है,देश का सम्मान है

कोख में देखो आग लगाई ,गर्भ में बेटी हुई विदाई
गड़बड़-गड़बड़, खलबल-खलबल,लिंग भेद ने किया नुकसान है
बेटी अभिमान है,देश का सम्मान है

अब कोई दुष्कर्म ना होवे,बिटिया-जननी कोई ना रोवे
बेटी की सुरक्षा जिम्मेदारी,जन - जन जारी ये फरमान है ........
बेटी अभिमान है,देश का सम्मान है


पुरूषतंत्र अब चेतो जागो ,बेटी के सब गुण पहचानों
बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ,भारत में बेटी अब वरदान है 
बेटी अभिमान है,देश का सम्मान है
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आईये पास कि, दिल आज उदास है, आपकी आस में दिल आज उदास है

याद का भँवर, उड़ा ले चला किधर, थाम लीजिए मुझे, दिल आज उदास है

हाथ में आपकी, हैं छुअन-सी लगी, घटा को देख फिर दिल आज उदास है

दिल का धड़क जाना, आपके नाम से, बदलियों को देख, दिल आज उदास है

छतरी में सिमटना, एक ठंडी शाम में, यादों में तनहा दिल आज उदास है

रूहानी तलाश, रूह की जैसी प्यास, ढुंढना आस पास दिल आज उदास है

पूछना मुझसे नाम मेरे यार का, सिसकती दास्तान, दिल आज उदास है

सपनों की मंडियाँ, बिकते हुए सपने, देख कर तमाशा दिल आज उदास है

चाँदनी की चकमक, चाँद का चमकना, खनकती चुड़ियाँ, दिल आज उदास है

ख्वाहिश तुम्हें क्यों, पर्दा नशी की, कर दे फना इश्क दिल आज उदास है

रिश्तों को तोलना, बाजार क्या है, रौंदना इस कदर दिल आज उदास है

यादों की बूंदें, गीला-सा मन मेरा, नमकीन बरसात, दिल आज उदास है

सूनी सी डगर, गाँव के चौपाल में, चुप्पी हवाओं की दिल आज उदास है

इंतजार पल पल, क्यों करें दिल मेरा, मुड़कर ना देखना दिल आज उदास है

सतरंगी सपना, पलना यूँ बार बार, ऐतबार क्यों कर दिल आज उदास है
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बदरिया कहाँ गई 

सावन की, बुनझीसी सखी है, तन में लगाए आग .......

बदरिया कहाँ गई 

गोर बदन ,कारी रे चुनरिया ,सर से सरकी आज ...... 

बदरिया कहाँ गई

सावन भादों ,रात अंहारी ,थर - थर काँपय शरीर ...... 

बदरिया कहाँ गई 

दादूर मोर ,पपीहा बोले ,कहाँ गये रणवीर ..... 

बदरिया कहाँ गई 

अमुआँ की डारी ,झूले नर- नारी, मैं दहक अंगार .... 

बदरिया कहाँ गई 

उमड़ उमड़े ,नदी जल पोखर, तन में रह गई प्यास ...... 

बदरिया कहाँ गई 

सब सखी पहिरय ,हरीयर चुड़ी ,मोरा कंगना उदास ...... 

बदरिया कहाँ गई 

सावन पिया ,आवन कह गये, कैसे नैहर जाऊँ .....

बदरिया कहाँ गई 

जलथल - जलथल ,पोखर उमड़े, मन में पड़े रे अकाल

बदरिया कहाँ गई 

सुध बिसरे मेरी ,प्रीत की प्रीतम ,सौतन घर किये वास ......... 

बदरिया कहाँ गई 

तरूण बयस मोरा, पिया तेजल ,भीजल देह लगे आग ...... 

बदरिया कहाँ गई 

जग हरीयाली ,सगरे छाई, मोरा मन सुखमास ....... 

बदरिया कहाँ गई 

बेली चमेली ,करे अठखेली, बरखा झींसी फुहार ......

बदरिया कहाँ गई 

पिया जब आये ,आस पुराये, सावन हुआ मधुमास ..... 

बदरिया आ ही गई
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 दीप-दीवाली 

पिया संग दीप जलाऊँ हो रामा दीप दीवाली

रंग रंगोली द्वार सजाऊँ 
गेंदा गुलाब महकाऊँ हो रामा दीप दीवाली .... 
पिया संग दीप जलाऊँ हो राम दीप दीवाली ......

लक्ष्मी ,शारदा पूजन बेला 
संग गणपति विराजे हो रामा दीप दीवाली .... 
पिया संग दीप जलाऊँ हो रामा दीप दीवाली .......

खील बताशे लड्डू ओ बर्फी 
खीर में तुलसी हो रामा दीप दीवाली....... 
पिया संग दीप जलाऊँ हो रामा दीप दीवाली ......


झिलमिल करे दीपक बाती 
जगमग जगमग रौशन हो रामा दीप दीवाली ....... 
पिया संग दीप जलाऊँ हो रामा दीप दीवाली ......

सुख की कामना सुख की ज्योति 
फुलझड़ी और अनार हो रामा दीप दीवाली..... 
पिया संग दीप जलाऊँ हो रामा दीप दीवाली .......
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फँस गया हूँ फंद में 


जीवन के इस द्वंद में
फँस गया हूँ फंद में

काली गहरी मन कोठरियाँ
रेंग रही तन पर छिपकलियाँ
प्राण कहाँ स्पंद में ....
जीवन के इस द्वंद में
फँस गया हूँ फंद में

जग की उलझन कैसा बंधन
चल रे मनवा कर गठबंधन
जोगी परमानंद में ....
जीवन के इस द्वंद में
फँस गया हूँ फंद में

अभिमानी मन ये जग छूटा
दुनिया तजते भ्रम सब टूटा
चैन नहीं आनंद में .......
जीवन के इस द्वंद में
फँस गया हूँ फंद में

सौ पर्दों में चेहरा छुपाये
ज्ञान रोशनी कैसे पाये
फँसा मन मकरंद में .....
जीवन के इस द्वंद में
फँस गया हूँ फंद में
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दादाजी अब कब आयेंगे (बाल गीत)


सोन परी हम कथा सुनेंगे
दादाजी की छड़ी पकड़ कर
हम उनको लाढ़ दिखायेंगे
दादाजी अब कब आयेंगे

अंगूली थामें बडी अकड़ से
पार्क जायेंगे बडे़ मजे
संग हम उनके धीरे चलेंगे
गोल गोल घुम मजे करेंगे

दादाजी अब कब आयेंगे


सोनू के दादाजी आते
रोज सैर को लेकर जाते
चाॅकलेट चिक्की भी दिलाते
कब मुझको भी दिलवायेंगे

दादाजी अब कब आयेंगे


सायकिल मेरी मुझे सताये
बार बार वो मुझे गिराये
सायकिल मुझे सिखलायेंगें
सायकिल की सैर करयेंगे

दादाजी अब कब आयेंगे

बातों ही बातों में मुझको
दुनिया की सैर करायेंगें
कौन सही और कौन गलत है
प्यार से मुझे बुझायेंगे

दादाजी अब कब आयेंगे

पोता हूँ मै उनका सूद भर
उनके लिए पापा बित्ते भर
उचक गोद में दादाजी के
पेट पकड़ कर कब सोयेंगें

दादाजी अब कब आयेंगे

कह गये थे कल ही आऊँगा
चाॅकलेट ढेरों दिलवाऊँगा
वो चाॅकलेट कब लायेंगे
गोदी में बैठ खिलायेंगे
दादाजी अब कब आयेंगे

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