ग़ज़ल - प्राण शर्मा
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देश में छाएँ न ये बीमारियाँ
लोग कहते हैं जिन्हें गद्दारियाँ
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ऐसे भी हैं लोग दुनिया में कई
जिनको भाती ही नहीं किलकारियाँ
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क्या ज़माना है बुराई का कि अब
बच्चों पर भी चल रही हैं आरियाँ
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राख में ही तोड़ दें दम वो सभी
फैलने पाएँ नहीं चिंगारियाँ
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`प्राण`तुम इसका कोई उत्तर तो दो
खो गयी हैं अब कहाँ खुद्दारियाँ
तीन त्रिपदियाँ - प्राण शर्मा
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ऐसे भी दुनिया में कई होते हैं दोस्तो
जग के दुखों को जो सदा ढोते हैं दोस्तो
दुश्मन की मौत पर भी जो रोते हैं दोस्तो
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ऐसे भी दुनिया में कई होते हैं दोस्तो
विश्वास दोस्ती में जो खोते हैं दोस्तो
जो मन ही मन उदास से रोते हैं दोस्तो
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ऐसे भी दुनिया में कई होते हैं दोस्तो
काँटे सभी की राह में बोते हैं दोस्तो
ख़ुद को भी जो जलन में डुबोते हैं दोस्तो
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देखो,हमारे जीने का कुछ ऐसा ढंग हो
अपने वतन के वास्ते सच्ची उमंग हो
मक़सद हमारा सिर्फ़ बुराई से जंग हो
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कहलायेंगे जहान में तब तक फ़कीर हम
बन पायेंगे कभी नहीं जग में अमीर हम
जब तक करेंगे साफ़ न अपना ज़मीर हम
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उनसे बचें सदा कि जो भटकाते हैं हमें
जो उल्टी - सीधी चाल से फुसलाते हैं हमें
नागिन की तरह चुपके से डस जाते हैं हमें
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जग में गंवार कौन बना सकता है हमें
बन्दर का नाच कौन नचा सकता है हमें
हम एक हैं तो कौन मिटा सकता है हमें
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