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शनिवार, 15 जनवरी 2022

सॉनेट, डॉ. रविशंकर शर्मा, दोहे, नवगीत

सॉनेट 
थल सेना दिवस 
*
वीर बहादुर पराक्रमी है, भारत की थल सेना। २८ 
जान हथेली पर ले लड़ती, शत्रु देख थर्राता।
देश भक्ति है इनकी रग में, कुछ न चाहते लेना।।
एक एक सैनिक सौ सौ से, टकराकर जय पाता।।

फील्ड मार्शल करियप्पा थे, पहले सेनानायक। 
जिनका जन्म हुआ भारत में, पहला युद्ध लड़ा था। 
दुश्मन के छक्के छुड़वाए थे, वे सब विधि लायक।।
उनन्चास में प्रमुख बने थे, नव इतिहास लिखा था।।

त्रेपन में हो गए रिटायर, नव इतिहास बनाकर। 
जिस दिन प्रमुख बने वह दिन ही, सेना दिवस कहाता।।
याद उन्हें करते हैं हम सब, सेना दिवस मनाकर।।
देश समूचा बलिदानी से, नित्य प्रेरणा पाता।।

युवा जुड़ें हँस सेनाओं से, बनें देश का गौरव। 
वीर कथाओं से ही बढ़ता, सदा देश का वैभव।।
१५-१-२०२२ 
***  
सॉनेट
आशा
*
गाओ मंगल गीत, सूर्य उत्तरायण हुआ।
नवल सृजन की रीत, नव आशा ले धर्म कर।
तनिक न हो भयभीत, कभी न निष्फल कर्म कर।।
काम करो निष्काम, हर निर्मल मन दे दुआ।।

उड़ा उमंग पतंग, आशा के आकाश में।
सीकर में अवगाह, नेह नर्मदा स्नान कर।
तिल-गुड़ पौष्टिक-मिष्ठ, दे-ले सबका मान कर।।
करो साधना सफल, बँधो-बाँध भुजपाश में।।

अग्नि जलाकर नाच, ईर्ष्या-क्रोध सभी जले।
बीहू से सोल्लास, बैसाखी पोंगल मिले।
दे संक्रांति उजास, शतदल सम हर मन खिले।।

निकट रहो या दूर, नेह डोर टूटे नहीं।
मन में बस बन याद, संग कभी छूटे नहीं।
करो सदा संतोष, काल इसे लूटे नहीं।।
१५-१-२०२२
***
अभिनन्दन
डॉ. रविशंकर शर्मा, कुलपति मेडिकल यूनिवर्सिटी जबलपुर
सेवानिवृत्ति पर
*
नदी सनातन नर्मदा, सकल जगत विख्यात
जबलपुर नगरी अमित, सिद्धि भूमि प्रख्यात
विद्यालय मॉडल यहाँ, गुरुकुल भाँति पवित्र
ऋषियों सम गुरुजन सतत, शोभित ज्यों मुनि चित्र
लज्जा शंकर झा सदृश , गुरुवर श्रेष्ठ सुजान
शिवप्रसाद जी निगम सम, अन्य नहीं गुणवान
कानाडे जी समर्पित, शिक्षक लेखक आप्त
रहे गोंटिया जी कुशल, चिंतक कीर्ति सुव्याप्त
रविशंकर बालक हुआ, शिक्षा हेतु प्रविष्ट
गुरु-हाथों ने निखारा, रूप किशोर सुशिष्ट
रट्टू तोता बन नहीं, समझ विषय गह सार
सीख ह्रदय में बसाई, रवि को मिला दुलार
क्षेत्र चिकित्सा का चुना, ह्रदय रोग हो दूर
कैसे चिंता मन बसी, खोज करी भरपूर
एन एस सी बी मेडिकल, कॉलेज में पा काम
विषय चिकित्सा पढ़ाकर, पाई कीर्ति सुनाम
कलर डॉप्लर का किया, सर्व प्रथम उपयोग
एंजियोग्राफी दक्षता, से कुछ कम हो रोग
एंजियोप्लास्टी सीखकर, अपनाई तकनीक
मंत्रोच्चारण का असर, परख गढ़ी नव लीक
ओंs कार उच्चार से, हृद गति हो सामान्य
गायत्री जप शांति दे, पीर हरें आराध्य
सूर्य ग्रहण सँग मनुज तन, कैसे करे निभाव?
शंख नाद ध्वनि-तरंगों, का क्या पड़े प्रभाव?
कूल्हे - गर्दन संग क्या, ह्रदय रोग संबंध?
नवाचार कर शोध से, दी नव रीति प्रबंध
स्टेथो स्कोप नव खोजा, कर नव क्रांति
'ह्रदय मित्र' पत्रिका रही, मिटा निरंतर भ्रांति
'एक्वायर्ड ट्विंस' नाम से, उपन्यास लिख एक
रविशंकर ने दिखाया, कौशल बुद्धि विवेक
'ह्रदय चिकित्सा रीतियाँ', मौलिक ग्रंथ विशेष
लिखा आंग्ल में मिली है, तुमको कीर्ति अशेष
हिंदी में अनुवाद से, भाषा हो संपन्न
पढ़ें चिकित्सा शास्त्र हम, हिंदी में आसन्न
'रविशंकर' ने तलाशी, नयी राह रख चाह
रोग मिटे; रोगी हँसे, दुनिया करती वाह
मॉडेलियन मिल कर रहे, स्वागत आओ मीत
भुज भेंटो मिल गढ़ सकें, हम सब अभिनव रीत
'रविशंकर' ने तलाशे, नए-नए आयाम
हमें गर्व तुम पर बहुत, काम किया निष्काम
कुलपति पद शोभित हुआ, तुमको पाकर मित्र !
प्रमुदित यूनिवर्सिटी है, प्रसरित दस दिश इत्र
हाथ मिलकर हाथ से, रखें कदम हम साथ
श्रेष्ठ बनायें शहर को, रहें उठाकर माथ
***
शब्द सुमन : आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
विश्ववाणी हिंदी संस्थान
४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन जबलपुर
९४२५१८३२४४, ७९९९५५९६१८

salil.sanjiv@gmail.com

मनोरमा दोहा कली, खिले बिखेरे गंध।

रस लय भावों से करे, शब्द शब्द अनुबंध।।
१५-१-२०२०
***
शिव पर दोहे
शिव को पा सकते नहीं, शिव से सकें न भाग।
शिव अंतर्मन में बसे, मिलें अगर अनुराग।।
*
शिव को भज निष्काम हो, शिव बिन चले न काम।
शिव-अनुकंपा नाम दे, शिव हैं आप अनाम।।
*‍
वृषभ-देव शिव दिगंबर, ढँकते सबकी लाज।
निर्बल के बल शिव बनें, पूर्ण करें हर काज।।
*
शिव से छल करना नहीं, बल भी रखना दूर।
भक्ति करो मन-प्राण से, बजा श्वास संतूर।।
*
शिव त्रिनेत्र से देखते, तीन लोक के भेद।
असत मिटा, सत बचाते, करते कभी न भेद।।
***
१५.१.२०१८
एफ १०८ सरिता विहार, दिल्ली
***
अभिनव प्रयोग:
नवगीत
.
जब लौं आग न बरिहै तब लौं,
ना मिटहै अंधेरा
सबऊ करो कोसिस मिर-जुर खें
बन सूरज पगफेरा
.
कौनौ बारो चूल्हा-सिगरी
कौनौ ल्याओ पानी
रांध-बेल रोटी हम सेंकें
खा रौ नेता ग्यानी
झारू लगा आज लौं काए
मिल खें नई खदेरा
.
दोरें दिखो परोसी दौरे
भुज भेंटें बम भोला
बाटी भरता चटनी गटखें
फिर बाजे रमतूला
गाओ राई, फाग सुनाओ
जागो, भओ सवेरा
१५-१-२०१५
(बुंदेलों लोककवि ईसुरी की चौकड़िया फाग की तर्ज़ पर प्रति पर मात्रा १६-१२)

***
नवगीत:
सड़क पर....
*
सड़क पर
मछलियों ने नारा लगाया:
'अबला नहीं, हम हैं
सबला दुधारी'.
मगर काँप-भागा,
तो घड़ियाल रोया.
कहा केंकड़े ने-
मेरा भाग्य सोया.
बगुले ने आँखों से
झरना बहाया...
*
सड़क पर
तितलियों ने डेरा जमाया.
ज़माने समझना
न हमको बिचारी.
भ्रमर रास भूला
क्षमा माँगता है.
कलियों से काँटा
डरा-काँपता है.
तूफां ने डरकर
है मस्तक नवाया...
*
सड़क पर
बिजलियों ने गुस्सा दिखाया.
'उतारो, बढ़ी कीमतें
आज भारी.
ममता न माया,
समता न साया.
हुआ अपना सपना
अधूरा-पराया.
अरे! चाँदनी में है
सूरज नहाया...
*
सड़क पर
बदलियों ने घेरा बनाया.
न आँसू बहा चीर
अपना भीगा री!
न रहते हमेशा,
सुखों को न वरना.
बिना मोल मिलती
सलाहें न धरना.
'सलिल' मिट गया दुःख
जिसे सह भुलाया...
१५-१-२०१५
***

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