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रविवार, 14 जून 2020

कविता

कविता
*
जो
सत्ता पा गए हैं बस चला तो देश बेचेंगे.
ये अपनी माँ के फाड़ें
वस्त्र, तन का चीर खीचेंगे.
यही तो हैं असुर जो देश से गद्दारियाँ
करते-
कहो कब हम जागेंगे और इनको दूर फेंकेंगे?
*
तराजू
न्याय की थामे हुए हो जब कोई अंधा.
तो काले कोट क्यों करने से चूकें
सत्य का धंधा.
खरीदी और बेची जा रही है न्याय की मूरत-
'सलिल'
कोई न सूरत है न हो वातावरण गन्दा.
*
*
बहाते हैं वो आँसू छद्म, छलते जो रहे
अब तक.
हजारों मर गए पर शर्म इनको आयी ना अब तक.
करो जूतों से
पूजा देश के नेताओं की मिलकर-
करें गद्दारियाँ जो 'सलिल' पायें एक भी
ना मत..
*
वसन हैं श्वेत-भगवा किन्तु मन काले लिये नेता.
सभी
को सत्य मालुम, पर अधर अब तक सिये नेता.
सभी दोषी हैं इनको दंड दो,
मत माफ़ तुम करना-
'सलिल' पी स्वार्थ की मदिरा सतत, अब तक जिए नेता..
दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

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