मुक्तिका:
अम्मी
संजीव 'सलिल'
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माहताब की जुन्हाई में, झलक तुम्हारी पाई अम्मी.
दरवाजे, कमरे, आँगन में, हरदम पडी दिखाई अम्मी.
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माहताब की जुन्हाई में, झलक तुम्हारी पाई अम्मी.
दरवाजे, कमरे, आँगन में, हरदम पडी दिखाई अम्मी.
कौन बताये कहाँ गयीं तुम? अब्बा की सूनी आँखों में,
जब भी झाँका पडी दिखाई तेरी ही परछाईं अम्मी.
जब भी झाँका पडी दिखाई तेरी ही परछाईं अम्मी.
बसा सासरे केवल तन है, मन था तेरे साथ रह गया.
इत्मीनान हमेशा रखना, बिटिया नहीं परायी अम्मी.
इत्मीनान हमेशा रखना, बिटिया नहीं परायी अम्मी.
अब्बा में तुझको देखा है, तू ही बेटी-बेटों में है.
सच कहती हूँ, तू ही दिखती भाई और भौजाई अम्मी
सच कहती हूँ, तू ही दिखती भाई और भौजाई अम्मी
भावज जी भर गले लगाती, पर तेरी कुछ बात और थी.
तुझसे घर अपना लगता था, अब बाकी पहुनाई अम्मी.
तुझसे घर अपना लगता था, अब बाकी पहुनाई अम्मी.
तू दीवाली, तू ही ईदी, तू रमजान और होली है.
मेरी तो हर श्वास-आस में तू ही रही समाई अम्मी.
मेरी तो हर श्वास-आस में तू ही रही समाई अम्मी.
९-६-२०१०
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