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रविवार, 7 जून 2020

श्री श्री चिंतन: दोहा गुंजन

श्री श्री चिंतन: दोहा गुंजन
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जो पाया वह खो दिया, मिला न उसकी आस।
जो न मिला वह भूलकर, देख उसे जो पास।।
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हर शंका का हो रहा, समाधान तत्काल।
जिस पर गुरु की हो कृपा, फल पाए हर हाल।।
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धन-समृद्धि से ही नहीं, मिल पाता संतोष।
काम आ सकें अन्य के, घटे न सेवा कोष।।
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गुरु जी से जो भी मिला, उसका कहीं न अंत।
गुरु में ही मिल जायेंगे, तुझको आप अनंत।।
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जीवन यात्रा शुरू की, आकर खाली हाथ।
जोड़-तोड़ तज चला चल, गुरु-पग पर रख माथ।।
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लेखन में संतुलन हो, सत्य-कल्पना-मेल।।
लिखो सकारात्मक सदा, शब्दों से मत खेल।।
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गुरु से पाकर प्रेरणा, कर खुद पर विश्वास।
अपने अनुभव से बढ़ो, पूरी होगी आस।।.
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गुरु चरणों का ध्यान कर, हो जा भव से पार।
गुरु ही जग में सार है, बाकी जगत असार।।
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मन से मन का मिलन ही, संबंधों की नींव।
मन न मिले तो, गुरु-कृपा, दे दें करुणासींव।।
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वाणी में अपनत्व है, शब्दों में है सत्य।
दृष्टि अमिय बरसा रही, बन जा गुरु का भृत्य।।
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नस्ल, धर्म या लिंग का, भेद नहीं स्वीकार।
उस प्रभु को जिसने किया, जीवन को साकार।।
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है अनंत भी शून्य भी, अहं ईश का अंश।
डूब जाओ या लीन हो, लक्ष्य वही अवतंश।।
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शब्द-शब्द में भाव है, भाव समाहित अर्थ।
गुरु से यह शिक्षा मिली, शब्द न करिए व्यर्थ।।
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बिंदु सिंधु में समाहित, सिंधु बिंदु में लीन।
गुरु का मानस पुत्र बन, रह न सकेगा दीन।।
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सद्विचार जो दे जगा, वह लेखन है श्रेष्ठ।
लेखक सत्यासत्य को, साध बन सके ज्येष्ठ।।
७.६.२०१८, ७९९९५५९६१८

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