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रविवार, 2 जुलाई 2017

muktika

मुक्तिका
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उन्नीस मात्रिक महापौराणिक जातीय ग्रंथि छंद
मापनी: २१२२ २१२२ २१२
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खौलती खामोशियों कुछ तो कहो
होश खोते होश सी चुप क्यों रहो?
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स्वप्न देखो तो करो साकार भी
राह की बढ़ा नहीं चुप हो सहो
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हौसलों के सौं नहीं मन मारना
हौसले सौ-सौ जियो, मत खो-ढहो
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बैठ आधी रात संसद जागती
चैन की लो नींद, कल कहना अहो!
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आ गया जी एस टी, अब देश में
साथ दो या दोष दो, चुप तो न हो
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divyanarmada.blogspot.in
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