दोहा सलिला
नाम अनाम
*
पूर्वाग्रह पाले बहुत, जब रखते हम नाम
सबको यद्यपि ज्ञात है, आये-गये अनाम
*
कैकेयी वीरांगना, विदुषी रखा न नाम
मंदोदरी पतिव्रता, नाम न आया काम
*
रास रचाती रही जो, राधा रखते नाम
रास रचाये सुता तो, घर भर होता वाम
*
काली की पूजा करें, डरें- न रखते नाम
अंगूरी रख नाम दें, कहें न थामो जाम
*
कहते गांधारी सती, किन्तु न रखते नाम
रखा नहीं धृतराष्ट्र भी, नाम व्यर्थ बदनाम
*
मिलतीं रंभा-उर्वशी, जैसे नारी आम
सद्गुण ए प्रति समर्पित, साध्य न पाया चाम
*
अपनी अपनी सोच है, छिपी सोच में लोच
निज दुर्गुण देखें नहीं, पर गुण लखें न पोच
१७-७-२०१४,
salil.sanjiv@gmail.com
#दिव्यनर्मदा
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें