कहानी सलिला: वह रात
'अलसुबह आज घने कोहरे में दो नन्हें बच्चे ठीक उसी
मोड़ पर खड़े अपनी माँ को तलाश रहे थे जहाँ उनकी जिस्मफ़रोश माँ की मृत-देह को
कोहरे ने अपनी चादर में लपेट रखा था। क्या यह औरत भी उस दरिंदे की शिकार बनी जो पुलिस
से आँख-मिचौली खेलते हुए खोज-खोजकर पिछले सात महीनों से जिस्मफ़रोश औरतों को कत्ल
किए जा रहा है?`
टेरी फ्लायर और पुलिस लेडी दोनों मेरा ध्यान खाने-पीने, खिलौनों और कार के
बाहर नज़ारे बदलती प्रकृति की ओर मोड़ने की कोशिश करने लगे.
उषा राजे सक्सेना
जन्मः 22 नवंबर 1943, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश, भारत।
शिक्षाः स्नाकोत्तर अंग्रेज़ी साहित्य,
गोरखपुर विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश। ई.एस.एल. लंदन यू.के. ब्रिटेन
में आगमनः
1967।
दशकों से कहानियों, कविताओं, ग़ज़लो, निबंधों एवं समकालीन
रपटों के लिए चर्चित उषा जी प्रवासी साहित्य को
उदात्त उँचाइयों तक ले जानेवाली आंदोलनकर्ता हैं. उनमें अपने को
रेशा-रेशा अभिव्यक्त करने की पारदर्शिता है. वे लीक से हटकर एक ऐसी एक्सप्लोरर कहानीकार हैं. उन्हें पढ़ना दो संस्कृतियों के सामंजस्य की उदात्त मानवीय अनुभूति
से आप्लावित होना है। उषा जी की रचनाओं का मूल स्त्रोत ब्रिटेन भूमि पर बसे
भारतीयों की विडंबनाएँ और उनकी बदलती मानसिकता है। यू.के. की प्रसिद्ध हिंदी पत्रिका ‘पुरवाई’ की सह-संपादिका, यू.के. हिंदी समिति की
उपाध्यक्ष, ‘साउथ लंदन
विमेंस गिल्ड ऑफ हिंदी राइटर्स’ की संस्थापक-संरक्षक उषा जी यू.के. में आयोजित राष्ट्रीय / अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक कार्यक्रमों की धुरी
हैं। आपकी कविताएँ ओसाका विश्वविद्यालय- जापान के पाठ्यक्रम में
सम्मिलित हैं। पुस्तक ‘मिट्टी की सुगंध’,एवं ‘वाकिंग पार्टनर’ पर कुरुक्षेत्र
और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के छात्रों ने एम.फिल. किया। कहानी ‘वह रात’ मेरठ के ‘चौधरी चरण सिंह
विश्वविद्यालय’ और कहानी
संग्रह ‘वह रात और अन्य
कहानियाँ’ महर्षि
दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है। आपकी कहानियाँ पंजाबी, गुजराती, तमिल और
अँग्रेज़ी में अनुवादित हो चुकी है। प्रसिद्ध गायिका मिथिलेश तिवारी ने आपकी ग़ज़लों को धुन
में बाँध कर, ‘कोई संदेसा न
आया’ के नाम से
सी.डी. को दिल्ली के अक्षरम संस्था के कार्यक्रम में लॉच किया।
प्रकाशित कृतियाँ: 1.‘इंद्रधनुष की
तलाश में’ (कविता
संग्रह, रस वर्षा सम्मान बनारस) 2.‘विश्वास की रजत सीपियाँ’(कविता संग्रह)
3.‘क्या फिर वही
होगा’ (कविता
संग्रह) 4. ‘प्रवास में’ (कहानी
संग्रह) 5.‘वाकिंग पार्टनर’ (कहानी संग्रह- पद्मानंद
साहित्य सम्मान-कथा यू.के.) 6.‘वह रात और अन्य कहानियाँ’ कहानी संग्रह, 7.‘ब्रिटेन में
हिंदी’ (प्रवासी
सम्मान मध्यप्रदेश) 8.मिट्टी की
सुगंध- कहानी संग्रह संपादन। 9.‘देशांतर’ काव्य संग्रह संपादन. 10. Deepak the Basket man-
Children’s Book 4 Pt तथा 11.Translation of borough of Merton’s Syllabus कहानी ‘क्लिक’ का टैली-फिल्म, मुंबई दूरदर्शन,इंडियन
क्लैसिकल श्रंखला में सम्मिलित।
सम्मान/पुरस्कारः कहानी ‘विरासत’ युवा लेखन पुरस्कार 1962, ‘नॉट सो साइलेंट’ 1995यू.के प्रतिष्ठित महिला सम्मान। ‘विदेशों में हिंदी साहित्य-सेवा प्रचार-प्रसार
सम्मान’ उत्तर-प्रदेश,
हिंदी-संस्थान लखनऊ 2004, बाबू गुलाब राय-पुरस्कार, ताज-महोत्सव- आगरा, ‘डॉ. हरिवंश राय बच्चन पुरस्कार’- भारतीय उच्चायोग- लंदन. चेतना साहित्य
परिषद सम्मान- लखनऊ, एवं महिला लेखिका संघ- लखनऊ, बरेली, भोपाल, एवं अन्य…संप्रतिः शिक्षक
अवकाशप्राप्त, स्वतंत्र-लेखन।
दूरभाषः 00 44 208 640 8328, चलभाष:00 44 7871582399, भारत: 00 91 9960260771
वह रात
पिछले तीन दिनों से घर के
रेडियेटर गर्म नहीं हो रहे थे। स्लॉट मीटर के पैसे बहुत पहले ही खत़म चुके थे। घर
में जितने कंबल थे अनिता ने हम सबको उढ़ा दिए थे। बिना हीटिंग के पूरा घर बर्फीला
हो रहा था। खिड़की के शीशे पर बर्फ़ की हलकी-सी पर्त जम गई थी। लैम्प-पोस्ट की
मद्धम पीली रोशनी अपारदर्शी हो रहे शीशे और पर्दो के बीच रास्ता बनाती कमरे में
पड़े कार्पेट पर नन्हें कुत्ते पूडल के आकार में लेटी हुई थी।
ऐसी ठंडी रातों में अक्सर
मैं 'बंक-बेड` के ऊपरी तल्ले पर
स्लीपिंग बैग में गुचड़-मुचड़कर सोने की कोशिश करता हूं पर कई बार नींद में मैं
अपने बंक-बेड की सीढ़ियॉं उतर कर चुपके से अनिता के बिस्तर में घुस, उसके गर्म बदन से
चिपक जाता हूं। अनिता मुझे अपने सीने से चिपका लेती है। उसके बदन की गर्मी महसूस
करते हुए सो जाना मुझे अच्छा लगता है। कभी-कभी ऐसे में चार वर्षीय रेबेका और रीटा
मेरी जुड़ुआ बहने भी अनिता के बिस्तर में घुस आती है। मुश्किल तो तब होती है जब
रेबेका बिस्तर भिगो देती है पर चतुर अनिता उसे पास रखे सूखे तौलिए में लपेट देती
है और हम आराम से एक दूसरे से चिपके तब तक सोते रहते हैं जब तक साइड-बोर्ड पर रखी
घड़ी आठ बज कर पॉंच मिनट का अलार्म नहीं बजाने लगती है।
अक्सर घर में पैसों की तंगी
हो जाती है फिर भी ममी हमारे लिए बेबी-सिटर का इंतज़ाम किसी न किसी तरह कर ही लेती
है। कभी-कभार ऐसा भी हुआ है कि बेबी सिटिंग के लिए कोई भी नहीं मिल पाया तो ऐसे
में ममी रात को हमें बिस्तर में सुलाकर, सख़्त निर्देश देकर घर के पिछले दरवाजें से चुपचाप
बाहर निकल जाती है और सुबह हमारे उठने से पहले घर आ जाती हैं।
आमतौर पर सुबह-सुबह ममी बेहद
थकी होती हैं। कई बार वह अपने ग्राहकों के साथ इतनी शराब पी लेती हैं कि उसे भयंकर
सिरदर्द होता है। ऐसे में अनिता सुबह झटपट तैयार होकर रेबेका-रीटा को दूध के साथ 'वीटाबिक्स` नाश्ते में देकर खुद
तैयार होने लगती है। रेबेका-रीटा बिस्कुट खाते हुए ममी के उठने तक टी.वी. पर सुबह
आने वाले बच्चों के कार्यक्रम देखती रहती हैं। अनिता कार्नफ्लेक्स खाते-खाते मुझे
आवाज़ें लगाती रहती है। जब अनिता तंग आकर अकेले ही स्कूल जाने की धमकी देती है तब
मै सीढ़ियॉं फलांगता हुआ डफल कोट के बटन लगाता नीचे आता हूं। अनिता जानती है मैं, जग भी जाऊँ तो भी
मेरा पेट देर तक सोता रहता है। वह मुझे हड़काती हुई फलों की टोकरी में से एक सेब
मेरे कंधे पर लटके बैग में डालते हुए मुझे तेज़ी से खींचती हुई स्कूल के लिए भगाती
है। हम अक्सर दौड़ते हुए स्कूल जाते हैं। हमे मालूम है अगर हम तीन दिन तक लगातार देर
से स्कूल पहुचेंगे तो चौथे दिन ममी की स्कूल में पेशी हो जाएगी, जो ममी को बिल्कुल
नहीं पसंद है। हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद भी ममी को कई बार हम सबके लिए बड़ी जिल्लतें भुगतनी पड़ती है।
मुझसे सिर्फ़ एक साल बड़ी, मेरी बहन अनिता, बेहद समझदार है।
स्कूल में जब कभी हमारे घरेलू मामलों के बारे में पूछ-ताछ होती है तो ममी को तमाम
झंझटों से बचाने के लिए वह ढेर सारे बहाने बना लेती है। मैं तो बस उसकी हाँ में हाँ मिलाता रहता हूँ। मिस बेनसन और मिस ऑस्बोर्न को तो वह खूब अच्छी तरह पटा लेती
है। अनिता है ही ऐसी प्यारी,
पड़ोसियों को छोड़कर उसकी सबसे अच्छी पटती है। हमारे पड़ोसी अच्छे लोग नहीं
है। वे हमें देखते ही हमारी ममी पर व्यंग्य करते हुए हमें सुना-सुनाकर गंदी-गंदी
बातें करने लगते हैं।
कल रात फिर मम ने हमें जल्दी
ही ऊपर सोने के लिए भेज दिया। उस समय शाम के सात बजे थे। कोई पंद्रह मिनट बाद
बाथरूम में टब भरने की आवाज़ आई शायद ममी नहा रही होगी। थोड़ी ही देर बाद सीढ़ियों
के चरमराने की आवाज़ से मुझे लगा कि ममी नीचे गई है। रेबेका-रीटा सो चुकी थी। मुझे
भी नींद आ रही थी पर अनिता के दबे पाँव नीचे जाने की आवाज ने मुझे उत्सुक कर दिया
था। अनिता वापस ऊपर आई तो मैं बंक-बेड में बैठा इनेड ब्लाइटन की लिखी जासूसी
उपन्यास 'फेमस फाइव` पढ़ रहा था। मुझे
किताब पढ़ते देख, अनिता मुस्कराई फिर
मेरे पास आकर फुसफुसाते हुए बोली: 'तू तो जरूर एक दिन प्रोफेसर बनेगा.... सुन! अभी मैं
नीचे गई थी, मम बाहर जानेवाली
है।वह सफेद जैज़ी मिनी स्कर्ट और लाल टैंक टॉप में बहुत खूबसूरत लग रही थी।'
मुझे
सीढ़ियों के पास चुपचाप खड़ा देख बोली: 'क्या बात है? तुझे नींद नही आ रही है क्या?'
'मालूम, उसने शरारत से आँखें मटकाते हुए मुस्कराकर कहा: 'मुझे पता था कि ममी
बाहर जा रही है पर फिर भी मैंने उससे पूछा: 'क्या तुम बाहर जा रही हो?` ममी ने मुझे बहलाने
के लिए भौंहें उठाकर होठों पर आई मुस्कराहट को छुपाते हुए कहा, 'नहीं तो!`
अनिता ने एड़ियों पर उचककर
मेरी आँखों में झाँकते हुए कहा: 'मुझे पता था मम मुझे बहका रही है पर मैं भी डीठ हूँ न, मैंने कहा: 'मॉम, मुझे तेरा प्यार
चाहिए। मुझे बाँहों में भरकर प्यार दो ना!` न जाने क्यों मेरा मन मम से लिपटने को मचल उठा।`
'अच्छा चल, आजा नटखट लड़की` कहते हुए उन्होंने हाथ में पकड़ी लिपिस्टिक ड्रेसर
पर रखते हुए मुझे बाँहों में भरकर कहा: 'आ आजा मेरी प्यारी बिटिया! इसके पहले कि मैं
लिपिस्टिक लगाऊँ, आ, तुझे जी भरकर प्यार
दे दूँ और सुन! मैं आज रात जल्दी ही लौट आऊँगी, कल तू नौ बरस की हो जाएगी न! आज रात
मैं तेरे जन्मदिन के लिए ढेरों पैसे कमाऊँगी। तुम लोग अपने कमरे से बाहर मत निकलना, अच्छा!` कहते हुए मम ने प्यार
का चुम्बन मेरे होठों पर देकर, मुझे ऊपर भेज दिया। ममी के साफ़-सुथरे ताज़ा नहाए ठंडे बदन
से बेहद प्यारी साबुन और परफ्यूम की खुशबू निकल रही थी और पता, वह आज बेहद खूबसूरत
लग रही थी।`
'सच` कहते हुए मैंने अनिता के गालों को चूमा तो उसमें से मुझे मम
के परफ्यूम और साबुन की मिली-जुली खुशबू आई। अब तक मुझे नींद आने लगी थी। मैंने
उनीदी ऑंखों से अनिता को देखा, वह ममी जैसी ही खूबसूरत और आकर्षक लग रही थी। वही नीली आँखें, वही सुनहरे घुँघराले बाल, वही तना हुआ गर्वीला बदन!
उस रात जब मैं गहरी नींद में
था अनिता ने मुझे तेज़ी से झिझोड़ते हुए जगाया।
'सुन मार्क मम अभी तक घर नहीं आई है।` अनिता मेरे कानों
में फुसफुसाई। तभी अचानक रेबेका और रीटा दोनों नींद में चिहुंककर रोने लगीं। अनिता
ने उनके मुंह में चुसनी डालकर उन्हें थपका।
'क्या?` दहशत से आँख फाड़ते हुए, मैंने दीवार-घड़ी
देखी, सुबह के साढ़े पाँच
बज रहे थे। ममी ढाई-तीन बजे तक हर हाल में घर आ जाती है।
'तूने नीचे लिविंग रूम और टॉयलेट में तो देखा अनी?` मैंने घबराकर अनिता
से पूछा।
'मैं सारा घर छान चुकी हूँ मार्क।`
'अब हम क्या करेंगे?` मेरे बदन का पोर-पोर सहम उठा। मैं रुआँसा हो गया।
ऐसा पहली बार हुआ है कि मेरी आँख खुली हो और ममी घर में न हों और अनिता घबराई हुई
हो। रेबेका और रीटा अब तक चुप
होकर झपकी लेने लगी थीं। मुझे तसल्ली देते हुए अनिता
मेरे कानों में फुसफुसाई 'रेबेका-रीटा अभी कम से कम दो घंटे और सोएंगीं। हम
बाहर चलकर मम को खोजते है।`
मुझे याद आया बहुत पहले
अनिता ने एक बार मुझे बताया था कि एक रात माम पिछले दरवाजें के पास सीढ़ियों पर
नशे में धुत पड़ी हुई थी उसके बदन पर जगह-जगह चोट के निशान थें। वह उन्हें सहारा
देकर अंदर लाई थी। देर-सबेर अनिता मुझे सारी बातें बता देती है। मैं अनिता की बताई
बातें बहुत ध्यान से सुनता हूँ यद्यपि उसकी बताई सारी बातें न तो मुझे समझ आती है
ना ही याद रहती हैं।
मैंने अनिता के कहने पर नीचे
से लाकर दो पैकेट बिस्कुट,
रेबेका-रीटा के पसंद के कुछ खिलौने और उनकी दूध की बोतल बंक-बेड से लगे मेज़
पर रखते हुए अनिता की ओर देखा। वह एक नज़र रेबेका-रीटा पर डाल, अपने पजामें के ऊपर
ही जीन्स चढ़ा रही थी। उसे देखकर मैंने भी अपने पजामें के ऊपर जीन्स चढाकर डफल-कोट
के बटन पूरी तरह से बंद कर जूतों के तस्में बाँधे। अनिता मेरी आदर्श है इसलिए
अनिता जो भी कहती है मैं वही करता हूँ। उसके पास मेरी हर समस्या का कोई न कोई हल
ज़रूर होता है पर इस समय हम दोनों घबराए हुए थें। अनीता ने अपने काँपते होठों को मुँह के अंदर दबा रखा था। मेरे गले में गुठली फँसी हुई थी। मैं बार-बार अनिता के
चेहरे की ओर दिलासे के लिए देख रहा था पर उसके चेहरे के साथ-साथ सारे घर में भयानक
खामोशी लोट रही थी।
मैंने लैडिंग में जाकर पंजों
पर उचक, खिड़की से घर के
पिछवाड़े के बागीचे और 'एलीवे` को देखा। दोनों ही
सुनसान पड़े थें। ममी का कहीं कोई पता नहीं था। थोड़ी देर पहले बारिश हो चुकी थी।
पेड़ों के पत्तों से पानी चू रहा था। झाड़ियों और घास पर टॅंकी पानी की बूँदें
बिजली की मद्धम रोशनी में रेबेका रीटा के आँखों से टपके आँसुओं जैसी लग रही थीं।
जगह-जगह पानी के चहबच्चे चमक रहे थें। पेड़ों के नीचे घना अँधेरा पसरा हुआ था।
रेबेका और रीटा गहरी नींद
में थीं। उनपर एक नज़र डाल,
हम दबे पाँव सीढ़ियों से नीचे उतरे। रसोईघर वैसा ही बिखरा-छितरा जूठे खाने
के बर्तनों के साथ पड़ा हुआ था जैसा कल रात मम ने छोड़ा था। ममी चाहे कितनी भी थकी
हों, घर में पैसों की
चाहे कितनी भी क़मी हो, पर रात को बाहर जाने
से पहले वह हमारे लिए कुछ ना कुछ गर्म खाना ज़रूर बनाती है। कल रात मम ने हमारे
लिए पोर्क सॉसेज, फिश फ़िंगर और बीन्स
बनाए थे। सॉसेज, फ़िश और ममी के
सिग्रेट की मिली-जुली सुहानी गंध अभी भी रसोई और लिविंगरूम में तैर रही थी। मैंने
एक लंबी सॉंस भरी और मन ही मन ममी को पुकारा।
पिछवाड़े का दरवाज़ा जो
रसोईघर से लगा हुआ था, वह उड़का हुआ था।
ममी ज्यादातर पड़ोसियों की तानेबाज़ी और चुगलियों से बचने के लिए पिछले दरवाज़े से
ही बाहर जाना पसंद करती है। कल रात भी वह पिछले दरवाज़े से ही पड़ोसियों से
छुप-छुपा कर गई होगी। एक बार पड़ोसी कैरोलाइन ने ममी को बाहर जाते देखकर पुलिस को
फ़ोनकर दिया कि घर नम्बर ६५ में बच्चे अकेले हैं। पुलिस हम सबको अपने साथ ले जाने
ही वाली थी कि ममी वापस घर आ गई। बाद में अनीता ने मुझे बताया कि उसने पुलिस-गाड़ी
देखते ही मम को मोबाइल पर फोनकर बता दिया था और ममी ठीक समय पर पिछवाड़े के
दरवाज़े से घर आ गई। पड़ोसियों को मुँह की खानी पड़ी।
++++
चारों तरफ़ अँधेरा था। मेरा
दिल बुरी तरह से धड़क रहा था। पिछवाड़े का बगीचा जिसमें हम हर रोज़ खेलते है इस
समय अजीब सा अनजाना और डरावना लग रहा था। आमतौर पर जब हम बगीचे में होते हैं तो
हमें पड़ोसियों के घरों से आती टेलिविज़न और रेडियो की आवाज़ो के साथ उनके लड़ाई-झगड़ों की चीख-पुकार भी सुनाई देती है। इस समय बगीचे में इस तरह का सन्नाटा छाया
हुआ था कि ज़मीन पर पड़ती पेड़ों की हिलती छाया भी हमें डरा रही थी। चेरी का वह
घना-पुराना पेड़ जिस पर हमने ट्री-हाउस बना रखा है, झूलने के लिए गाँठोंवाली रस्सी टाँग रखी है इस समय
फ़ी-फ़ाय-फ़ो-फ़म करनेवाले दैत्य सा भयावना लग रहा था।
अँधेरे में लुकते-छिपते, पड़ोसियों की गिद्ध
दृष्टि से बचते हुए हम 'एलिवे` की दीवार और झड़ियों
से चिपके आगे बढ़ते जा रहे थे। अचानक हमारे चारों तरफ़ घना कुहासा उतर आया।
कहीं-कहीं फिसलन भी थी। मेरा मन चाह रहा था कि इस मुसीबत की घड़ी में अनिता मुझसे
बात करे, मुझे बताए कि मम
हमें कहॉं मिलेंगी? पर अनिता थी कि कुछ बोल ही नहीं रही थी। अंत में मेरा धीरज
जवाब दे गया और मैं सुबकियों के साथ गले से निकलती आवाज़ को घूँटता हुआ रोने लगा।
अनिता एक पल रुकी उसने अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डालते हुए कहा: 'रो मत, पगले, ममी यहीं कहीं होगी। हो सकता है वह सुपरमार्केट दूध
या सिगरेट लेने गई हो।`
'अनिता, मुझे डर लग रहा है।` मैंने उसके हाथों को कसकर पकड़ते हुए कहा, 'ममी ठीक तो होगी ना।` मैं अपने आप को भरसक
सहज करते हुए फुसफुसाया।
अनिता ने 'मिटन` के अंदर बंद ऊँगलियों से मेरे गालों को सहलाते हुए कहा, 'घबरा मत, मैं हूँ न। हम सड़क की ओर चलते हैं मार्क। ममी बस
आती ही होगी।`
अब तक हम उस जगह पर पहुँच गए
थे जहाँ 'एलिवे` सड़क से मिलती है।
कोहरे के कारण हम पॉंच-छ: फीट से ज्य़ादा दूर तक नहीं देख पा रहे थें। लैम्पपोस्ट
की रोशनी में कोई दम नहीं था। हम थोड़ी देर वही खड़े हर दिशा में गर्दन
घुमा-घुमाकर ममी को तलाशते रहें, फिर हमने बड़ी सावधानी से ग्रीन-क्रॉस कोड के एक-एक आदेश को
ध्यान में रखते हुए, ज़ेब्रा क्रॉसिंग से उस चौड़ी सड़क को पार किया जिस पर दोनों
तरफ़ से ट्रैफ़िक आ जा रही थी। आते-जाते कारों और ट्रको की तेज़ रौशनी में वर्षा
के कारण गीली सड़क रह-रह कर चमक उठती।
'मार्क! हम यहीं बस स्टाप के बेंच पर बैठकर ममी की
प्रतीक्षा करते हैं, वह ज़रूर ही किसी न
किसी बस से वापस आएगी।` अनिता की आँखों में
उतर आई चिंता, चेहरे पर फैली उदासी
और आवाज़ में आई कँपकँपाहट मुझे अंदर तक तोड़ती चली गई। मैं बेंच पर अनिता से सटकर
बैठा, पाँव हिलाता रहा।
स्टील की बेंच बर्फ की तरह नम और ठंडी थी। बिना मोज़े के जूतों में बँधे मेरे पाँव
सुन्न हो रहे थे। हम हर पल और अधिक व्याकुल होते जा रहे थें।
तभी सड़क के दूसरे छोर से
लाल रंग की डबल डेकर बस आती दिखी। बस के अंदर बत्तियाँ जल रही थीं। हमारे घबराए मन
को भरोसा-सा हुआ। बस की जलती-बुझती बांई बत्ती संकेत दे रही थी कि बस हमारे स्टाप
पर रुकेगी। बस रुकी। दरवाज़ा हिस्स की आवाज़ करता हुआ खुला पर उसमें से कोई नहीं
उतरा....बस ड्राइवर ने ज़रा आगे झुककर पूछा: क्या तुम लोग बस में चढ़ रहे हो?
'नहीं` अनिता ने सिर हिलाते हुए कहा: 'हम अपनी ममी का
इंतज़ार कर रहे हैं।` रात भर का जगा
ड्राइवर शायद अच्छे मूड में नहीं था उसने बड़बड़ाते हुए धड़ाम से दरवाज़ा बंद कर
लिया। अनिता ने मेरी ऑंखों में आई
उदासी को पढ़ते हुए मुझे अपनी बाँहों के घेरे में लेते हुए सांत्वना दी, 'चिंता मत कर मार्क, ममी अगले बस में
ज़रूर आ रही होगी।`
.....पर बसें आती और जाती रहीं, गहरे काले आकाश से
हल्की-हल्की रोशनी धरती पर उतरने लगी थी। अब तक तकरीबन नौ-दस बसें आ-जा चुकी थीं।
ममी किसी भी बस से नहीं उतरी। अचानक अनिता, रेबेका और रीटा की ओर से चिंतित होकर बुदबुदाई, 'वे जग गई होंगी और
हमें घर में न पाकर रो रही होंगी।`
हम दोनों, दहशतज़द, निराश, कंधे झुकाए, चुपचाप घर की ओर चल
पड़े। सड़क पार करते-करते हमने मन
ही मन पूरा यक़ीन कर लिया था कि ममी किसी और रास्ते से घर पहुँच गई होगी और हमें
घर में न पाकर परेशान, दरवाजे पर त्योरी
चढ़ाए, हमें फटकारने को
तैयार खड़ी होंगी। ममी के खयाल भर से ही हम अपने-आप को सुरक्षित महसूस करने लगे थे।
अलस्सुबह आस-पास के तमाम घरों
की बत्तियाँ जल गई थीं। लोग रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त इधर उधर आ-जा रहे थे।
हम दोनों ने डफल कोट के हुड में अपने-अपने चेहरे छुपा रखे थे। हम नहीं चाहते थे कि
कोई पड़ोसी हमें इस लाचार और दयनीय स्थिति में देखकर ममी को आवारा और लापरवाह कहे। अजीब स्थिति थी हमारे मन की, एक तरफ हम भयभीत हो
रहे थे कि हमें घर में न पाकर ममी बहुत गुस़्साकर रही होंगी, दूसरी तरफ़ ममी के
होने भर की कल्पना से हम अपने आप को सुरक्षित समझने लगे थे तीसरी तरफ हमें अपराध बोध
हो रहा था कि हमें किसी भी हालत में जुड़ुवा बहनों को घर में अकेले नहीं छोड़ना
चाहिए था। वे अभी बच्चियाँ है। हम अंदर ही अंदर बेहद डरे, अकेले और असुरक्षित
थें।
घर पहुँचते ही अनिता ने
मुझसे कहा कि मैं ऊपर बेडरूम और बाथरूम में जाकर ठीक से देखूँ कि ममी आ गई है। इसी
बीच अनिता ने नीचे के सारे कमरे देख डाले। छोटा सा घर पल भर में हमने इस तरह छान मारा
जैसे कि हम अपनी ममी को नहीं, उनके चाबी के गुच्छे को खोज रहे हैं।
'अब हम क्या करें?` लंबी सांस लेते हुए मैंने अनिता से पूछा।
'मैं ऊपर जाकर रेबेका और रीटा को नीचे लाती हूँ। तुम
जल्दी से कपड़े बदलकर टेबुल पर वीटाबिक्स कटोरों में डालकर तैयार रखो। रेबेका-रीटा
भूखी होंगी। रेबेका-रीटा स्वभाव से खामोश किस्म की बच्चियाँ है। उनका मन टी.वी. में
खूब रमता है। उन्हें खाने को मिलता रहे तो वे अपनी गंदी नैपी में भी चुपचाप बैठी
टी.वी. देखती रहेंगी। स्कूल जाने का समय हो रहा था। ब्रेकफ़ास्ट सीरियल का पहला
चम्मच मुँह में रखते हुए मैंने अनिता से पूछा: 'ऐसे में हम स्कूल जाएँगे क्या?
'पता नहीं। देखती हूँ।` अनिता परेशान सी
बोली।
'जब तक मैं रेबेका और रीटा को हाई-चेयर में 'स्ट्रैप` कर के उन्हें बिस्कुट
का पैकेट पकड़ाकर, टी.वी. चालू करती
हूं तब तक तू बाहर गेट से झाँककर देख शायद ममी सड़क के दूसरे छोर पर दिख जाए।'
अनिता जो कुछ मुझसे कहती है
वह सब करना मुझे अच्छा लगता है। मैं भागता हुआ बाहर गेट पर आया। सुबह हो चुकी थी।
आकाश में काले बादल छाए हुए थे। हल्की-हल्की बारिश हो रही थी। हमारी सड़क के अंतिम
सिरे पर जहाँ हम कुछ देर पहले खड़े चारों तरफ़ गर्दन घुमा-घुमा कर ममी को तलाश कर
रहे थे वही इस समय लाल-नीली,
जलती-बुझती बत्तियोंवाली पुलिस गाड़ियों के साथ एबुलेन्स खड़ी थीं। पुलिस ने
सड़क पर लाल-नीली पटि्टयों का घेरा डाल रखा था। एक पुलिस-मैन ट्रैफ़िक को घुमाकर
दूसरी ओर भेज रहा था। पुलिस और एबुलेन्स की जलती-बुझती लाल-नीली बत्तियाँ लोगों को
अपनी तरफ़ आकर्षित कर रही थी। सुबह-सुबह ऐसा अजीबो-गऱीब दृश्य मैंने पहले कभी
नहीं देखा था। उत्तेजना से थरथराता मैं भागता हुआ अंदर गया, अनिता की आँखों में आए प्रश्न के उत्तर में मैंने उसे बताया कि हमारी सड़क के अंतिम सिरे पर पुलिस
गाड़ियों, एबुलेन्स और लोगों
का मजमा लगा हुआ है। अनिता ने रेबेका और रीटा के
हाथों में बिस्कुट पकड़ाते हुए उनसे कहा: 'तुम दोनो थोड़ी देर यही सोफ़े पर बैठकर कार्टून
देखो, मार्क और मैं ज़रा
बाहर जाकर देखते हैं कि सड़क पर क्या हो रहा है?
घटना स्थल के करीब पहुँचते ही मैंने अपने उन पड़ोसियों को पहचान लिया जो पुलिस से बातें कर रहे थें। शायद वे
लोग हमारे घर की तरफ़ देख रहे थे। तभी एक पुलिस ऑफिसर की दृष्टि हम पर पड़ गई वह
आगे बढ़ा, हमारे पास आया और
बोला, 'बच्चों! तुम लोग कौन हो और इस समय अकेले कहाँ जा रहे हो?`
'मेरा नाम अनिता मैकाफ़ी है और यह मेरा छोटा भाई
मार्क मैकाफ़ी है। हमारी ममी अंजला मैकाफ़ी रात घर नहीं आई और हम उसे ही खोज रहे
हैं।
हमारा नाम सुनते ही ऑफ़िसर
के आँखों और चेहरे के भाव बदल गए उसने बड़े ही कोमल स्वर में हमसे पूछा, 'तुम लोग कहाँ रहते हो बच्चों।` अनिता ने उसे घर का
नम्बर और सड़क का नाम बताया। पुलिस आफ़िसर ने अपनी वॉकी-टॉकी पर किसी से कुछ बाते
कीं और हमें वापस हमारे घर ले आया। हमारा घर पूरी तरह से अस्त-व्यस्त था। ममी को
घर-गृहस्थी में कोई रुचि नहीं थी। हमें पुलिस-मैंन के साथ देखकर, रेबेका और रीटा कुछ
नर्वस-संकुचित सी मुझसे चिपककर सोफे पर बैठ गई। अनिता साइडबोर्ड के पास खडी ऑफिसर
का चेहरा देखती रही। पुलिस ऑंफ़िसर कुछ देर चिंतित-परेशान-सा हमारे घर की हालत
देखता रहा जैसे कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह हमसे कैसे और क्या बातें करे?
'तुम्हारे डैडी कहाँ हैं बच्चों?`
'हमारे डैडी नहीं है। उनकी मृत्यु 11 मई 1985 को
ब्रैडफ़ोर्ड फुटबॉल स्टेडियम में लगनेवाले अग्निकांण्ड के हादसे में हो गई थी। वे
लॉंग-डिस्टेन्स लॉरी ड्राइवर होने के साथ-साथ जबरदस्त फुटबाल फैन थें। अनीता ने
जिस आत्म विश्वास से पुलिस को जवाब दिया वह मुझे बहुत अच्छा लगा।
'ओह! डीयर मुझे बेहद अफ़सोस है कि मैंने तुमसे ऐसा
प्रश्न किया। तुम्हारी ममी घर से कब गईं और तुमने उन्हें आखरी बार कब देखा था
बच्चों?` ऑफ़िसर ने अनिता से
पूछा।
'कल रात, तकरीबन साढ़े सात बजे।`
'ममी के अतिरिक्त तुम्हारे साथ और कौन रहता है।` उसने रेबेका और रीटा
की ओर देखते हुए कहा, रेबेका और रीटा के
बाल काले और घुँघराले है,
उनका रंग हमारी तरह गोरा नहीं हैं।
'क्या तुम चारों सगे भाई-बहन हो?` ऑंफिसर ने हल्के से
खखारकर गला साफ़ किया।
'रेबेका और रीटा हमारी हाफ़ सिस्टरर्स है। हम ममी के
साथ अब अकेले रहते हैं ऑफ़िसर। क्या आपको हमारी ममी का पता है? वे कहाँ हैं?`
'वही तो मैं पता करना चाह रहा हूँ अनिता। तुम्हारे
जुड़ुवा बहनों के पिता क्या कभी घर आते हैं?` पुलिस आफ़िसर ने हमसे पुचकारते हुए पूछा।
'तुम्हारा मतलब, ममी के ब्वाय-फ्रैंड आली गंज़ालिब से है क्या? वह तो कबका ममी से
झगड़ा कर के भाग गया।` अनिता की आली से कभी
नहीं पटी वह उससे खार खाती है।
'क्या तुम्हारी ममी और आली गंज़ालिब की कोई फोटो घर
में है?'
'नहीं, घर छोड़ने से पहले आली ने हमारे सारे फ़ोटो और
रीटा-रेबेका के बर्थ सर्टिफिकेट जला दिए थे। अनिता ने इस तरह मुँह बिगाड़कर कहा
जैसे किसी ने उसे कड़वा बीयर पिला दिया।
मैं ममी के अभी तक घर न आने
से इतना नर्वस और घबराया हुआ था कि पुलिस और अनिता के बीच हो रही बातें मेरे पल्ले
नहीं पड़ रही थीं। आली बेहद गुस्सेवर और लड़ने-झगड़ने वाला था। ममी के साथ कभी-कभी
वह गुस्से में आकर हमारी भी पिटाई कर देता था।
हमसे बातें करते-करते पुलिस
ऑफ़िसर रसोई में चला गया वह पुलिस रेडियो पर अपने कंट्रोलरूम से बातें कर रहा था।
मुझे उसकी दबी-दबी आवाजें सुनाई तो दे रही
थी पर कुछ समझ नहीं आ रहा था। हमेशा चहकने और बातचीत की शौकीन अनिता का चेहरा
घबराहट से ज़र्द होता जा रहा था। शायद वह पुलिस की बातों को काफी हद तक समझ रही
थी। जब पुलिस आफिसर रसोई से बाहर निकलकर आया तो उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें थी।
वह नर्वस और चिंतित लग रहा था। शायद वह हमसे कुछ कहना चाह रहा था पर उसे कुछ समझ
नहीं आ रहा था। तभी उसकी नज़र टेबल पर पड़े अनिता के कोर्सबुक की एक किताब पर पड़ी
उसने उसे उठाकर कहा: 'आओ इस किताब में से एक कहानी पढ़े.....`
'वह कोर्सबुक है
कहानी की किताब नहीं` मैंने कहना चाहा पर
संकोच के कारण मेरे मुँह से आवाज़ तक नहीं निकली। तभी दरवाज़े पर कुछ हलचल हुई एक
पुलिस-लेडी कमरे में दाखिल हुई जिसका चेहरा बच्चों के कहानियों की जनप्रिय नायिका
मैरी पॉपिन्स जैसा प्यारा था। पुलिस-लेडी ने बेहद प्यारी आवाज़ में हम लोगों से हाथ
मिलाते हुए अपना नाम बताया फिर उसने हमारा नाम पूछा। वह हमसे इस तरह प्यार से बातें
कर रही थी जैसे वह हमें अर्से से जानती थी और वह हमारी कोई रिश्तेदार हो जैसे बूआ
या मौसी। उसने हम चारों को किट-कैट चाकलेट का एक-एक बार पकड़ाते हुए कहा: 'बाहर लाल-नीली बत्तियोंवाली पुलिस गाड़ी हमारा इंतज़ार कर रही है।' हम चहक उठे। एक बार जब मैं कार्निवल में
खो गया था तो पुलिस गाड़ी इसी तरह मुझे ममी के पास ले गई थी। मुझे लगा हमारी ममी
ज़रूर किसी मुसीबत में फँस गई है इसीलिए हमें उसके पास ले जाया जा रहा है।
वैसे भी हमें कार में जाने
के मौक़े कम ही मिलते हैं इसलिए इस अजीबो-गरीब दुःखद परिस्थिति में भी हम पल भर को
पुलक उठे, किंतु यह पुलकन
ज्यादा देर नहीं रही। हमारे कार में बैठते ही कार चल पड़ी, हमारा घर हमसे दूर
पीछे छूटता जा रहा था। अनिता बार-बार पीछे मुड़कर देख रही थी। उसने कई बार पुलिस-लेडी
से ममी के बारे में पूछा पर वह हमसे और-और बातें करती रही। हम डरे-सहमे कार की
पिछली सीट पर एक दूसरे के हाथों में हाथ फँसाकर बैठ गए। इस समय हमें कुछ पता नहीं
था कि हम कहाँ जा रहे हैं
और क्यों जा रहे है? मैंने अनिता की ओर देखा वह भी बेचैन और घबराई हुई थी।
रेबेका-रीटा हर चीज़ से बेखबर मुँह में अँगूठा डाले एक-दूसरे से चिपकी हुई कार
चलते ही सो गई।
कोई बीस मिनट सड़क पर दौड़ने
के बाद कार बाई ओर मुड़ी, सड़क के दोनों ओर
कॉंकर और ओक के घने लंबे-तड़गे वृक्ष लगे
हुए थे। कार लाल बजरी वाले सड़क के आखरी छोर पर घने पेड़ों के बीच छिपे एक मैनर
हाउस के आगे लगे आयरन गेट के आगे जाकर रुक गई। पुलिस ऑफ़िसर ने रेडियो से अंदर कुछ
संदेस भेजे। थोड़ी ही देर में वह लंबा-चौड़ा लोहे का गेट अपने आप धीरे-धीरे बिना
आवाज़ खुलता चला गया। मकान के चारों ओर बगीचा था। जिसमें स्लाइड, ट्रैम्पोलिन, क्लाइमिंग फ्रेम, नेट बॉल आदि विभिन्न
प्रकार के खेल-कूद और कसरत करनेवाले उपकरण लगे हुए थे। गेट के बाई ओर दीवार पर
पीतल के बोर्ड्र पर 'सेन्ट वैलेन्टाइन
चिल्ड्रेन्स होम` काले रंग में खुदा
हुआ था। हम चारों भाई-बहन सहमे हुए एक दूसरे का हाथ पकड़े, पुलिस-लेडी के साथ
स्वचालित दरवाज़ों के बीच गुज़रते हुए एक लंबे गलियारे को पार कर विशाल खुले बैठक
में पहुँच गएँ. हमें सोफे पर बैठने को कहा गया जिसमें एक ओर बच्चों के ढेरों
खिलौने और किताबें शेल्फ़ और आलमारियों में सजाकर रखे हुए थे। यद्यपि हम संकुचित, घबराए, डरे और आशंकित थें
फिर भी हमें अपने कबाड़खाने और चिल्ल-पों वाले जैसे घर से यह घर ज्यादा अच्छा लग
रहा था।
शायद इस बड़े घर में
रहनेवालों को पता था कि हम आने वाले हैं इसलिए उन्होंने हमारे आते ही हमें गर्म
कोको, चाकलेट और बिस्कुट
आदि खाने-पीने को देते हुए कहा कि हम वहाँ रखे किसी भी खिलौने से खेल सकते है। उन
बड़े और अच्छे लोगों का ध्यान हम पर केंद्रित था मानों हम उनके कोई मेहमान हों। थोड़ी ही देर में एक
फोटोग्राफर आया है। उसने हम चारों से कहा यदि हम अपने मनपसंद खिलौनों के साथ सोफे
पर बैठ जाए तो वह हमारी बहुत सारी तस्वीरें उतारेगा। हमारे पास अपनी कोई फ़ोटो
नहीं थी इसलिए हमें अपनी फोटो खिंचवाने वाली बात बहुत अच्छी लगी। अनिता ने बार्बी
डॉल हाथ में उठाया और बेमन से चुपचाप हमारे साथ फ़ोटो खिंचवाती रही। उसने
फोटोग्राफर से कोई प्रश्न नहीं किया। फ़ोटोग्राफ़र ने हम लोगों की बहुत सारी फोटो
खींची।
फ़ोटोग्राफर के जाने के बाद
हम दुबारा फिर खिलौनों से खेलने लगें पर अनिता चुप-चाप वहीं हमारे पास पड़े सोफे
पर बैठी, टेलिविज़न देखते हुए, वहाँ के लोगो का
आना-जाना देखती रही। शायद वे लोग जल्दी में थें। पीछे के कमरे से बार-बार टेलीफोन की
घंटी बजने और फोन उठाने की आवाज़ आ रही थी। मुझे और रेबेका-रीटा को खिलौनो से
खेलना बड़ा अच्छा लग रहा था। सभी खिलौने नए और मँहगे थें। हम कभी एक खिलौना उठाते
और कभी दूसरा। अभी हमें खिलौनों से खेलते हुए कुछ ही देर हुआ था कि वह मैरी पॉपिन
जैसी खूबसूरत चेहरेवाली खुशमिजाज़ पुलिस-लेडी अनिता का हाथ पकड़ कर हमारे पास
कारपेट पर आकर बैठ गई। थोड़ी देर वह भी हमारे साथ खिलौनों से खेलती रही फिर उसने
हमसे कहा, 'बच्चों मुझे तुमसे
कुछ गंभीर बातें करनी है।`
आज तक किसी ने हमसे गंभीर बातें नहीं की थी, हम चारों खेलते-खेलते रुक गए और उसकी ओर मूर्खों की
तरह देखने लगे... उसने बडे प्यार से
रीटा-रेबेका को अपनी गोद में बैठाते हुए मेरे और अनिता के हाथों को अपने हाथ में
लेकर सहलाते हुए कहा: 'देखो बच्चों! तुम्हारी ममी अब तुमसे बहुत दूर चली गई
हैं। जीज़स के देवदूत उसे स्वर्ग ले गए। अब वे तुमसे मिलने कभी भी नहीं आ सकेंगी पर चिंता
मत करो हम लोग तुम्हारी देख-भाल करेंगे।`
'नहीं` अनिता सख्त़ी से बोली: 'तुम झूठ बोल रही हो।
ले जाओ, अपने खिलौने, नहीं चाहिए हमें
तुम्हारे खिलौने।` उसने होठों को भीचते
हुए हाथ में पकड़ा खिलौना फेंक दिया। अनिता को देखकर मैंने, रेबेका और रीटा ने
भी अपने खिलौनें फेंक दिए और हम सबने एक दूसरे का अनुकरण करते हुए कहा, 'हमें नहीं चाहिए
तुम्हारे खिलौनें। ...नहीं चाहिए। हमें हमारी ममी चाहिए।'
अनिता सांप की तरह फुंफकारती, पैर पटकती दरवाज़े
के पास जाकर खड़ी हो गई मैंने रीटा-रेबेका का हाथ पकड़ा और अनिता से सटकर खड़ा हो
गया। हम सभी दु:खी थें क्यों कि अनिता दु:खी थी।
पुलिस-लेडी ने अनिता के
दोनों हाथों को पकड़कर बेहद प्यार से पर सख्त आवाज़ में कहा: 'बात को समझो अनिता! अब तुम्हारी ममी इस दुनिया में नहीं है। तुम सब अभी
बच्चे हो। थोड़ी देर में सोशल वर्कर टेरी फ्लायर तुम लोगों को तुम्हारे नए घरों
में ले जाएंगे।`
'नही, हम कहीं नहीं जाएंगे, हम अपने घर जाऍंगे।` अनिता ने पैर पटकते हुए, चिल्लाकर कहा: 'हमारी ममी हमारे घर
पर हमारा इंतज़ार कर रही होगी।`
मैनें भी मन ही मन सोचा कि
इस पुलिस-लेडी को कुछ भी नहीं पता है। हमारी ममी बहुत स्मार्ट है। वह देवदूतों को
चकमा देकर अब तक ज़रूर ही घर वापस आ गई होगी। अब तक रीटा और रेबेका बड़े घर
में रहनेवाले लोगों से हिलमिल गई थी। वे दोनों वहाँ काम करने वाली सोशल वर्कर की
गोद में चढ़ी हुई किलकारियॉं भरती उनसे बातें कर रही थी।
मैं चाह रहा था कि लोग हमसे
हमारी ममी के बारे में बातें करें। उनके बारे में हमें कुछ बताएँ पर वे लोग उनके बारे
में कोई बात नहीं करना चाह रहे थे। जैसे ही हम ममी के बारे में कोई बात करते वे लोग
हमारा ध्यान किसी और चीज़ में उलझा देते। कई बार तो ऐसा लगा कि जैसे वे हमें बता
रहे हो कि तुम्हारी कोई ममी नहीं थी या कि तुम्हारी ममी का इस दुनिया में कोई वजूद
नहीं था।
मै अभी यही सब सोच रहा था कि
अचानक अनिता जैसे पागल हो गई वह वहशियों की तरह चिल्लाकर उन लोगों को गालियाँ देने लगी: 'क़मीनों, हरामज़ादों, बदबख्तों, छोड़ो हमारी
बहनों को, उतारो उन्हें अपनी
गंदी गोद से। मार्क! कमबख्त तू भाग यहॉं से, मैं रेबेका और रीटा को इनके चंगुल से छुड़ाकर घर
आती हूँ। माम ठीक कहती थी तुम पुलिस, सोशल वर्कर्स, वेलफेयर ऑफिसर सब के सब दोगले, हरामज़ादे होते हो।
मार्क, ये सब हमें बहका रहे
हैं।` अनिता को जितनी भी
गालियाँ आती थी उसने पुलिसवालों को देनी शुरू कर दीं। 'तुम लोग, ममी को जेल में बंदकर के हमें सड़ी मछलियां समझ, कूड़े के ढेर में फ़ेंकना चाहते हो..`
मै बदहवास, कन्फ्यूज्ड, मूर्ख की तरह
पुलिस-मैन की ऊँगली पकड़े वहीं खड़ा रहा, अनिता तब तक गालियाँ बकती रही जबतक वह थककर निढाल
नहीं हो गई। उसका चेहरा लाल हो गया था। वह हाँफ रही थी। अनिता का चिल्लाना सुनकर बड़े
घर का मालिक अंदर से बाहर आया और अनिता के कंधों को झकझोरते हुए हुए बोला: 'सुनो अनिता! पागल मत बनो, हम लोग तुम्हारे हितैषी हैं, दोस्त हैं। हम
तुम्हें ऐसे परिवारों में भेज रहे हैं जहाँ के लोग तुम्हें अपने परिवार में अपने
बच्चों की तरह स्वीकार करेंगे।`
टेरी फ्लायर और पुलिस लेडी
ने हमें हमारी इच्छा के विरुद्ध बाहर खड़ी वैन में बैठा दिया। हम चारों बौखलाए, चीखते-चिल्लाते एक
दूसरे से सटे असहाय, लाचार पुलिस वैन में
बैठे अपने अंधे भविष्य की ओर चल पड़े।
हमें कार में यात्रा करते
अभी पंद्रह मिनट भी नहीं हुए थे कि अनिता रोते-रोते थककर सो गई। वह नींद में भी
सुबकियाँ भर रही थी। रेबेका और रीटा भी अँगूठा मुँह में डाले झपकी लेती हुई सोने
की तैयारी कर रही थीं। कार में लगे रेडियो पर कैपिटल रेडियो से प्राइम-टाइम
कार्यक्रम में डुरैन-डुरैन का प्रसिद्ध गीत 'प्लीज़-प्लीज़ टेल मी नाउ, इज़ देयर सम थिंग आई
शुड नोए इज़ देयर सम थिंग आई शुड नोए` मेरी माँ का प्रिय गीत, जिसे वह सदा
गुनगुनाती रहती थी, बज रहा था। अचानक
गीत को रोककर समाचार प्रसारक समाचार देने लगा:
कौन थे ये नन्हें बच्चें? मेरा दिल उन अन्जान
नन्हें बच्चों के लिए दया से भर उठा और मैं फूट- फूट कर रोने लगा...
कार चालक रेडियो के घुँडी को इस तरह इधर-उधर घुमाने लगा
जैसे यह रेडियो-स्टेशन उसे पसंद नहीं आ रहा हो.
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