कुल पेज दृश्य

शनिवार, 3 अगस्त 2013

virasat : rathwan -sw. narendra sharma

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgIT4IwYcPHjyoa2Y2i6pU9R-CObz3ebcePTwExv__h6RgLMAI9nfGY6pC6gyFWnGMKEn61DVifJyYufRI1xZ1QCQs95bkkLZ7tIeH9z102S5M1WdImNWBh81EH90V6fIAuHHVc6NS8wac/s1600/2.jpghttps://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiH1WBFrLztC4bZ8UnfZaJN-pldSGjbwzvKpGFqPjHnvc2nrLqEzRnHZQqrHNI-0JR9bn9Itud_qCyZch1QZ3L-OYQgEUKGP6fhaJMRX1pEAqrEzwBzNLu6qRuVvu3y1S3WDQ5OaaYAvQw/s1600/Lavanya-shah.jpg*विरासत:
रथवान  
स्व. नरेन्द्र शर्मा
साभार : लावण्या शाह 

*
हम रथवान, ब्याहली रथ में,
रोको मत पथ में
हमें तुम, रोको मत पथ में।

माना, हम साथी जीवन के,
पर तुम तन के हो, हम मन के।
हरि समरथ में नहीं, तुम्हारी गति हैं मन्मथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।


हम हरि के धन के रथ-वाहक,
तुम तस्कर, पर-धन के गाहक 
हम हैं, परमारथ-पथ-गामी, तुम रत स्वारथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।

दूर पिया, अति आतुर दुलहन,
हमसे मत उलझो तुम इस क्षण।
अरथ न कुछ भी हाथ लगेगा, ऐसे अनरथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में।

अनधिकार कर जतन थके तुम,
छाया भी पर छू न सके तुम!
सदा-स्वरूपा एक सदृश वह पथ के इति-अथ में!
हमें तुम, रोको मत पथ में।

शशिमुख पर घूँघट पट झीना
चितवन दिव्य-स्वप्न-लवलीना,
दरस-आस में बिन्धा हुआ मन-मोती है नथ में।
हमें तुम, रोको मत पथ में। 

हम रथवान ब्याहली रथ में,
हमें तुम, रोको मत पथ में।

***

कोई टिप्पणी नहीं: