Pratinidhi Doha Kosh : 10 Varsha Sharma 'Rainy'
ॐ
प्रतिनिधि दोहा कोष :१० आचार्य संजीव
प्रतिनिधि दोहा कोष :१० आचार्य संजीव
इस
स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती/सुश्री नवीन सी. चतुर्वेदी,
पूर्णिमा बर्मन तथा प्रणव भारती, डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र', अर्चना मलैया, सोहन परोहा 'सलिल', साज़ जबलपुरी, श्यामल सुमन तथा शशिकांत गीते के दोहे। आज अवगाहन कीजिए वर्षा शर्मा 'रैनी' रचित दोहा सलिला में :
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दोहाकार १० : वर्षा शर्मा 'रैनी'
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वर्षा शर्मा 'रैनी' :
जन्म: १६ - ३ - १९८५, गाडरवारा, नरसिंहपुर मध्य प्रदेश।
आत्मजा : श्रीमती रेखा - श्री प्रकाश शर्मा।
शिक्षा: एम. ए. इतिहास, 'स्वामी विवेकानंद के पत्रों और व्याख्यानों में राष्ट्रीय और सामाजिक चिन्तन ' पर शोधरत।
सृजन विधा: गीत, गजल, मुक्तक, भजन, लघु कथा आदि।
प्रकाशित कृति: मन ही मन (गजल, गीत, भजन संग्रह)।
संपर्क: सुभाष वार्ड, गाडरवारा, नरसिंहपुर मध्य प्रदेश। चलभाष: ९५७५९०६६६४
ईमेल: rsrainysharma@gmail.com
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स्तम्भ के अंतर्गत आप पढ़ चुके हैं सर्व श्री/श्रीमती/सुश्री नवीन सी. चतुर्वेदी,
पूर्णिमा बर्मन तथा प्रणव भारती, डॉ. राजकुमार तिवारी 'सुमित्र', अर्चना मलैया, सोहन परोहा 'सलिल', साज़ जबलपुरी, श्यामल सुमन तथा शशिकांत गीते के दोहे। आज अवगाहन कीजिए वर्षा शर्मा 'रैनी' रचित दोहा सलिला में :
आस किसी से मत करें, रखें नहीं उम्मीद। ध्यान दीजिये कर्म पर, मिले दैव से दीद ।।
मन में ही आनंद है, मन में ही उपहास।
राजमहल मन में रहे, मन में ही वनवास ।।
कंकर जब शंकर बने, करे नहीं अभिमान।
वह विनयी होता अधिक, जो ज्यादा गुणवान।।
अब लुटने देंगे नहीं, अपना भारत देश।
चील-गिद्ध मंडरा रहे, रख हंसों का वेश।।
सावन-भादों की तरह, बरसे मेरे नैन।
नींद न आये रात में, मिले न दिन में चैन।।
जन्म मृत्यु अपमान सुख, या प्रियतम का साथ।
'रैनी' मिले न यत्न से, है कल उसके हाथ।।
कह विरहन की पीर का, कहाँ मिलेगा छोर।
जब भी टूटे बीच से, बंधनेवाली डोर।।
दिल का सौदा कर गयी, आँखों की तकरार।
दो दिन का है नूर ये, फिर आँसू की धार।।
आज समझ में आ गया, दुनिया का हर रंग।
बदरंगों को देखकर, आँख रह गयी दंग ।।
बैरन चूड़ी हाथ की, पल-पल करती शोर।
दिल दिलवर दिलरुबा की, चर्चा चारों ओर।।
खींच न पायें नयन में, कर काजल की धार।
बैरी साजन दे गए, आँसू का उपहार।।
कृष्ण-राधिका सी नहीं, रही किसी की प्रीत।
'रैनी' सबकी कामना, अपनी-अपनी जीत।।
जो धर्मों की आड़ में, करते भ्रष्टाचार।
क्यों उस गुरुघंटाल को, पूज रहा संसार।।
मन में पीड़ा प्रेम की, नयनन में है आस।
टूट गया है ह्रदय पर, शेष अभी विश्वास ।।
मन ही मन में रह गया, मेरे मन का मीत।
'रैनी' हारी दिल मगर, हृदय गयी है जीत।।
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