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गुरुवार, 15 अगस्त 2013

mahiya -shashi padha

माहिया 
तारों का मेला ---
शशि पाधा
*
1
 सन्ध्या की वेला है
 नीले अम्बर में
तारों का मेला है।
2
लहरें क्या गाती हैं
चंदा रोज़ सुने
क्या राग सुनाती हैं।
3
अमराई छाई है
खुशबू के झोंके
पुरवा भरमाई है

पागल मन झूम रहा
सावन की बूँदें
अधरों से चूम रहा ।
5
मन को समझाओ तो 
पंछी -सा उड़ता
क्या रोग बताओ तो  
6
हर बात छिपाते हो
कैसा रोग हुआ
क्यों वैद बुलाते हो?
7
छन छन झंकार हुई
पायल तेरी थी
मेरी क्यों हार हुई
8
तुम जीतो तो जानें
छम छम की भाषा
समझो तो हम मानें

9
मन- पीड़ा झलक गई
नैनों की गगरी
कुछ काँपी, छलक गई।
10
कंगना कुछ  बोल रहा
भेद कलाई के
धीमे से खोल रहा|
11
देहरी पर दीप धरूँ
पाहुन  आन खड़े
नैनों में हास भरूँ
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