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रविवार, 16 मई 2021

मुक्तिका, हिंदी ग़ज़लें, बुंदेली ग़ज़लें

बुन्देली मुक्तिका:
बात नें करियो
संजीव
*
बात नें करियो तनातनी की.
चाल नें चलियो ठनाठनी की..
होस जोस मां गंवा नें दइयो
बाँह नें गहियो हनाहनी की..
जड़ जमीन मां हों बरगद सी
जी न जिंदगी बना-बनी की..
घर नें बोलियों तें मकान सें
अगर न बोली धना-धनी की..
सरहद पे दुसमन सें कहियो
रीत हमारी दना-दनी की..
*
बुन्देली मुक्तिका:
मंजिल की सौं...
संजीव
*
मंजिल की सौं, जी भर खेल
ऊँच-नीच, सुख-दुःख. हँस झेल
रूठें तो सें यार अगर
करो खुसामद मल कहें तेल
यादों की बारात चली
नाते भए हैं नाक-नकेल
आस-प्यास के दो कैदी
कार रए साँसों की जेल
मेहनतकश खों सोभा दें
बहा पसीना रेलमपेल
*
बुन्देली मुक्तिका:
बखत बदल गओ
संजीव
*
बखत बदल गओ, आँख चुरा रए।
सगे पीठ में भोंक छुरा रए।।
*
लतियाउत तें कल लों जिनखों
बे नेतन सें हात जुरा रए।।
*
पाँव कबर मां लटकाए हैं
कुर्सी पा खें चना मुरा रए।।
*
पान तमाखू गुटका खा खें
भरी जवानी गाल झुरा रए।।
*
झूठ प्रसंसा सुन जी हुमसें
सांच कई तें अश्रु ढुरा रए।।
***
बुन्देली मुक्तिका
*
कओ बाद में, सोचो पैले।
मन झकास रख, कपड़े मैले।।
*
रैदासों सें कर लई यारी।
रुचें नें मंदिर पंडित थैले।।
*
शीश नबा लओ, हो गओ पूजन।
तिलक चढ़ोत्री?, ठेंगा लै ले।।
*
चाहत हो पीतम सें मिलना?
उठो! समेटो, नाते फैले।।
*
जोड़ मरे, जा रए छोड़कर
लिए मनुज तन, बे थे बैले।।
***
बुन्देली मुक्तिका:
हमाये पास का है?...
संजीव
*
हमाए पास का है जो तुमैं दें?
तुमाइ हात रीते तुमसें का लें?
आन गिरवी बिदेसी बैंक मां है
चोर नेता भए जम्हूरियत में।।
रेत मां खे रए हैं नाव अपनी
तोड़ पतवार अपने हात ही सें।।
करें गलती न मानें दोष फिर भी
जेल भेजत नें कोरट अफसरन खें।।
भौत है दूर दिल्ली जानते पै
हारियो नें 'सलिल मत बोलियों टें।।
***
बुन्देली मुक्तिका
*
कओ बाद में, सोचो पैले।
मन झकास रख, कपड़े मैले।।
*
रैदासों सें कर लई यारी।
रुचें नें मंदिर पंडित थैले।।
*
शीश नबा लओ, हो गओ पूजन।
तिलक चढ़ोत्री?, ठेंगा लै ले।।
*
चाहत हो पीतम सें मिलना?
उठो! समेटो, नाते फैले।।
*
जोड़ मरे, जा रए छोड़कर
लिए मनुज तन, बे थे बैले।।
***
मुक्तिका
*
आज खत का जवाब आया है
धूल में फूल मुस्कुराया है
*
याद की है किताब हाथों में
छंद था मौन; खिलखिलाया है
*
नैन नत बोलते बिना बोले
रोज डे रोज ही मनाया है
*
कौन किसको प्रपोज कब करता
चाह ने चाहकर बुलाया है
*
हाथ बढ़ हाथ थामकर सिहरा
पैर ने पैर झट मिलाया है
*
देख मुखड़ा बना लिया मुखड़ा
अंत में अंतरा बसाया है
*
दे दिया दिल न दिलरुबा छोड़ा
दिलवरी की न दिल दुखाया है
*
छंद बहर का मूल है: ५  
चामर छंद
*
छंद परिचय:
पन्द्रह वार्णिक अतिशर्करी जातीय चामर छंद।
तेईस मात्रिक रौद्राक जातीय     छंद
 
संरचना: SIS ISI SIS ISI SIS
सूत्र: रजरजर।
बहर: फ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं मुफ़ाइलुं।
*
देश का सवाल है न राजनीति खेलिए
लोक को रहे न शोक लोकनीति कीजिए
*
भेद-भाव भूल स्नेह-प्रीत खूब बाँटिए 

नेह नर्मदा नहा , रीति-प्रीति भूलिए
*
नीर के बिना न जिंदगी बिता सको कभी
साफ़ हों नदी-कुएँ सभी प्रयास कीजिए
*
घूस का न कायदा, न फायदा उठाइये  

काम-काज जो करें, न वक्त आप चूकिए
*
ज्यादती न कीजिए, न ज्यादती सहें कभी
कामयाब हों, प्रयास बार-बार कीजिए
*
पीढ़ियाँ न एक सी रहीं, न हो सकें कभी 

हाथ थाम लें, गले लगा न आप जूझिए
*
घालमेल छोड़, ताल-मेल से रहें सुखी
सौख्य पालिए, न राग-द्वेष आप घोलिए
*

मुक्तिका
जो लिखा
*
जो लिखा, दिल से लिखा, जैसा दिखा, सच्चा लिखा
किये श्रद्धा सुमन अर्पित, फ़र्ज़ का चिट्ठा लिखा
समय की सूखी नदी पर आँसुओं की अँगुलियों से
दिल ने बेहद बेदिली से, दर्द का किस्सा लिखा
कौन आया-गया कब-क्यों?, क्या किसी को वास्ता?
गाँव अपने, दाँव अपने, कुश्तियाँ-घिस्सा लिखा
किससे क्या बोलें कहों हम?, मौन भी कैसे रहें?
याद की लेकर विरासत, नेह का हिस्सा लिखा
आँख मूँदे, जोड़ कर कर, सिर झुका कर-कर नमन
है न मन, पर नम नयन ले, पुराना रिश्ता लिखा
***
मुक्तिका
पदभार २६ मात्रा
छंद- महाभागवत जातीय
पदांत- रगण, यति १७-९
*
स्वार्थ को परमार्थ या सर्वार्थ कहना आ गया २६
निज हितों पर देश हित कुर्बान करना भा गया
.
मतलबी हैं हम, न कहना मतलबी हर शख्स है
जब जिसे अवसर मिला वह बिन डकारे खा गया
.
सियासत से सिया-सत की व्यर्थ क्यों उम्मीद है?
हर बशर खुदगर्ज़ है, जो वोट लेने आ गया
.
ऋण उठाकर घी पियें या कर्ज़ की हम मय पियें*
अदा करना ही नहीं है, माल्या सिखला गया
.
जानवर मारें, कुचल दें आदमी तो क्या हुआ?
गवाहों को मिटाकर बचना 'सलिल जी' भा गया

* ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत- चर्वाक पन्थ
कर्ज़ की पीते थे मय - ग़ालिब
***
हिंदी ग़ज़ल:नमन में आए 
संजीव 'सलिल'
*
पुनीत सुन्दर सुदेश भारत, है खुशनसीबी शरण में आए.
यहाँ जनमने सुरेश तरसें, माँ भारती के नमन में आए..

जमीं पे ज़न्नत है सरजमीं ये, जहेनसीबी वतन में आए.
हथेलियों पे लिए हुए जां, शहीद होने चमन में आए..

कहे कलम वो कलाम मौला, मुहावरा बन कहन में आए..
अना की चादर उतर फेंकें, मुहब्बतों के चलन में आए..

करे इनायत कोई न हम पर, रवायतों के सगन में आए.
भरी दुपहरी बहा पसीना, शब्द-उपासक सृजन में आए..

निशा करे क्यों निसार सपने?, उषा न आँसू 'सलिल गिराए.
दिवस न हारे, न सांझ रोये, प्रयास-पंछी गगन में आए..

मिले नयन से नयन विकल हो, मन, उर, कर, पग 'सलिल' मिलाए.
मलें अबीरा सुनें कबीरा, नसीहतों के हवन में आए..

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बह्र: बहरे मुतकारिब मकबूज़ असलम मुदायाफ़
पदांत (रदीफ़): में आये, तुकांत (काफिया): अन

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