* राजा अवस्थी के गीत - तीन दृष्टियाँ
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नर्मदांचल की उद्योगधानी कटनी के युवा गीतकार राजा अवस्थी के गीत संग्रह 'जिस जगह यह नाव है' का पुनर्पाठ किया। पहली बार तब पढ़ा था जब यह संकलन समीक्षा हेतु प्राप्त हुआ था। नवगीत को स्वतंत्र विधा माननेवाले गीतकारों के लिए राजा अवस्थी के गीतों पर पुस्तक में तीन वरिष्ठ जनों की तीन दृष्टियाँ विचारणीय हैं।
= नर्मदांचल के प्रखर समीक्षक डॉ. विजय बहादुर सिंह के अनुसार ''वे (राजा अवस्थी) अपने समकालीन जीवन और उसके यथार्थ के प्रति अत्यधिक सजग एवं संवेदनशील हैं....... समकालीन जीवन जितना अनगढ़ और मूल्यहारा है, उसे ये कवितायेँ न केवल कथ्य बल्कि शैली में भी प्रगट करती हैं।''
= श्रेष्ठ ज्येष्ठ समीक्षक-साहित्यकार देवेंद्र शर्मा 'इंद्र' के शब्दों में गीत हो या नवगीत अथवा गीत नवांतर इन सभी का उन्मेष वर्तमान युग जीवन की बहुविध विडंबनाओं के यथार्थ चित्रण में ही निहित रहता है और इस चित्रण को रंग, रूप और रेखाएँ प्राप्त होती हैं संवेदनशील रचनाकार की स्वानुभूति से ... इन गीतों की बिम्ब योजना इतनी ताजा और टटकी है कि दूरवर्ती पाठक भी उनमें बने हुए दृश्य जगत से एक तरल आत्मीयता स्थापित करने लगता है ..... कवि धीरे-धीरे जाने-'लय' को साधने का प्रयास कर रहा है। जब यह लय उससे सध जाएगी तो छान्दसिक अनुशासन भी स्वत: ही उनके गीतों में आता जायेगा ....राजा अवस्थी के बाल करों में जो। नवनीत' सोभित है वः एक दिन नवगीत भी बनेगा।'
= नर्मदांचल के सरस और सशक्त गीतकार श्यामनारायण मिश्र लिखते हैं 'नवगीत ने परंपरा और पुरातन मूल्यों की पुनर्स्थापना की है ..... पुराने गीतों के नक्शे-कदम पर काम करते हुए नवगीतों के आधुनिक कुटीर बनाये हैं। ...... राजा के गीत दर्द-कडुवाहट और संत्रास की विषाक्त अनुभूतियों के दस्तावेज हैं। ..... राजा के गीत- नवगीत चौनौती के तेवर में खड़े हैं। ...... लयात्मक बुनावट हो या मात्रिक कसाव, छान्दसिक प्रवाह या शिल्प का जौहर, बिम्बों का आयोजन हो या चित्रों की सजावट, कथ्य की नव्यता हो या पर्टकों की भव्यता, वह सर्वत्र सफल हुआ है।'
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