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सोमवार, 31 मई 2021

दोहा सलिला, समस्या पूर्ति

दोहा सलिला
दुनिया में नित घूमिए, पाएँ-देकर मान।
घर में घर जैसे रहें, क्यों न आप श्रीमान।।
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प्राध्यापक से क्यों कहें, 'खोज लाइए छात्र'।
शिक्षास्तर तब उठे जब, कहें: 'पढ़ाओ मात्र।।
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जो अपूर्व वह पूर्व से, उदित हो रहा नित्य।
पल-पल मिटाता जा रहा, फिर भी रहे अनित्य।।
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गौरव गरिमा सुशोभित, हो विद्या का गेह।
ज्ञान नर्मदा प्रवाहित, रहे लहर हो नेह।।
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करे पूँछ से साफ़ भू, तब ही बैठे श्वान।
करे गंदगी धरा पर, क्यों बोले इंसान।।
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समस्या पूर्ति:
मुझे नहीं स्वीकार -प्रथम चरण
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मुझे नहीं स्वीकार है, मीत! प्रीत का मोल.
लाख अकिंचन तन मगर, मन मेरा अनमोल.
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मुझे नहीं स्वीकार है, जुमलों का व्यापार.
अच्छे दिन आए नहीं, बुरे मिले सरकार.
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मुझे नहीं स्वीकार -द्वितीय चरण
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प्रीत पराई पालना, मुझे नहीं स्वीकार.
लगन लगे उस एक से, जो न दिखे साकार.
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ध्यान गैर का क्यों करूँ?, मुझे नहीं स्वीकार.
अपने मन में डूब लूँ, हो तेरा दीदार.
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मुझे नहीं स्वीकार -तृतीय चरण
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माँ सी मौसी हो नहीं, रखिए इसका ध्यान.
मुझे नहीं स्वीकार है, हिंदी का अपमान.
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बहू-सुता सी हो सदा, सुत सा कब दामाद?
मुझे नहीं स्वीकार पर, अंतर है आबाद.
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मुझे नहीं स्वीकार -चतुर्थ चरण
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अन्य करे तो सर झुका, मानूँ मैं आभार.
अपने मुँह निज प्रशंसा, मुझे नहीं स्वीकार.
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नहीं सिया-सत सी रही, आज सियासत यार!.
स्वर्ण मृगों को पूजना, मुझे नहीं स्वीकार.
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३१.५.२०१८, ७९९९५५९६१८

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