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शुक्रवार, 28 मई 2021

ओशो चिंतन

ओशो चिंतन:
देता हूँ आकाश मैं सारा भरो उड़ान।
भुला शास्त्र-सिद्धांत सब, गाओ मंगल गान।।
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खुद पर निर्भर हो उठो, झट नापो आकाश।
पंख खोल कर तोड़ दो, सीमाओं के पाश।।
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मानव के अस्तित्व की, गहो विरासत नाम।
बाँट वसीयत अन्य को, हो गुमनाम अनाम।।
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ओ शो यह बढ़िया हुआ, अधरों पर मुस्कान।
निर्मल-निश्छल गा रही, ओशो का गुणगान।।
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जिससे है नाराजगी, करें क्षमा का दान।
खुलते आज्ञा-ह्रदय के, चक्र शीघ्र मतिमान।।
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संप्रभु जैसे आओ रे, प्रेम पुकारे मीत।
भिक्षुक जैसे पाओगे, वास्तु जगत की रीत।।
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२८.५.२०१८

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