रचना-प्रतिरचना
चंद्रकांता अग्निहोत्री:
चाँद का टीका लगाकर, माथ पर उसने मुझे,
ओढ़नी दे तारिकाओं की, सुहागिन कह दिया।
संजीव वर्मा 'सलिल'
बिजलियों की, बादलों की, घटाओं की भेंट दे
प्रीत बरसा, स्वप्न का कालीन मैंने तह दिया।
चंद्रकांता अग्निहोत्री:
कैसे कहूँ तुझसे बच के चले जायेंगे कहीं।
पर यहाँ तो हर दर पे तेरा नाम लिखा है।।
संजीव वर्मा 'सलिल'
चाहकर भी देख पाया, जब न नैनों ने तुझे।
मूँद निज पलकें पढ़ा, पैगाम दिखा है।।
चंद्रकांता अग्निहोत्री:
आज फिर तेरी मुहब्बत ने शरारत खूब की है
नाम तेरा ले रही पर वो बुला मुझको रही है।।
संजीव वर्मा 'सलिल'
आज फिर तेरी शराफत ने बगावत खूब की है
काम तेरा ले रही पर वो समा मुझमें रही है।।
२८.५.२०१८
***
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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शुक्रवार, 28 मई 2021
रचना-प्रतिरचना चंद्रकांता अग्निहोत्री
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