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शुक्रवार, 28 मई 2021

रचना-प्रतिरचना चंद्रकांता अग्निहोत्री

रचना-प्रतिरचना
चंद्रकांता अग्निहोत्री:
चाँद का टीका लगाकर, माथ पर उसने मुझे,
ओढ़नी दे तारिकाओं की, सुहागिन कह दिया।
संजीव वर्मा 'सलिल'
बिजलियों की, बादलों की, घटाओं की भेंट दे
प्रीत बरसा, स्वप्न का कालीन मैंने तह दिया।
चंद्रकांता अग्निहोत्री:
कैसे कहूँ तुझसे बच के चले जायेंगे कहीं।
पर यहाँ तो हर दर पे तेरा नाम लिखा है।।
संजीव वर्मा 'सलिल'
चाहकर भी देख पाया, जब न नैनों ने तुझे।
मूँद निज पलकें पढ़ा, पैगाम दिखा है।।
चंद्रकांता अग्निहोत्री:
आज फिर तेरी मुहब्बत ने शरारत खूब की है
नाम तेरा ले रही पर वो बुला मुझको रही है।।
संजीव वर्मा 'सलिल'
आज फिर तेरी शराफत ने बगावत खूब की है
काम तेरा ले रही पर वो समा मुझमें रही है।।
२८.५.२०१८
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