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रविवार, 30 मई 2021

गीत सत्येन्द्र तिवारी

 **मुस्काती बरखा**

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बरखा कर पायल की रुनझुन,
मुस्काती सारी रात रही।
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टप टप टप छप्पर के नीचे,
नयनों में युग डूबे भीगे
चाहे चुनरी पैबंद कई,
सुधि - तकली धागा कात रही
बरखा कर पायल की रुनझुन,
मुस्काती सारी रात रही।
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बिजुरी चमकी,घन भी गरजे,
लगता बनियां मांगे कर्जे
इस पर भी बैरन पुरवाई,
तन -मन को देती मात रही
बरखा कर पायल की रुनझुन,
मुस्काती सारी रात रही।
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भीगी - सिहरन के प्यारे दिन,
चंदनी गांव वाले पल -छिन
महके वासंति खुशबू के,
बिखरे बटोरती पात रही
बरखा कर पायल की रुनझुन,
मुस्काती सारी रात रही।
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जीवन - नौका बिन पालों की,
नद - सांसे लहर सवालों की
हिचकोले खाती दिशा हीन,
अंधियारों से कर बात रही
बरखा कर पायल की रुनझुन,
मुस्काती सारी रात रही।
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सत्येन्द्र तिवारी लखनऊ/29*05*2021

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