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शुक्रवार, 28 मई 2021

विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर दिल्ली शाखा

ॐ  
विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर दिल्ली शाखा 
काव्य गोष्ठी 
अध्यक्ष आचार्य  संजीव वर्मा 'सलिल' 
संयोजन अंजू खरबंदा, संचालन सदानंद कवीश्वर 
*
दोहा सलिला 
सदाs नंद हो अयति मन, श्याम शोभना श्वास
अंजु अंजुरी में भरे, रश्मि विभा ज्यों आस 
*
गीता सरला सुगम्या, कह रमेश हैं मौन 
पद्म पद्मधर दे दरश, कहें कवीश्वर कौन?
*
शेख जहाँ जिज्ञासु हो, उत्तर हो बारीक 
प्रश्न दिखाते राह नित, नवनि नीविआ लीक 
*
तन्मय ले नवनीत कर, कृष्ण नाचते नित्य 
इंद्र न हिस्सा पा रहे, इंद्रा हर्षित सत्य  
पूनम की सुषमा करे, सपना शशि का पूर्ण
रेणु वेणु सुन रचाती, रास रचें संपूर्ण 
*
नेह नर्मदा सम जिए, किया राष्ट्र निर्माण
नमन जवाहर लाल को, रहे देश के प्राण
पंचशील दे रच दिया, एक नया इतिहास 
हर पीड़ित के पोंछकर, अश्रु दे दिया हास 
नमन करे हर मन तुम्हें, संकट में कर याद
किसको हम चाचा कहें, किससे पाएँ दाद  
सकल विश्व में कराई, भारत की पहचान 

*
सावरकर 
उन सा वर कर पंथ हम, करें देश की भक्ति
सावरकर को प्रिय नहीं, रही स्वार्थ अनुरक्ति
वीर विनायक ने किया, विहँस आत्म बलिदान
डिगे नहीं संकल्प से, कब चाहा प्रतिदान?
भक्तों! तजकर स्वार्थ हों, नीर-क्षीर वत एक
दोषारोपण बंद कर, हों जनगण मिल एक
मोटी-छोटी अँगुलियाँ, मिल मुट्ठी हों आज
गले लगा-मिल साधिए, सबके सारे काज
*
 
एक गीत 
*
सरहद से 
संसद तक 
घमासान जारी है 
*
सरहद पर आँखों में
गुस्सा है, ज्वाला है.
संसद में पग-पग पर
घपला-घोटाला है.
जनगण ने भेजे हैं
हँस बेटे सरहद पर.
संसद में.सुत भेजें
नेता जी या अफसर.
सरहद पर
आहुति है
संसद में यारी है.
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
*
सरहद पर धांय-धांय
जान है हथेली पर.
संसद में कांव-कांव
स्वार्थ-सुख गदेली पर.
सरहद से देश को
मिल रही सुरक्षा है.
संसद को देश-प्रेम
की न मिली शिक्षा है.
सरहद है
जांबाजी
संसद ऐयारी है
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
*
सरहद पर ध्वज फहरे
हौसले बुलंद रहें.
संसद में सत्ता हित
नित्य दंद-फंद रहें.
सरहद ने दुश्मन को
दी कड़ी चुनौती है.
संसद को मिली
झूठ-दगा की बपौती है.
सरहद जो
रण जीते
संसद वह हारी है.
सरहद से
संसद तक
घमासान जारी है
*** 
गीत 
नदी मर रही है
*
नदी नीरधारी, नदी जीवधारी,
नदी मौन सहती उपेक्षा हमारी
नदी पेड़-पौधे, नदी जिंदगी है-
भुलाया है हमने नदी माँ हमारी
नदी ही मनुज का
सदा घर रही है।
नदी मर रही है
*
नदी वीर-दानी, नदी चीर-धानी
नदी ही पिलाती बिना मोल पानी,
नदी रौद्र-तनया, नदी शिव-सुता है-
नदी सर-सरोवर नहीं दीन, मानी
नदी निज सुतों पर सदय, डर रही है
नदी मर रही है
*
नदी है तो जल है, जल है तो कल है
नदी में नहाता जो वो बेअकल है
नदी में जहर घोलती देव-प्रतिमा
नदी में बहाता मनुज मैल-मल है
नदी अब सलिल का नहीं घर रही है
नदी मर रही है
*
नदी खोद गहरी, नदी को बचाओ
नदी के किनारे सघन वन लगाओ
नदी को नदी से मिला जल बचाओ
नदी का न पानी निरर्थक बहाओ
नदी ही नहीं, यह सदी मर रही है
नदी मर रही है
***
२८-५-२०२१ 

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