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मंगलवार, 25 मई 2021

अंगिका दोहा मुक्तिका

अंगिका दोहा मुक्तिका
संजीव
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काल बुलैले केकर, होतै कौन हलाल?
मौन अराधें दैव कै, एतै प्रातःकाल..
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मौज मनैतै रात-दिन, हो लै की कंगाल.
संग न आवै छाँह भी, आगे कौन हवाल?
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एक-एक कै खींचतै, बाल- पकड़ लै खाल.
नींन नै आवै रात भर, पलकें करैं सवाल..
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कौन हमर रच्छा करै, मन में 'सलिल' मलाल.
केकरा से बिनती करभ, सब्भै हवै दलाल..
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धूल झौंक दैं आँख में, कज्जर लेंय निकाल.
जनहित कै नाक रचैं, नेता निगलैं माल..
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मत शंका कै नजर सें, देख न मचा बवाल.
गुप-चुप हींसा बाँट लै, 'सलिल' बजा नैं गाल..
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ओकर कोय जवाब नै, जेकर सही सवाल.
लै-दै कै मूँ बंद कर, ठंडा होय उबाल..
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२५-५-२०१३ 
टीप: अंगिका से अधिक परिचय न होने प् भी प्रयास किया है. जानकार बंधु त्रुटि इंगित करें तो सुधार सकूँगा.

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