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शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

मालवी झाबुआ राज्य

मालवी के विविध रूप हैं। एक रूप की बानगी प्रस्तुत है ग्रामीण हिंदी डॉ. धीरेन्द्र वर्मा, जनवरी १९५० से साभार। श्यास अब वहाँ भी बोली में बदलाव हो चुके होंगे।  
मालवी
झाबुआ राज्य
एक सरवण नाम करी ने आदमी थो। वणी रा बाप आंख ऊँ आँदा था। सरवण वणा ने तोक्या फरतो थो। चालताँ आलताँ आँदा आँदी ने रस्ता में तरस लागो।  जदी सरवण ने कीदो के बेटा; पाणी पाव।  म्हाँ ने तरस लागी। जदी ऊ वणा ने बठे बेठाइ ने पाणी भरवा ने तलाब उपर गियो। वणी तलाब उपर राजा दशरथ की चोकी थी। जणी  वखत सरवण पाणी भरवा लागो जदी राजा दशरथे दूरा ऊँ देख्यो। तों जाण्यों के कोई हरण्यो पाणी पीवे हे। एसो जाणी ने राजा ए बाण मार्यो। जो सरवण रे छाती में लागो। जो सरवण वणी बखत राम-राम करवा लागो। जदी राजा ए जाण्यो के ये तो कोई मनख है।  
एसो जाणी ने राजा दशरथ सरवण कने गियो। तो देखो तो आपणो भाणेज। राजा साच करवा मंडपो। जद सरवण बोल्यो, के खेर मारो मोत थारा हात  से ज लखि थी। अवे मारा मा-बाप ने पाणी पावजो। अतरो केह ने सरवण तो मरि गियौ। ने राजा दशरथ पाणी भरी ने बेन बेनोई हावा ने आयो। जदी आँदा आँदी बोल्या के तँ कूँणहे।  दशरथ बोल्यो के थाणे काईं काम हे थें। पाणी पीयो। जदी बेन बोलो में तो सरवण सिवाय दुसरो का हात को पाणी नी पीयाँ। दशरथ बोल्यो के हूँ दशरथ हूँ ने गारा हातं अजाण में सरवण मरि गियो। 
आँदा आँदी सरवण को मरणो हुणी ने हा! हा! करीने राजा दशरथ ने हराप दीदो के जणी बाणू  मारो बेटा मारयो वणा ज वाणू तूँ मरजे। एसो हराप देइ ने आँदा आँदीबी मरि गिया। 
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