मुक्तिका:
शतदल खिले..
संजीव 'सलिल'
* *
प्रियतम मिले.
शतदल खिले..
खंडहर हुए
संयम किले..
बिसरे सभी
शिकवे-गिले..
जनतंत्र के
लब क्यों सिले?
भटके हुए
हैं काफिले..
कस्बे कहें
खुद को जिले..
छूने चले
पग मंजिलें..
तन तो कुशल
पर मन छिले..
**********
संयम किले..
बिसरे सभी
शिकवे-गिले..
जनतंत्र के
लब क्यों सिले?
भटके हुए
हैं काफिले..
कस्बे कहें
खुद को जिले..
छूने चले
पग मंजिलें..
तन तो कुशल
पर मन छिले..
**********
२५-९-२०१०
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें