एक गीत
बातें हों अब खरी-खरी 
* 
मुँह देखी हो चुकी बहुत 
अब बातें हों कुछ खरी-खरी 
जो न बात से बात मानता 
लातें तबियत करें हरी 
*
पाक करे नापाक हरकतें 
बार-बार मत चेताओ 
दहशतगर्दों को घर में घुस 
मार-मार अब दफनाओ 
लंका से आतंक मिटाया 
राघव ने यह याद रहे
काश्मीर को बचा-मिलाया 
भारत में, इतिहास कहे 
बांगला देश बनाया हमने 
मत भूले रावलपिडी 
कीलर-सेखों की बहादुरी 
देख सरहदें थीं सिहरी 
मुँह देखी हो चुकी बहुत 
अब बातें हों कुछ खरी-खरी
*
करगिल से पिटकर भागे थे 
भूल गए क्या लतखोरों?
सेंध लगा छिपकर घुसते हो 
क्यों न लजाते हो चोरों?
पाले साँप, डँस रहे तुझको
आजा शरण बचा लेंगे 
ज़हर उतार अजदहे से भी 
तेरी कसम बचा लेंगे 
है भारत का अंग एक तू 
दुहराएगा फिर इतिहास 
फिर बलूच-पख्तून बिरादर 
के होंठों पर होगा हास 
'जिए सिंध' के नारे खोदें 
कब्र दुश्मनी की गहरी 
मुँह देखी हो चुकी बहुत 
अब बातें हों कुछ खरी-खरी
*
२१-९-२०१६
 
 
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