सिगरेट
संजीव
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ज़िंदगी सिगरेट सी जलती रही
ऐश ट्रे में उमीदों की राख है।
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दिलजले ने दाह दी हर आह
जला कर सिगरेट, पाया चैन कुछ।
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राह उसकी रात तक देखा किया
थाम कर सिगरेट, बेबस मौन दिल।
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धौंककर सिगरेट छलनी ज़िंदगी
बंदगी की राख ले ले ऐ खुदा!
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अधरों पे रखा, फेंक दिया, सिगरेट की तरह।
न उसकी कोई वज़ह रही, न इसकी है वजह।
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