दोहा मुक्तक
कभी न लगने दीजिए, दुर्व्यसनों की चाट.
बिन दुश्मन करते व्यसन, खादी हमारी खाट.
कदम-कदम रखकर बढ़ें, गिर-उठ लक्ष्य न भूल
ईश्वर जब होते सदय, तब हों आप विराट.
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दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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