गीत
मेघ का सन्देश
संजीव सलिल'
*
गगनचारी मेघ हूँ मैं.
मैं न कुंठाग्रस्त हूँ.
सच कहूँ तुम मानवों से
मैं हुआ संत्रस्त हूँ.
मैं न आऊँ तो बुलाते.
हजारों मन्नत मनाते.
कभी कहते बरस जाओ-
कभी मुझको ही भगाते..
सूख धरती, रुदन करती.
मौत बिन, हो विवश मरती.
मैं गरजता, मैं बरसता-
तभी हो तर, धरा तरती..
देख अत्याचार भू पर.
सबल करता निबल ऊपर.
सह न पाती गिरे बिजली-
शांत हो भू-चरण छूकर.
एक उँगली उठी मुझ पर.
तीन उँगली उठीं तुझ पर..
तू सुधारे नहीं खुद को-
तम गए दे, दीप बुझकर..
तिमिर मेरे संग छाया.
आस का संदेश लाया..
मैं गरजता, मैं बरसता-
बीज ने अंकुर उगाया..
तूने लाखों वृक्ष काटे.
खोद गिरि तालाब पाटे.
उगाये कोंक्रीट-जंगल-
मनुज मुझको व्यर्थ डांटे.
नद-सरोवर फिर भरूँगा.
फिर हरे जंगल करूँगा..
लांछन चुप रह सहूँगा-
धरा का मंगल करूँगा..
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