Sunday, March 15, 2009
दोहा गाथा सनातनः ८- दोहा साक्षी समय का
दोहा साक्षी समय का, कहता है युग सत्य।
ध्यान समय का जो रखे, उसको मिलता गत्य॥
दोहा रचना मेँ समय की महत्वपूर्ण भूमिका है। दोहा के चारों चरण निर्धारित समयावधि में बोले जा सकें, तभी उन्हें विविध रागों में संगीतबद्ध कर गाया जा सकेगा। इसलिए सम तथा विषम चरणों में क्रमशः १३ व ११ मात्रा होना अनिवार्य है।
दोहा ही नहीं हर पद्य रचना में उत्तमता हेतु छांदस मर्यादा का पालन किया जाना अनिवार्य है। हिंदी काव्य लेखन में दोहा प्लावन के वर्तमान काल में मात्राओं का ध्यान रखे बिना जो दोहे रचे जा रहे हैं, उन्हें कोई महत्व नहीं मिल सकता। मानक मापदन्डों की अनदेखी कर मनमाने तरीके को अपनी शैली माने या बताने से अशुद्ध रचना शुद्ध नहीं हो जाती. किसी रचना की परख भाव तथा शैली के निकष पर की जाती है। अपने भावों को निर्धारित छंद विधान में न ढाल पाना रचनाकार की शब्द सामर्थ्य की कमी है।
किसी भाव की अभिव्यक्ति के तरीके हो सकते हैं। कवि को ऐसे शब्द का चयन करना होता है जो भाव को अभिव्यक्त करने के साथ निर्धारित मात्रा के अनुकूल हो। यह तभी संभव है जब मात्रा गिनना आता हो. मात्रा गणना के प्रकरण पर पूर्व में चर्चा हो चुकने पर भी पुनः कुछ विस्तार से लेने का आशय यही है कि शंकाओं का समाधान हो सके.
"मात्रा" शब्द अक्षरों की उच्चरित ध्वनि में लगनेवाली समयावधि की ईकाई का द्योतक है। तद्नुसार हिंदी में अक्षरों के केवल दो भेद १. लघु या ह्रस्व तथा २. गुरु या दीर्घ हैं। इन्हें आम बोलचाल की भाषा में छोटा तथा बडा भी कहा जाता है। इनका भार क्रमशः १ तथा २ गिना जाता है। अक्षरों को लघु या गुरु गिनने के नियम निर्धारित हैं। इनका आधार उच्चारण के समय हो रहा बलाघात तथा लगनेवाला समय है।
१. एकमात्रिक या लघु रूपाकारः
अ.सभी ह्रस्व स्वर, यथाः अ, इ, उ, ॠ।
ॠषि अगस्त्य उठ इधर ॰ उधर, लगे देखने कौन?
१+१ १+२+१ १+१ १+१+१ १+१+१
आ. ह्रस्व स्वरों की ध्वनि या मात्रा से संयुक्त सभी व्यंजन, यथाः क,कि,कु, कृ आदि।
किशन कृपा कर कुछ कहो, राधावल्लभ मौन ।
१+१+१ १+२ १+१ १+१ १+२
इ. शब्द के आरंभ में आनेवाले ह्रस्व स्वर युक्त संयुक्त अक्षर, यथाः त्रय में त्र, प्रकार में प्र, त्रिशूल में त्रि, ध्रुव में ध्रु, क्रम में क्र, ख्रिस्ती में ख्रि, ग्रह में ग्र, ट्रक में ट्र, ड्रम में ड्र, भ्रम में भ्र, मृत में मृ, घृत में घृ, श्रम में श्र आदि।
त्रसित त्रिनयनी से हुए, रति ॰ ग्रहपति मृत भाँति ।
१+१+१ १+१+१+२ २ १+२ १+१ १+१+१+१ १+१ २+१
ई. चंद्र बिंदु युक्त सानुनासिक ह्रस्व वर्णः हँसना में हँ, अँगना में अँ, खिँचाई में खिँ, मुँह में मुँ आदि।
अँगना में हँस मुँह छिपा, लिये अंक में हंस ।
१+१+२ २ १+१ १+१ १+२, १+२ २+१ २ २+१
उ. ऐसा ह्रस्व वर्ण जिसके बाद के संयुक्त अक्षर का स्वराघात उस पर न होता हो या जिसके बाद के संयुक्त अक्षर की दोनों ध्वनियाँ एक साथ बोली जाती हैं। जैसेः मल्हार में म, तुम्हारा में तु, उन्हें में उ आदि।
उन्हें तुम्हारा कन्हैया, भाया सुने मल्हार ।
१+२ १+२+२ १+२+२ २+२ १+२ १+२+१
ऊ. ऐसे दीर्घ अक्षर जिनके लघु उच्चारण को मान्यता मिल चुकी है। जैसेः बारात ॰ बरात, दीवाली ॰ दिवाली, दीया ॰ दिया आदि। ऐसे शब्दों का वही रूप प्रयोग में लायें जिसकी मात्रा उपयुक्त हों।
दीवाली पर बालकर दिया, करो तम दूर ।
२+२+२ १+१ २+१+१+१ १+२ १+२ १ =१ २+१
ए. ऐसे हलंत वर्ण जो स्वतंत्र रूप से लघु बोले जाते हैं। यथाः आस्मां ॰ आसमां आदि। शब्दों का वह रूप प्रयोग में लायें जिसकी मात्रा उपयुक्त हों।
आस्मां से आसमानों को छुएँ ।
२+२ २ २+१+२+२ २ १+२
ऐ. संयुक्त शब्द के पहले पद का अंतिम अक्षर लघु तथा दूसरे पद का पहला अक्षर संयुक्त हो तो लघु अक्षर लघु ही रहेगा। यथाः पद॰ध्वनि में द, सुख॰स्वप्न में ख, चिर॰प्रतीक्षा में र आदि।
पद॰ ध्वनि सुन सुख ॰ स्वप्न सब, टूटे देकर पीर।
१+१ १+१ १+१ १+१ २+१ १+१
द्विमात्रिक, दीर्घ या गुरु के रूपाकारों पर चर्चा अगले पाठ में होगी। आप गीत, गजल, दोहा कुछ भी पढें, उसकी मात्रा गिनकर अभ्यास करें। धीरे॰धीरे समझने लगेंगे कि किस कवि ने कहाँ और क्या चूक की ? स्वयं आपकी रचनाएँ इन दोषों से मुक्त होने लगेंगी।
कक्षा के अंत में एक किस्सा, झूठा नहीं॰ सच्चा... फागुन का मौसम और होली की मस्ती में किस्सा भी चटपटा ही होना चाहिए न... महाप्राण निराला जी को कौन नहीं जानता? वे महाकवि ही नहीं महामानव भी थे। उन्हें असत्य सहन नहीं होता था। भय या संकोच उनसे कोसों दूर थे। बिना किसी लाग॰लपेट के सच बोलने में वे विश्वास करते थे। उनकी किताबों के प्रकाशक श्री दुलारे लाल भार्गव के दोहा संकलन का विमोचन समारोह आयोजित था। बड़े-बड़े दौनों में शुद्ध घी का हलुआ खाते॰खाते उपस्थित कविजनों में भार्गव जी की प्रशस्ति-गायन की होड़ लग गयी। एक कवि ने दुलारे लाल जी के दोहा संग्रह को महाकवि बिहारी के कालजयी दोहा संग्रह "बिहारी सतसई" से श्रेष्ठ कह दिया तो निराला जी यह चाटुकारिता सहन नहीं कर सके, किन्तु मौन रहे। तभी उन्हें संबोधन हेतु आमंत्रित किया गया। निराला जी ने दौने में बचा हलुआ एक साथ समेटकर खाया, कुर्ते की बाँह से मुँह पोंछा और शेर की तरह खडे होकर बडी॰बडी आँखों से चारों ओर देखते हुए एक दोहा कहा। उस दिन निराला जी ने अपने जीवन का पहला और अंतिम दोहा कहा, जिसे सुनते ही चारों तरफ सन्नाटा छा गया, दुलारे लाल जी की प्रशस्ति कर रहे कवियों ने अपना चेहरा छिपाते हुए सरकना शुरू कर दिया। खुद दुलारे लाल जी भी नहीं रुक सके। सारा कार्यक्रम चंद पलों में समाप्त हो गया।
महाप्राण निराला रचित वह दोहा बतानेवाले को एक दोहा उपहार में देने का विचार अच्छा तो है पर शेष सभी को प्रतीक्षा करना रुचिकर नहीं प्रतीत होगा। इसलिये इस बार यह दोहा मैं ही बता देता हूँ।
आप इस दोहे और निराला जी की कवित्व शक्ति का आनंद लीजिए और अपनी प्रतिक्रिया दीजिए।
वह दोहा जिसने बीच महफिल में दुलारे लाल जी की फजीहत कर दी थी, इस प्रकार है॰
कहाँ बिहारी लाल हैं, कहाँ दुलारे लाल?
कहाँ मूँछ के बाल हैं, कहाँ पूँछ के बाल?
एकाध दुलारे लाल को तो हम भी जानते हैं,,,,,,
पर अफ़सोस के ऐसी बाते उनके ऊपर से होकर गुजर जाती हैं,,,,,
ये सही है के मैं आपके किसी दोहे वाली पहेली का उत्तर नहीं दे पाता, ये भी सही है के अगली पोस्ट तक जानने का इन्तजार मुश्किल होता है,,,,,पर अच्छा लगता है के जब कोई बताता है ,,,कृपया उत्तर अगले अंक में ही दें,,,
जानकारी के लिए धन्यवाद |
इस बार के दोहा लेख में
११ २१ 1 22 11 1
खूब बन पड़ी बात
२१ ११ १२ २१
सुना किस्सा निराला की ,
१२ १२ १२२ २
तबीयत खुश कर दी आज
१२११ ११ ११ १ २१
अवनीश तिवारी
आपका पाठ सारगर्भित रहा, दोहा लेखानोत्सुक लेखको हेतु बहुत उपयोगी सिद्ध होगा
आशा है भविष्य के पाठो में १३, ११ में बंधे भावहीन निरर्थक शब्द समूहों पर भी प्रकाश डालेंगे
सादर,
आपने बहुत ही ज्ञानवर्धक जानकारी दी है . मात्राएँ गिनने का प्रयास जारी है.
होली पर सुनाया सच्चा किस्सा भी बहुत रोचक है .
आभार
पूजा अनिल
naa,,,,,,,,,,
apne bheje se baaher rahi hai,,,,,
ginti ki koshish naaa karo,,,
yoon hi likho,,,
Wednesday, March 18, 2009
दोहा गाथा सनातन गोष्ठी ८ दोहा है रस-खान
भाव रंग अद्भुत छटा, ज्यों गोरी का रूप.
पिचकारी ले शिल्प की, निखरे रूप अनूप.
प्रतिस्पर्धी हैं नहीं, भिन्न न इनको मान.
पूरक और अभिन्न हैं, भाव-शिल्प गुण-गान.
रवि-शशि अगर न संग हों, कैसे हों दिन-रैन?
भाव-शिल्प को जानिए, काव्य-पुरुष के नैन.
पुरुष-प्रकृति हों अलग तो, मिट जाता उल्लास.
भाव-शिल्प हों साथ तो, हर पल हो मधु मास.
मन मेंरा झकझोरकर, छेड़े कोई राग.
अल्हड लाया रंग रे!, गाये मनहर फाग
महकी-महकी हवा है, बहकी-बहकी ढोल.
चहके जी बस में नहीं, खोल न दे, यह पोल.
कहे बिन कहे अनकहा, दोहा मनु का पत्र.
कई दुलारे लाल हैं, यत्र-तत्र-सर्वत्र.
सुनिये श्रोता मगन हो, दोहा सम्मुख आज।
चतुरा रायप्रवीन की, रख ली जिसने लाज॥
बिनटी रायप्रवीन की, सुनिये शाह सुजान।
जूठी पातर भखत हैं, बारी बायस स्वान॥
रसगुल्ले जैसा लगा, दोहे का यह पाठ ।
सटसट उतरा मगज में, हुए धन्य, हैं ठाठ ॥
दोहा के दोनों पदों के अंत में एक ही अक्षर तथा दीर्घ-लघु मात्रा अनिवार्य है.
उत्तम है इस बार का,
२ १ १ २ १ १ २ १ २ = १३
दोहा गाथा सात |
२ २ २ २ २ १ = ११
आस यही आचार्य से
२ १ २ १ २ २ १ २ = १३
रहें बताते बात |
१ २ १ २ २ २ १ = ११
सीमा मनु पूजा सुलभ, अजित तपन अवनीश.
रवि को रंग-अबीर से, 'सलिल' रंगे जगदीश.
चलते-चलते फिर एक सच्चा किस्सा-
अंग्रेजी में एक कहावत है 'power corrupts, absolute power corrupts absolutely' अर्थात सत्ता भ्रष्ट करती है तो निरंकुश सत्ता पूर्णतः भ्रष्ट करती है, भावार्थ- 'प्रभुता पाहि काहि मद नाहीं' .
घटना तब की है जब मुग़ल सम्राट अकबर का सितारा बुलंदी पर था. भारत का एकछत्र सम्राट बनाने की महत्वाकांक्षा तथा हर बेशकीमती-लाजवाब चीज़ को अपने पास रखने की उसकी हवस हर सुन्दर स्त्री को अपने हरम में लाने का नशा बनकर उसके सिर पर स्वर थी. दरबारी उसे निरंतर उकसाते रहते और वह अपने सैन्य बल से मनमानी करता रहता.
गोंडवाना पर उन दिनों महारानी दुर्गावती अपने अल्प वयस्क पुत्र की अभिभावक बनकर शासन कर रही थीं. उनकी सुन्दरता, वीरता, लोकप्रियता, शासन कुशलता तथा सम्पन्नता की चर्चा चतुर्दिक थी. महारानी का चतुर दीवान अधार सिंह कायस्थ तथा सफ़ेद हाथी 'एरावत' अकबर की आँख में कांटे की तरह गड रहे थे क्योंकि अधार सिंग के कारण राज्य में शासन व्यवस्था व सम्रद्धता थी और यह लोक मान्यता थी की जहाँ सफ़ेद हाथी होता है वहाँ लक्ष्मी वास करती है. अकबर ने रानी के पास सन्देश भेजा-
अपनी सीमाँ राज की, अमल करो फरमान.
भेजो नाग सुवेत सो, अरु अधार दीवान.
मरता क्या न करता... रानी ने अधार सिंह को दिल्ली भेजा. अधार सिंह की बुद्धि की परख करने के लिए अकबर ने एक चाल चली. मुग़ल दरबार में जाने पर अधार सिंह ने देखा कि सिंहासन खाली था. दरबार में कोर्निश (झुककर सलाम) न करना बेअदबी होती जिसे गुस्ताखी मानकर उन्हें सजा दी जाती. खाली सिंहासन को कोर्निश करते तो हँसी के पात्र बनाते कि इतनी भी अक्ल नहीं है कि सलाम बादशाह सलामत को किया जाता है गद्दी को नहीं. अधार सिंह धर्म संकट में फँस गये, उन्होंने अपने कुलदेव चित्रगुप्त जी का स्मरण कर इस संकट से उबारने की प्रार्थना करते हुए चारों और देखा. अकस्मात् उनके मन में बिजली सी कौंधी और उन्होंने दरबारियों के बीच छिपकर बैठे बादशाह अकबर को कोर्निश की. सारे दरबारी और खुद अकबर आश्चर्य में थे कि वेश बदले हुए अकबर की पहचान कैसे हुई? झेंपते हुए बादशाह खडा होकर अपनी गद्दी पर आसीन हुआ और अधार से पूछा कि उसने बादशाह को कैसे पहचाना?
अधार सिंह ने विनम्रता से उत्तर दिया कि जंगल में जिस तरह शेर के न दिखने पर अन्य जानवरों के हाव-भाव से उसका पता लगाया जाता है क्योंकि हर जानवर शेर से सतर्क होकर बचने के लिए उस पर निगाह रखता है. इसी आधार पर उन्होंने बादशाह को पहचान लिया चूकि हर दरबारी उन पर नज़र रखे था कि वे कब क्या करते हैं? अधार सिंह की बुद्धिमानी के कारण अकबर ने नकली उदारता दिखाते हुए कुछ माँगने और अपने दरबार में रहने को कहा. अधार सिंह अपने देश और महारानी दुर्गावती पर प्राण निछावर करते थे. वे अकबर के दरबार में रहते तो जीवन का अर्थ न रहता, मनाकरते तो बादशाह रुष्ट होकर दंड देता. उन्होंने पुनः चतुराई से बादशाह द्वारा कुछ माँगने के हुक्म की तामील करते हुए अपने देश लौट जाने की अनुमति माँग ली. अकबर रोकता तो वह अपने कॉल से फिरने के कारण निंदा का पात्र बनता. अतः, उसने अधार सिंह को जाने तो दिया किन्तु बाद में अपने सिपहसालार को गोंडवाना पर हमला करने का हुक्म दे दिया. दोहा बादशाह के सैन्य बल का वर्णन करते हुए कहता है-
कै लख रन मां मुग़लवा, कै लख वीर पठान?
कै लख साजे पारधी, रे दिल्ली सुलतान?
इक लख रन मां मुगलवा, दुई लख वीर पठान.
तिन लख साजे पारधी, रे दिल्ली सुलतान.
असाधारण बहादुरी से लम्बे समय तक लड़ने के बाद भी अपने देवर की गद्दारी का कारण अंततः महारानी दुर्गावती, अधार सिंह तथा अन्य वीर अपने देश और आजादी पर शहीद हो गये. मुग़ल सेना ने राज्य को लूट लिया. भागते हुए लोगों और औरतों तक को नहीं बख्शा. महारानी का नाम लेना भी गुनाह हो गया. जनगण ने अपनी लोकमाता को श्रद्धांजलि देने का एक अनूठा उपाय निकाल लिया. दुर्गावती की समाधि के रूप में सफ़ेद पत्थर एकत्र कर ढेर लगा दिया गया, जो भी वहाँ से गुजरता वह आस-पास से एक सफ़ेद कंकर उठाकर समाधि पर चढा देता. स्वतंत्रता सत्याग्रह के समय भी इस परंपरा का पालन कर आजादी के लिए संग्घर्ष करने का संकल्प किया जाता रहा. दोहा आज भी दुर्गावती, अधार सिंह और आजादी के दीवानों की याद दिल में बसाये है-
ठाँव बरेला आइये, जित रानी की ठौर.
हाथ जोर ठंडे रहें, फरकन लगे बखौर.
अर्थात यदि आप बरेला गाँव में रानी की समाधि पर हाथ जोड़कर श्रद्धाभाव से खड़े हों तो उनकी वीर गाथा सुनकर आपकी भुजाएं फड़कने लगती हैं. अस्तु... वीरांगना को महिला दिवस पर याद न किये जाने की कमी पूरी करते हुए आज दोहा-गाथा उन्हें प्रणाम कर धन्य है.
11 कविताप्रेमियों का कहना है :
लेख के लिए धन्यवाद |
दोहा के दोनों पदों के अंत में एक ही अक्षर तथा दीर्घ-लघु मात्रा अनिवार्य है.
कुछ भ्रम है इस सन्दर्भ में |
नीचे के दोहा में -
कै लख रन मां मुग़लवा, कै लख वीर पठान?
कै लख साजे पारधी, रे दिल्ली सुलतान?
एक ही अक्षर का नियम नहीं है ( ? ) जबकी दीर्घ-लघु है |
कृपया स्पष्ट करिएगा |
अवनीश ने आचार्य से ,
११२१ 2 २२१ 2
कर दिया प्रश्न आज |
11 १२ १२ २१,
दूर करें दोहा शंका
२१ १२ २२ १२ ,
बन जाए मोरे काज ||
११ २१ २१ २१
आपका,
अवनीश तिवारी
कुछ भ्रम है इस सन्दर्भ में | नीचे के दोहा में -
कै लख रन मां मुग़लवा, कै लख वीर पठान?
कै लख साजे पारधी, रे दिल्ली सुलतान?
एक ही अक्षर का नियम नहीं है ( ? ) जबकी दीर्घ-लघु है | कृपया स्पष्ट करिएगा |
अवनीश जी! उक्त दोहा में दोनों पदों के अंत में 'न' अक्षर है. पठान ( १+२+१) तथा सुलतान (१+१+२+१) में अंत में गुरु - लघु तथा अंतिम अक्षर समान "न" दोनों नियमों का पालन हुआ है.
अवनीश ने आचार्य से ,
११२१ 2 २२१ २ = १४
कर दिया प्रश्न आज |
11 १२ १२ २१, = ११ -- प्रश्न के उच्चारण में "प्रश्" एक साथ तथा 'न' अलग बोला जाता है अतः, २+१=३ मात्राएँ होंगीं.
दूर करें दोहा शंका
२१ १२ २२ १२ = १३ -- शंका में मात्राएँ २+२ =४ हैं. पूर्व पाठ ३ में उच्चारण नियम ३ देखिये. आपकी पंक्ति में मात्राएँ १३ नहीं १४ हैं जबकि १३ होनी चाहिए.
बन जाए मोरे काज ||
११ २१ २१ २१ = ११ -- जाए = २+२ तथा मोरे = २+ २ . पंक्ति में कुल मात्राएँ १३ हैं जबकि ११ होनी चाहिए.
आपको बधाई. आप मात्राओं को ८० प्रतिशत सही गिन रहे हैं. प्रारंभिक पाठों को दुहरा लें तो १०० प्रतिशत सही गिन सकेंगे. आपका उक्त दोहा भी बहुत हद तक ठीक है. दोहों को बार-बार बोलें तो देखेंगे की उनमें खास 'लय' है. वह खासियत धीरे-धीरे अभ्यास से आयेगी. उक्त दोहे के शब्दों को कुछ आगे-पीछे कर या बदलकर १३-११, १३-११ में रख पायेंगे. एक कोशिश और करें. आपमें सीखने की जो ललक है वही आपको सफल दोहाकार बना रही है.
बहुत आभार। आपके कारण दोहे पर पकड़ बनने की सम्भावना दिखायी दे रही है।
मैं आपका विशेष रूप से आभारी हूँ. आपकी टिप्पणियों ने मुझे यह श्रंखला बढ़ने के लिए प्रेरित किया अन्यथा मैं इसे छोड़ने का मन बना चुका था. इंदौर में श्री चन्द्र सेन 'विराट' ने लेखमाला को बहुत पसंद किया. वे गत २ वर्ष से मुझे इसके लिए कह रहे थे. होशंगाबाद से प्रकाशित ]मेकलसुता' में गत २ सल् से लगातार दोहा पर धारावाहिक श्रृंखला छप रही है. क्या आपने देखी? साहित्य शिल्पी पर तो आप आयी ही हैं.अस्तु...आप जैसे विज्ञजनों की सांगत में मुझे भी बहुत लाभ हो रहा है. धन्यवाद देकर अंतरंगता को औपचारिकता में नहीं बदलना चाहता.
छोड़ने की ना कहें,,,,ना ही सोचें,,,,,,
आपका स्नेह ही ऐसा है के कोई भी आपका यूँ जाना सहन नहीं करेगा,,,
आप की राह एकदम सही है ,,,इसे न छोडें,,,,
kyaa avneesh ko avnish padh sakte hain,,,??
बहुत आस से मिले गुरु, नहीं बिगारूँ नाम।
आचार्य जी आपकी आभारी हूँ। मेकलसुता मैंने नहीं पढ़ी, लेकिन आपकी कक्षाएँ बहुत ही प्रासंगिक हैं। भारत की दोहा परम्परा का कोई भी सानी नहीं है, अत: आज कुछ लोग भी इस विधा में लिखना प्रारम्भ करें तो पुरातन परम्परा न केवल जीवित होगी अपितु चिंतन प्रक्रिया में भी विस्तार होगा। क्योंकि दोहे के माध्यम से संक्षिप्त में बहुत कुछ कह दिया जाता है।
२२ २ ११ २ १२ २२ २२ १२१
वीर गाथा कहें सलिल, सुनें सभी अनिमेष
२१ २२ १२ १११ 12 १२ ११२१ .
आचार्य जी,
यह गोष्ठी भी बेहद जानकारी लिए हुये है . आप छोड़ कर जाने की बात ना करें, कोई भी नयी चीज़ सीखने में समय अवश्य लगता है, हम सब की गति धीमी जरूर है, पर सभी अपनी अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं. आपका साथ बना रहे, इसी उम्मीद के साथ
पूजा अनिल
यदि व्यस्तता के कारण हम टिप्पणी नहीं कर पाते तो इसका मतलब आप कतई ना निकालें कि हम पढ़ते नहीं.. आपकी सौ बातों में से ५० बातें भी हमारे समझ में आ सकें तो भी बहुत है!! जाने की बात न करें..
टिप्प्णी नहीं कर पाते, पढ़ते तो हम रहते है,
आप जाने की कहते हैं, हम परिवार कहते हैं