नवगीत:
संजीव
संजीव
उड़ चल हंसा
मत रुकना
यह देश पराया है
.
ऊपर-नीचे बादल आये
सूर्य तरेरे आँख, डराये
कहीं स्वर्णिमा, कहीं कालिमा
भ्रमित न होना
मत मुड़ना
यह देश सुहाया है
.
पंख तने हों ऊपर-नीचे
पलक न पल भर अँखियाँ मीचे
ऊषा फेंके जाल सुनहरा
मुग्ध न होना
मत झुकना
मत सोच बुलाया है
.
एक दूसरे को नित कोसें
भत्ते बढ़वा पालन-पोसें
वादों को जुमला कह ठगते
नोटा अपना
बेच नहीं मत
तंत्र पराया है
.
मत रुकना
यह देश पराया है
.
ऊपर-नीचे बादल आये
सूर्य तरेरे आँख, डराये
कहीं स्वर्णिमा, कहीं कालिमा
भ्रमित न होना
मत मुड़ना
यह देश सुहाया है
.
पंख तने हों ऊपर-नीचे
पलक न पल भर अँखियाँ मीचे
ऊषा फेंके जाल सुनहरा
मुग्ध न होना
मत झुकना
मत सोच बुलाया है
.
एक दूसरे को नित कोसें
भत्ते बढ़वा पालन-पोसें
वादों को जुमला कह ठगते
नोटा अपना
बेच नहीं मत
तंत्र पराया है
.
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