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रविवार, 19 जनवरी 2020

दोहा गाथा सनातन : पाठ १४ - २५ / २९ अप्रैल २००९

Saturday, April 25, 2009

दोहा गाथा सनातन : पाठ 14 - दोहा की छवियाँ अमित


दोहा की छवियाँ अमित, सभी एक से एक.
निरख-परख रचिए इन्हें, दोहद सहित विवेक..

दोहा के तेईस हैं, ललित-ललाम प्रकार.
व्यक्त कर सकें भाव हर, कवी विधि के अनुसार..

भ्रमर-सुभ्रामर में रहें, गुरु बाइस-इक्कीस.
शरभ-श्येन में गुरु रहें, बीस और उन्नीस..

रखें चार-छ: लघु सदा, भ्रमर सुभ्रामर छाँट.
आठ और दस लघु सहित, शरभ-श्येन के ठाठ..


भ्रमर- २२ गुरु, ४ लघु=४८

बाइस गुरु, लघु चार ले, रचिए दोहा मीत.
भ्रमर सद्रश गुनगुन करे, बना प्रीत की रीत.

सांसें सांसों में समा, दो हो पूरा काज,
मेरी ही तो हो सखे, क्यों आती है लाज?


सुभ्रामर - २१ गुरु, ६ लघु=४८

इक्किस गुरु छ: लघु सहित, दोहा ले मन मोह.
कहें सुभ्रामर कवि इसे, सह ना सकें विछोह..

पाना-खोना दें भुला, देख रहा अज्ञेय.
हा-हा,ही-ही ही नहीं, है सांसों का ध्येय..


शरभ- २० गुरु, ८ लघु=४८

रहे बीस गुरु आठ लघु का उत्तम संयोग.
कहलाता दोहा शरभ, हरता है भव-रोग..

हँसे अंगिका-बज्जिका, बुन्देली के साथ.
मिले मराठी-मालवी, उर्दू दोहा-हाथ..


श्येन- १९ गुरु, १० लघु=४८

उन्निस गुरु दस लघु रहें, श्येन मिले शुभ नाम.
कभी भोर का गीत हो, कभी भजन की शाम..

ठोंका-पीटा-बजाया, साधा सधा न वाद्य.
बिना चबाये खा लिया, नहीं पचेगा खाद्य..


दोहा के २३ प्रकारों में से चार से परिचय प्राप्त करें और उन्हें मित्र बनाने का प्रयास करें.

मनु जी! आपने अंग्रेज दोहाकार स्व. श्री फ्रेडरिक पिंकोट द्वारा रचे गए दोहों का अर्थ जानना चाहा है. यह स्वागतेय है. आपने यह भी अनुभव किया कि अंग्रेज के लिए हिन्दी सीखना और उसमें दोहा को जानकार दोहा रचना कितना कठिन रहा होगा. श्री पिंकोट का निम्न सोरठा एवं दोहा यह भी तो कहता है कि जब एक विदेशी और हिन्दी न जाननेवाला इन छंदों को अपना सकता है तो हम भारतीय इन्हें सिद्ध क्यों नहीं कर सकते? पाशं केवा इच्छाशक्ति का है, छंद तो सभी को गले लगाने के लिए उत्सुक है.

बैस वंस अवतंस, श्री बाबू हरिचंद जू.
छीर-नीर कलहंस, टुक उत्तर लिख दे मोहि.


शब्दार्थ: बैस=वैश्य, वंस= वंश, अवतंस=अवतंश, जू=जी, छीर=क्षीर=दूध, नीर=पानी, कलहंस=राजहंस, तुक=तनिक, मोहि=मुझे.

भावार्थ: हे वैश्य कुल में अवतरित बाबू हरिश्चंद्र जी! आप राजहंस की तरह दूध-पानी के मिश्रण में से दूध को अलग कर पीने में समर्थ हैं. मुझे उत्तर देने की कृपा कीजिये.

श्रीयुत सकल कविंद, कुलनुत बाबू हरिचंद.
भारत हृदय सतार नभ, उदय रहो जनु चंद.


भावार्थ: हे सभी कवियों में सर्वाधिक श्री संपन्न, कवियों के कुल भूषण! आप भारत के हृदयरूपी आकाश में चंद्रमा की तरह उदित हुए हैं.

सुविख्यात सूफी संत अमीर खुसरो (संवत १३१२-१३८२) ने दोहा का दामन थामा तो दोहा ने उनकी प्यास मिटाने के साथ-साथ उन्हें जन-मन में प्रतिष्ठित कर अमर कर दिया-

गोरी सोयी सेज पर, मुख पर डारे केस.
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस..

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग.
तन मेरो मन पीउ को, दोउ भये इक रंग..

सजन सकारे जायेंगे, नैन मरेंगे रोय.
विधना ऐसी रैन कर, भोर कभी ना होय..


आज का गृहकार्य : जनाब खुसरो के कुछ दोहे लाइए ताकि उनका आनंद सभी ले सकें. उक्त दोहों की गुरु-लघु मात्रा दे आधार पर उनका प्रकार बताइए और ईनाम में दोहा पाइए.

दो जानकारियाँ :

मेकलसुता त्रैमासिक दोहा-पत्रिका है. जिसमें दोहा तथा दोहा-कुल के छंद ही प्रकाशित होते हैं. संपादक हैं श्री कृष्ण स्वरुप शर्मा 'मैथिलेन्द्र'. संपर्क: गीतांजलि भवन, ८ शिवाजी नगर उपनिवेश, नर्मदापुरम, होशंगाबाद ४६१००१, दूरभाष: ०७५७४ २५७७२९, चल्भ्श: ०९४२४४७१२४९, शुल्क: वार्षिक ६०/-. अब तक १८ अंक प्रकाशित हो चुके हैं.

श्री मैथिलेन्द्र शीघ्र ही दोहा सन्दर्भ-२, दोहा पर शोधपरक ग्रन्थ प्रकाशित करने जा रहे हैं. जिन दोहकारों का कम से कम एक दोहा संग्रह प्रकाशित हो चका है उनसे परिचय (नाम, माता-पिता-जीवनसाथी का नाम, जन्म स्थान, जन्म तिथि, शिक्षा, आजीविका, साहित्यिक योगदान, प्रकाशित कृतियाँ, पता, दूरभाष, चलभाष, श्वेत-श्याम छाया चित्र, पता लिखा पोस्ट कार्ड, तथा सहयोग निधि १५०/- ३१-१२-२००९ तक आमंत्रित है.

28 कविताप्रेमियों का कहना है :

neelam का कहना है कि -
खुसरो दरिया प्रेम का ,उलटी वा,की धार
जो उतरा सो डूब गया ,जो डूब गया सो पार

२)सेज वो सूनी देखके रोवु मै दिन रैन ,
पिया -पिया मै करत हूँ ,पहरों पल भर न चैन |

मात्राएँ तो आचार्य जी बताएँगे ही खुसरो के दोहे हमने लिख दिए हैं
अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -
आचार्य जी
नेट पर सब कुछ उपलब्‍ध है, वहीं से ही दोहे कट और पेस्‍ट करने का मन नहीं कर रहा है। दोहों के 23 प्रकार और गुरु, लघु समझ नहीं आ रहे। कृपया विस्‍तार से बताएं।
manu का कहना है कि -
डा, अजित जी से सहमत हूँ,,,
जो खुद से याद थे वो आपने और नीलम जी ने लिख दिए हैं,,,
बल्कि नीलम जी वाला नम्बर दो मेरे लिए नया है,,,,
अब किताब में से देखकर टीपना अजित जी की तरह से ही मुझे भी सही नहीं लगता,,,

दोहे का अर्थ समझाने का धन्यवाद,,,,,
एक बात और,,,,,
बहुत ही भला लगता है के जब खुसरो का ज़िक्र होते ही नीलम जी जरूर पहुँचती हैं,,,,,
सचमुच कोई प्रशंशक हो तो ऐसा,,,
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
आचार्य जी, प्रणाम

पिछली बार आपकी आँखों की तकलीफ के बारे में पढ़कर बड़ी तकलीफ महसूस हुई थी. आशा है कि अब दशा में सुधार होगा. कितनी मेहनत करते हैं आप हम सबके लिये.
आज जो मनु जी सोच रहे हैं बिलकुल वही मैं भी सोचे जा रही थी कि नीलम जी खुसरो जी के नाम पर झट से चहक पड़ती हैं. साफ़ दिख रहा है कि उनके दोहों से खास लगाव है. और बड़े मज़े वाले दोहे लाती हैं चुन कर ' जो उतरा वो डूब गया, जो डूबा वो पार'. वाह!
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
आचार्य जी,

दोहा का कुनबा बड़ा, बढ़कर हुआ विशाल
कठिन समस्या हो गयी, बिगड़ा मेरा हाल
बिगड़ा मेरा हाल, कि मीटर बंद हो गया
अकल हो गयी मंद,लिखा तो छंद हो गया
शन्नो है लाचार, न अब ले पाये लोहा
डग-मग करे नैया, हँसते मुझपर दोहा.
divya naramada का कहना है कि -
खुसरो के दोहे तो अंतर्जाल से मैं भी लगा सकता था. आपसे मँगाने के पीछे आशय यह था की आप इस बहाने उन्हें पढेंगे, उनका अर्थ समझेंगे और उनकी लय तथा धुन के अधिक निकट आयेंगे. हर महान दोहाकार की अपनी एक विशेषता होती है, आप उसे समझ सके तो अपने रंग में ढालकर आप कुछ ऐसा रच पाएंगे कि इस समय के सिद्ध दोहाकार कहलायें. किसी भी पुराने दोहाकार के दोहे स्मृति, पुस्तक या जाल से ही मिलेंगे. कम से कम एक दोहा हर एक लाये.

दोहा के पदों और चरणों में मात्र गणना का पर्याप्त अभ्यास आपको है ही. अब करना केवल यह है कि चारो चरणों या दोनों पदों या पूरे दोहे की गुरु और लघु मात्राएँ अलग-अलग गिनें, गुरु को २ से गुणा कर लघु जोडेंगे तो योग ४८ ही आएगा. दोहा में कुल ४८ लघु मात्राएँ होती हैं. हर गुरु मात्रा के लिए २ लघु मात्राएँ कम हो जाती हैं. दोहा के २३ प्रकार इन लघु-गुरु के विविध संयोजनों से ही बनते हैं. ग़ज़ल की बहर की तरह दोहे के प्रकार हैं. बहरों के नामों की तरह इन दोहों के नाम हैं.
divya naramada का कहना है कि -
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neelam का कहना है कि -
खुसरो की दीवानगी कम ही नहीं होती हमारी ,क्या गजब के थे वो,उस जनम में उनकी चची या भतीजी ही रहे होंगे हम उनके ,
फ़ारसी और अवधी में जो उन्होंने रचना की है ,
जिहाले मुश्किन व्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्ल्लाह
तोत -ए-हिंद उनको कोई ऐसे ही थोड़े ही कहा गया है |
haan aachaary ji ne ek doha kaha tha to usme se koi ek doha manu ji ya shanno ji le sakti hai .
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
आचार्य जी,
इस बार कक्षा में लोग सही तरीके से हाजिरी लगा रहे हैं. हालाँकि मानसिक उलझनें बढ़ गयीं हैं दोहों के विषम रूप देखकर. मैं फिर आ गयी लेकिन बिना वजह नहीं, गुरु जी, कदापि नहीं. मैं तो आपको खुसरो साहब के दोहे दिखाने लायी हूँ जिन्हें मैंने अंतर्जाल में पाया. यहाँ मेरे पास कोई पुस्तक नहीं है किसी भी दोहा-रचयिता की.

'खुसरो बाजी प्रेम की, मैं खेलूँ पी के संग
जीत गयी तो पी मोरे, हारी पी के संग'.

'अपनी छव बनायिके, जो मैं पी के पास गयी
छव देखी जब पीयू की, सो अपनी भूल गयी'.

'एक गुनी ने यह गुन कीना
हरियल पिंजरे में दे दीना
देखो जादूगर का कमाल
डाले हरा निकाले लाल'.

एक सवाल आ रहा है दिमाग में जिसे पूछे बिना वह पच नहीं रहा है.....वह यह कि क्या खुसरो जी के जमाने में मात्रायों को गिनने की प्रथा थी या नहीं. क्योंकि मुझे काफी गड़बड़ दिखती है इधर-उधर कई जगह. इतने महान और ज्ञानी इंसान के बारे में ऐसा सवाल पूछते हुए संकोच बहुत हो रहा है लेकिन मुझे यह सवाल तंग बहुत कर रहा है, गुरु जी.
Neelam ji,
ho sakta hai ki aap ka kaha kisi had tak sahi ho aur ab kaliyug men reincarnation hua ho aapka aur us samay aap khusro ji kee chachi ya bhateeji rahi hon. main aapki vhavnaayon ko samajh sakti hoon.
अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -
आचार्य जी
दो दोहे खोजे हैं -
खुसरो रेन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पिऊ को, दोउ भये एक रंग

खुसरो ऐसी प्रीत कर, जैसी हिन्‍दू जोय
पूत कराए कारने, जल,जल कोयला होय
अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -
आचार्य जी
दोहे के तीन प्रकार प्रस्‍तुत हैं -
हाथ पसारे मैं खड़ी, घर की चौखट पार
छाँव मिली ना ओट थी, बस थी केवल हार।
16 + 16 = करभ

रात चाँदनी खूब थी, तारे जगमग होय
पंछी बैठा एकला, भोर बता कब होय।
17+14= मर्कट

साँपों ने मुझको डसा, घुस बाँहों के माय
प्रेम सिमटकर रह गया, शक ही बढ़जा जाय।
14+20= हंस
अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -
तीसरे दोहे का अंतिम पद में शक ही बढ़ता जाय है।
Kavi Kulwant का कहना है कि -
रावण रावण जो दिखे, राम करे संहार ।
रावण घूमे राम बन, कलयुग बंटाधार ॥

कलयुग में मैं ढो़ रहा, लेकर अपनी लाश ।
सत्य रखूँ यां खुद रहूँ, खुद का किया विनाश ॥

भगवन सुख से सो रहा, असुर धरा सब भेज ।
देवों की रक्षा हुई, फंसा मनुज निस्तेज ॥

मैं मैं मरता मर मिटा, मिट्टी मटियामेट ।
मिट्टी में मिट्टी मिली, मद माया मलमेट ॥

सच की अर्थी ढ़ो रहा, ले कांधे पर भार ।
पहुंचाने शमशान भी, मिला न कोई यार ॥

कवि कुलवंत सिंह
Pooja Anil का कहना है कि -
आचार्य जी,
अच्छा किया जो आपने खुसरो के दोहे लेकर आने को कहा, इस बहाने अमीर खुसरो की लिखी तमाम रचनाओं को पढने का सौभाग्य मिला, अब तक सब नहीं पढ़ पाई, इन्हें पढने का काम चल रहा है और अपनी दोहा यात्रा भी चल ही रही है :) , अमीर खुसरो के कुछ दोहे , चुन कर ले आई ---

अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।

खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।।

खुसरो मौला के रुठते, पीर के सरने जाय।
कहे खुसरो पीर के रुठते, मौला नहि होत सहाय।।

दोहों के प्रकार समझने में अब तक कठिनाई हो रही है, पर हार नहीं मानी है, कोशिश जारी है, जैसे ही समझ में आ जायेंगे, उदाहरण के साथ फिर हाजिर हो जाउंगी :).
अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -
आचार्य जी
तीन दोहे और प्रस्‍तुत हैं, 23 बनाने में अभी समय लगेगा। मुझे अंतिम दो प्रकार- उदर और सर्प समझ नहीं आए, क्‍योंकि बिना लघु के दोहा कैसे सम्‍भव है?
प्रेम और विश्‍वास से, जोड़ा था परिवार
नौकरियां ने चोट की, तोड़ा है घरबार
18+12 = मंडूक

चीयां मेरी बावरी, उल्‍टी उल्‍टी जाय
दिन में तो सोती रहे, पड़े रात जग जाय।
19 + 10 = श्‍येन

सारा आटा साँध के, रोटी बनती नाय
थोड़ा साटा राख के, लोई बिलती जाय
20 + 8 = शरभ
manu का कहना है कि -
नीलम जी,
आपने जैसे अपना नाता खुसरो से जोड़ा है,,,
पहले तो कुछ इर्ष्या सी हुयी ,,,
फिर लगा के वाह क्या बात कही है,,,,कुछ न कुछ तो हम भी लगते ही होंगे,,,, (दूर के ही सही,,)
शायद इसलिए खुसरो से लगाव तो पूरा है पर दोहा नहीं ला पा रहे हैं,,,,,
एक बात और भी साफ़ हो गयी,,,,,के जब कोई हिन्दी में या आम बोलचाल की भाषा में दरार पैदा करने की बात होती है तो हमसे भी पहले आगे बढ़कर कौन बोलता है ,,,,,,,
जी हां,,
ये खुसरो ही बोलता है नीलम जी के रूप में,,,,,
जो श्रद्धा खुसरो ने अपने उस्ताद के लिए उम्र भर रखी, वैसी ही उन्हें आज मिल रही है,,
Tapan Sharma का कहना है कि -
zihaal-e muskin, makan-baranjish, bahale-hijra bechaara dil hai...
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
सही कहा मनु जी आपने, क्यों नहीं? कोई जरूरी है कि खुसरो साहिब नीलम जी के ही कुछ लगते हों. यह तो इंसाफी नहीं होगी. अब तो मुझे ऐसा लगने लगा है कि तकदीर ने हम सबको इकट्ठा इस दोहे की कक्षा में ला पटका है तो शायद इसके पीछे जरूर उस ऊपर वाले की कुछ कहने की इक्षा होगी जो हम समझ नहीं पाए थे अब तक. लेकिन नीलम जी की बात से माथा ठनका कि शायद हम लोगों का भी उस समय किसी तरह की रिश्तेदारी का connection हो. सबूत तो नहीं दे सकते लेकिन केवल हवा में तीर जरूर फेंक सकते हैं अनुमान लगाने को.
manu का कहना है कि -
हूऊऊऊन
मैं भी यही सोच रहा हूँ के हमें यहाँ क्यूं लाकर पटका गया है,,,,,

तपन जी,
शायद ये शे'र है ....
और है भी फिल्म गुलामी का ......
जिहाले मिस्कीं मकुन तगाफुल , दुराये नैना, बनाए बतियाँ,
के ताबे-हिज्राँ न दारम ऐ जाँ, न लेहू काहे लगाए छतियाँ .....

साबरी brothers की सूफियानअ आवाज में ये गजल कवाल्ली के रंग में सुनिए,,,,तो एक नया ही संसार नजर आता है,,,,
और मजे की बात ये के इसकी शुरू की लाइने दाल कर फिल्म गुलामी के गीत में भी चार चाँद लग गए हैं,,,,,,,,
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
लगता है कि तपन जी confusion की अवस्था में होंगे और गलत दरवाज़े पर दस्तक दे गये. ऐसा भी हो जाता है कभी-कभी. अब दोहे और शेरों में मिलावट हो रही है और दोहों की कक्षा में शेर और शेरों की महफ़िल में दोहे सजने लगें हैं. किसकी गलती??
Tapan SHarma का कहना है कि -
main dohe ki post nahin padh paaya hun.. par comments padh liye isiliye post kar di..

manuji, ek aur gaana bhi hai:

zihaal-e muskin, makan-baranjish, bahale-hijra bechaara dil hai...

sunaayee deti hai jiski dhadkan humaara dil ya tumhaara dil hai

ab aap log kahenge ki "aawaaz" ko bhi tapan yahi le aaya... :-).. par chalega..
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
हाँ चलेगा बिलकुल चलेगा और आप भी चलेगा अगली बार हमरी बात मन कर पहेली की कक्षा (महफ़िल) में. वैसे आपने बरखुरदार अपना नाम तपन से गगन में बदलने की हुशिआरी क्यों की पिछली बार पहेलियों की कक्षा में???? और सुमीत जी को भी ढूंढ कर लाइएगा. Neelam ji ने उनकी खोज में पोस्टर चिपकवा दिए होंगे गली-कूंचों में शायद अब तक. अगर उन्हें कोई पहचान सके तो पहेलियों की कक्षा का रास्ता दिखाने का कष्ट जरूर कीजियेगा. मामला संगीन होता जा रहा है.

Wednesday, April 29, 2009

गोष्ठी 14 - दोहा के संग-साथ


दोहा के पदों और चरणों में मात्रा गणना का पर्याप्त अभ्यास आपको है। अब करना केवल यह है कि चारो चरणों या दोनों पदों या पूरे दोहे की गुरु और लघु मात्राएँ अलग-अलग गिनें, गुरु को २ से गुणा कर लघु जोड़ेंगे तो योग ४८ ही आएगा. दोहा में कुल ४८ लघु मात्राएँ होती हैं. हर गुरु मात्रा के लिए २ लघु मात्राएँ कम हो जाती हैं. दोहा के २३ प्रकार इन लघु-गुरु के विविध संयोजनों से ही बनते हैं. ग़ज़ल की बहर की तरह दोहे के प्रकार हैं. बहरों के नामों की तरह इन दोहों के नाम हैं. नीचे आपके ही दोहों में मात्रा गणना एवं दोहा का प्रकार प्रस्तुत है-

- अजित जी
लोकतन्‍त्र की गूँज है, लोक मिले ना खोज
२ १ २ १ २ २ १ २, २ १ १ २ २ २ १
गुरु ९ बार, लघु ६ बार= १८+६=२४ मात्रा
राजतन्‍त्र ही रह गया, वोट बिके हैं रोज
२ १ २ १ २ १ १ १ २,२ १ १ २ २ २ १
गुरु ८ बार, लघु ८ बार=१६+८=२४ मात्रा.
पूरे दोहे में जोडें तो गुरु ९+८=१७ बार अर्थात ३४ मात्रा,
लघु ६+८=१४ मात्रा, कुल ३४ + १४ = ४८ मात्रा
१७ गुरु तथा १४ लघु मात्राओं के दोहे का नाम 'मरकट' है.

-मनु जी
अब तो कक्षा नायिका, के भी पकडे कान
१ १ २ २ २ २ १ २ २ २ १ १ २ २ १
गुरु ९ बार, लघु ६ बार = १८+६=२४ मात्रा
फुटक रहे हैं छात्र सब , देती क्यूं ना ध्यान
१ १ १ १ २ २ २ १ १ १, २ २ २ २ २ १
गुरु ८ बार, लघु ८ बार =१६+८ =२४ मात्रा
पूरे दोहे में जोडें तो गुरु ९+८=१७ बार अर्थात ३४ मात्रा,
लघु ६+८=१४ मात्रा, कुल ३४ + १४ = ४८ मात्रा
१७ गुरु तथा १४ लघु मात्राओं के दोहे का नाम 'मरकट' है.

-पूजा जी
रचना रोला भूमिका, दोहे के संग साथ.
१ १ २ २ २ २ १ २, २ २ २ १ १ २ १
गुरु ९ बार + लघु ६ बार = १८+६=२४ मात्रा
बना रहे हैं कुण्डलिनी, लिये हाथ में हाथ.
१ २ १ २ २ २ १ २, १ २ २ १ २ २ १
गुरु ९ बार +लघु ६ बार = १८+६=२४ मात्रा
पूरे दोहे में जोडें तो गुरु ९+९=१८ बार अर्थात ३६ मात्रा,
लघु ६+६=१२ मात्रा, कुल ३६ + १२ = ४८ मात्रा
१८ गुरु तथा १२ लघु मात्राओं के दोहे का नाम 'मंडूक' है.

-अभिषेक जी
मैं अपने को जप रहा, चादर-बाहर पाँव।
२ १ १ २ २ १ १ १ २, २ १ १ २ १ १ २ १
गुरु ७ बार, लघु १० बार = १४+१०=२४
अभिमानी जन का नहीं, कहीं नाम या गाँव।
१ १ २ २ १ १ २ १ २, १ २ २ १ २ २ १
गुरु ८ बार, लघु ८ बार = १६+८=२४
पूरे दोहे में जोडें तो गुरु ७+८=१५ बार अर्थात ३० मात्रा,
लघु ६+६=१२ मात्रा, कुल ३० + १८ = ४८ मात्रा
१५ गुरु तथा १८ लघु मात्राओं के दोहे का नाम 'नर' है.

-तपन शर्मा
मात्रा का भय नहीं है, करूँ हमेशा जोड़.
२ २ २ १ १ १ २ २, १ २ १ २ २ २ १
गुरु ९ बार, लघु ६ बार = १८+६=२४
ज्ञान न शब्दों का मुझे, शिल्प न दूँ मैं तोड़.
२ १ १ २ २ २ १ २, २ १ १ २ २ २ १
गुरु ९ बार, लघु ६ बार, १८+६=२४
पूरे दोहे में जोडें तो गुरु ९+९=१८ बार अर्थात ३६ मात्रा,
लघु ६+६=१२ मात्रा, कुल ३६ + १२ = ४८ मात्रा
१८ गुरु तथा १२ लघु मात्राओं के दोहे का नाम 'मंडूक' है.

-शन्नो जी
'जहाँ पड़ें गुरु के चरण, चंदन बनती धूल.
१ २ १ २ १ १ २ १ १ १, २ १ १ १ १ २ २ १
गुरु ६ बार, लघु १२ बार = १२+१२=२४
पाकर चरणों में शरण, मिले शांति का कूल..
२ १ १ १ १ २ २ १ १ १,१ २ २ १ २ २ १
गुरु ७ बार, लघु १० बार = १४+१०=२४
पूरे दोहे में जोडें तो गुरु ६+७=१३ बार अर्थात २६ मात्रा,
लघु १२+१०= २२ मात्रा, कुल २६ + २२ = ४८ मात्रा
१३ गुरु तथा २२ लघु मात्राओं के दोहे का नाम 'गयंद या मदुकल' है.

- सलिल
दोहा गाथा से हुए, जितने श्रोता गोल.
२ २ २ २ २ १ २, १ १ २ २ २ २ १.
गुरु १० बार, लघु ४ बार=२०+४=२४
वापिस आ दोहा रचें, शब्द-शब्द को तोल..
२ १ १ २ २ २ १ २ २ १ २ १ २ २ १
गुरु ९ बार, लघु ६ बार=१८+६=२४
पूरे दोहे में जोडें तो गुरु १०+९=१९ बार अर्थात ३८ मात्रा,
लघु ४+६= १० मात्रा, कुल ३८ + १० = ४८ मात्रा
१९ गुरु तथा १० लघु मात्राओं के दोहे का नाम 'श्येन' है. .

गोरी सोयी सेज पर, मुख पर डारे केस.
चल खुसरो घर आपने, रैन भई चहुँ देस.. १४ गुरु, २० लघु - हंस
खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग.
तन मेरो मन पीउ को, दोउ भये इक रंग.. १६ गुरु, १६ लघु - करभ
सजन सकारे जायेंगे, नैन मरेंगे रोय.
विधना ऐसी रैन कर, भोर कभी ना होय.. १६ गुरु, १६ लघु- करभ

टिप्पणी: प्रथम चरण में १३ के स्थान पर १४ मात्राएँ हैं. यहाँ एक मात्रा गिराई गयी है. खुसरो हिन्दी-उर्दू दोनों में लिखते थे. यह असर होना स्वाभाविक है, पर हम ऐसा न करें.

नीलम जी ...
दोहा के परिवार में, जुडें-लिखें यदि आप.
तब खुसरो की विरासत, सके जगत में व्याप. १४-२० हंस
खुसरो दरिया प्रेम का ,उलटी वाकी धार
जो उतरा सो डूब गया ,जो डूब गया सो पार
तीसरे चरण में एक मात्रा गिरेगी, चौथे चरण में 'जो' नहीं है.
खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार
जो उतरा सो डूब गया, डूब गया सो पार १७ - १४ मरकट


मैंने निम्न रूप भी सुना है-
खुसरो दरिया प्रेम का, उल्टी बाकी धार.
जो उतराया डूबता, जो डूबा हो पार.. १९ गुरु, १० लघु -श्येन

२)सेज वो सूनी देखके रोवु मै दिन रैन ,
पिया -पिया मै करत हूँ, पहरों पल भर न चैन |
सेज वो सूनी देखके, रोऊँ मैं दिन-रैन.
पिया-पिया मैं करत हूँ, पल भर पड़े न चैन.. १४ गुरु, २० लघु -हंस.
मात्राएँ आप गिन लातीं तो सबको प्रेरणा मिलती.

shanno said...
आचार्य जी,
दोहा का कुनबा बड़ा, बढ़कर हुआ विशाल
कठिन समस्या हो गयी, बिगड़ा मेरा हाल १५ - १८ नर
बिगड़ा मेरा हाल, कि मीटर बंद हो गया
अकल हो गयी मंद,लिखा तो छंद हो गया
शन्नो है लाचार, न अब ले पाये लोहा
डग-मग करे नैया, हँसते मुझपर दोहा.

'खुसरो बाजी प्रेम की, मैं खेलूँ पी के संग
जीत गयी तो पी मोरे, हारी पी के संग'.
दूसरे चरण से 'मैं' हटा दें. तीसरे चरनमें एक मात्रा गिरेगी. २० - ८ शरभ

'अपनी छव बनायिके, जो मैं पी के पास गयी
छव देखी जब पीयू की, सो अपनी भूल गयी'. -यह दोहा नहीं है.

'एक गुनी ने यह गुन कीना
हरियल पिंजरे में दे दीना
देखो जादूगर का कमाल
डाले हरा निकाले लाल'. - यह पहेली है...बूझिये.
एक सवाल आ रहा है दिमाग में जिसे पूछे बिना वह पच नहीं रहा है.....वह यह कि क्या खुसरो जी के जमाने में मात्रायों को गिनने की प्रथा थी या नहीं. क्योंकि मुझे काफी गड़बड़ दिखती है इधर-उधर कई जगह. इतने महान और ज्ञानी इंसान के बारे में ऐसा सवाल पूछते हुए संकोच बहुत हो रहा है

संकोच न करें...खुसरो के समय में आज की तरह विद्यालय या किताबें सर्व सुलभ नहीं. थे. शिक्षा गुरुओं या उस्तादों से ली जाती थी. खुसरो बहुभाषी विद्वान् थे. संस्कृत, अरबी-फारसी-उर्दू तथा अपभ्रंश जानते थे. आम बोल-चाल की भाषा में, जिसे वे 'हिन्दवी' कहते थे रचनाएँ करते थे. इसलिए उनके कलाम में कई जगहों पर उर्दू की तरह मात्राएँ गिराई जाना जरूरी हो जाता है. दूसरे इतना समय बीत गया है कि अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग पाठ-भेद प्रचलित हैं.

Dr. Smt. ajit gupta said...
आचार्य जी
दो दोहे खोजे हैं -
खुसरो रेन सुहाग की, जागी पी के संग
तन मेरो मन पिऊ को, दोउ भये एक रंग
खुसरो ऐसी प्रीत कर, जैसी हिन्‍दू जोय
पूत कराए कारने, जल,जल कोयला होय
दोहे के तीन प्रकार प्रस्‍तुत हैं -
हाथ पसारे मैं खड़ी, घर की चौखट पार
छाँव मिली ना ओट थी, बस थी केवल हार।
१६ + १६ = करभ
रात चाँदनी खूब थी, तारे जगमग होय
पंछी बैठा एकला, भोर बता कब होय।
१७+१४= मर्कट
साँपों ने मुझको डसा, घुस बाँहों के माय
प्रेम सिमटकर रह गया, शक ही बढ़जा जाय।
१४+२०= हंस
तीन दोहे और प्रस्‍तुत हैं, २३ बनाने में अभी समय लगेगा। मुझे अंतिम दो प्रकार- उदर और सर्प समझ नहीं आए, क्‍योंकि बिना लघु के दोहा कैसे सम्‍भव है?

उदर में १ गुरु तथा ४६ लघु हैं जबकि सर्प में गुरु नहीं है, ४८ लघु हैं.

प्रेम और विश्‍वास से, जोड़ा था परिवार
नौकरियां ने चोट की, तोड़ा है घरबार
१८+१२ = मंडूक
चीयां मेरी बावरी, उल्‍टी उल्‍टी जाय
दिन में तो सोती रहे, पड़े रात जग जाय।
१९ + १० = श्‍येन
सारा आटा साँध के, रोटी बनती नाय
थोड़ा साटा राख के, लोई बिलती जाय
२० + ८ = शरभ

वाह! वाह!! आपने कमाल कर दिया. आज की दोहा ध्वजवाहिका आप ही हैं.

Kavi Kulwant said...
रावण रावण जो दिखे, राम करे संहार ।
रावण घूमे राम बन, कलयुग बंटाधार ॥
कलयुग में मैं ढो़ रहा, लेकर अपनी लाश ।
सत्य रखूँ यां खुद रहूँ, खुद का किया विनाश ॥
भगवन सुख से सो रहा, असुर धरा सब भेज ।
देवों की रक्षा हुई, फंसा मनुज निस्तेज ॥
मैं मैं मरता मर मिटा, मिट्टी मटियामेट ।
मिट्टी में मिट्टी मिली, मद माया मलमेट ॥
सच की अर्थी ढ़ो रहा, ले कांधे पर भार ।
पहुंचाने शमशान भी, मिला न कोई यार ॥

स्वागत कवि कुलवंत जी!, हम दर्शन कर धन्य.
दोहों का उपहार है, सचमुच मीत अनन्य.

pooja said...
आचार्य जी,
अच्छा किया जो आपने खुसरो के दोहे लेकर आने को कहा, इस बहाने अमीर खुसरो की लिखी तमाम रचनाओं को पढने का सौभाग्य मिला, अब तक सब नहीं पढ़ पाई, इन्हें पढने का काम चल रहा है और अपनी दोहा यात्रा भी चल ही रही है :) , अमीर खुसरो के कुछ दोहे , चुन कर ले आई ---
अंगना तो परबत भयो, देहरी भई विदेस।
जा बाबुल घर आपने, मैं चली पिया के देस।।

अँगना तो परबत भयो, दहरी भई बिदेस.
जा बाबुल घर आपने, चली पिया के देस..

खुसरो पाती प्रेम की बिरला बाँचे कोय।
वेद, कुरान, पोथी पढ़े, प्रेम बिना का होय।।
तीसरे चरण में एक मात्रा गिरेगी.

खुसरो मौला के रुठते, पीर के सरने जाय।
कहे खुसरो पीर के रुठते, मौला नहि होत सहाय।।

दोहों के प्रकार समझने में अब तक कठिनाई हो रही है, पर हार नहीं मानी है, कोशिश जारी है, जैसे ही समझ में आ जायेंगे, उदाहरण के साथ फिर हाजिर हो जाउंगी.

पूजा जी! आपका परिश्रम और लग्न सराहनीय है। आपका प्रयास अन्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनेगा. पुराने दोहाकारों के दोहों की मात्रा गणना (तकतीअ) करते हुए प्रक्षिप्त शब्दों को खोज कर अलग कर दें। शीघ्रता न करें। दोहा पढ़ती-लिखती रहें...अपने-आप उनकी लय का अंतर समझने लगेंगी. अस्तु...

19 कविताप्रेमियों का कहना है :

manu का कहना है कि -
क्या बात है आचार्य,,,,,,,,,,,

सभी को नाप दिया है आपने तो ,,,,,
और मुझे तो बड़ा ही मजा आया जब पता लगा के नाम चाहे जो भी हो ,,पर मेरा दोहा सही है,,,,
अपना तो तुक्का फिट ,,,,,
Vivek का कहना है कि -
http://vivj2000.blogspot.com/

nice analysis
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
आचार्य जी प्रणाम,
बोलूंगी तो सब बोलेंगे बोलती है.....लेकिन बोलना तो पड़ेगा ही, है ना?
आपने कहा है कि संकोच ना करुँ तो ठीक है फिर से आ गयी हूँ हिम्मत करके. लेकिन अपना हिसाब dodgy ही रहेगा मनु जी की तरह जो आज खूब फुदक रहे हैं. समझ रहे हैं कि उनका तुक्का फिट हो गया है. आप कितना tolerate करते हैं हम सबको और फिर कितने धैर्य से हम सबको समझाते हैं, की हुई भूलों को सुधारते हैं, यह सब हमें अनदेखा नहीं करना चाहिये. आपके उत्साह का 'सलिल' प्रवाह अत्यंत प्रशंशनीय है. इसके बारे में जितना कहो कम है.
आपने मेरे भी दोहों को देखा, सुधारा, कभी सराहा भी और उनकी कमियों को भी बताकर प्रेरणा देने का प्रयास किया बिना डांटे-फटकारे उसके लिए आभारी हूँ. आज यह कुछ दोहे आपकी सेवा में लायी हूँ. इन्हें चाहें आप या चाहें तो मनु जी बतायें कि किस category में रखा जाये. या नीलम जी, अजित जी, पूजा जी और तपन जी भी सुलझाने की कोशिश करें तो और भी अच्छा होगा.

चुप बैठी कब से यहाँ, चित्त यहाँ न लागे
पिंजरे के पंछी सा, मन उड़न को भागे.

अब एक कुंडलिनी:

खुद का लिखा जो समझे, जीत सके मैदान
जो बस उलझा ही रहे, खिंचते उसके कान.
खिंचते उसके कान, फुदकता रहता फिर भी
नक़ल करे कक्षा में, ताकता इधर-उधर भी
पूछ ले अब शन्नो, जो भी सकें राह दिखा
समझ ढंग से यहाँ, तू अपने खुद का लिखा.

कुछ और आ गया दिमाग में तो अब मैं क्या करुँ? चलो बोल देती हूँ:

फुदक रहा कोई यहाँ, तुक्के से दी मात
मेहनत रोज़ जो करें, पीस रहे वह दांत.
अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -
आचार्य जी
आपने लिखा कि सर्प में 48 लघु हैं तब दोहे के अन्‍त में गुरु लघु कैसे होगा?
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
Help! गुरु जी,
दोहे के दूसरे व चौथे चरण की यति guru होने से गलती हो गई है. स्वयं-सुधार का एक सफल या असफल प्रयत्न कर रही हूँ:

चुप बैठी कब से यहाँ, चित्त रहा ना लाग
पिंजरे के पंछी सा, मन कहता है भाग.
अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -
आचार्यजी ,

आपके बताये दोहा के नियमों को दोहरा , कुछ दोहे लिखें हैं | यदि आपको समय मिले तो इन्हें जांच दीजिये |

नियमों का पालन -
१. १३-११ मात्रायों के पद
२. सम पदों के अंत में गुरु - लघु |
३. गण का मैं अनुमान नहीं लगा पा रहा हूँ ?
४. तुकांत शब्दों से सम पदों का अंत , लयात्मक रखने की कोशिश |
५. पदों में गहरे अर्थ रखने का प्रयास |

दोहे के पद -

रूप - रंग न धन गौरव , आये अंत में काम |

२१ २१ १ ११ २११ = १३, २२ २१ २ २१ = ११

है चरित्र ही स्थायी धन , कर नव चरित्र निर्माण ||

२ १११ २ २२ ११ = १३, ११ ११ १११ 121 = ११


काम मित्रों शत्रु बलवान , करे सभी का नाश |

२१ 1२ ११ ११२१ = १३, १२ १२ २ २१ = ११

रहे सतर्क इससे हम , शमन से हो प्रयास ||

१२ ११२ ११२ ११ =13 १११ २ २ १२१ =11

मृत्यु समय जो करता , मन में हरी का ध्यान |

२२ १११ २ ११२ , ११ २ १२ २ २१ =११

वह जीवन सफल रहे , जाये सीधे धाम ||

११ २१२ १११ 1२ = १३, २२ २२ २१ =११

सब कला - विद्या में नीति , जब जाये है जोड़ |

११ १२ १२ २ २१ =१३, ११ २२ २ २१ =११


पूर्ण हो जाये हर गुण , स्वार्थ का यही तोड़ ||

२१ २ २२ ११ ११ =१३ २१ २ १२ २१ = ११


आपका,
अवनीश तिवारी
divya naramada का कहना है कि -
दोहा की ध्वज वाहिका अजित जी! आपके लिए विशेष दायित्व का कार्य... प्रिय अवनीश जी की इस कोशिश को सुधारना का तरीका बताइए तथा उस तरीके से इन्हें दोहे के सही रंग में लाइए. मैं जानता हूँ कि आप यह कर सकेंगी. मेरी अनुपस्थिति में कक्षा आपके हवाले... मनु जी! पूर्व सूचना... अगली बार दोहों में सुधार कार्य में आपकी सहायता ली जायेगी...तैयार रहें.
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
Very sensible,indeed!

अजित जी ही ठीक लगें, इस नेकी के हेतु
बाकी के वानर यहाँ, बाँध न सकें सेतु.

शुभ-रात्रि!
Shanno Aggarwal का कहना है कि -
Very sensible,indeed!

With slight correction:

अजित जी ही ठीक लगें, इस नेकी के हेतु
बाकी के वानर यहाँ, बाँध सकें न सेतु.

शुभ-रात्रि!
अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -
अविनाश जी
मुझे आचार्य जी ने गुरूतर कार्य दे दिया है अभी तो मैं स्‍वयं ही विद्यार्थी हूँ, लेकिन फिर भी प्रयास करती हूँ। आप द्वारा रचित दोह‍ों की मात्राएं इस प्रकार होनी चाहिए, यदि कहीं गल्‍ती हो तो आचार्य जी सुधारेंगे।
रूप - रंग न धन गौरव , आये अंत में काम |
21 11 1 11 211 = 12, 22 21 2 21=12


है चरित्र ही स्थायी धन , कर नव चरित्र निर्माण ||

२ १११ २ २२ ११ = १३, ११ ११ १११ 221 = 12


काम मित्रों शत्रु बलवान , करे सभी का नाश |

२१ 1२ ११ ११२१ = १३, १२ १२ २ २१ = ११

रहे सतर्क इससे हम , शमन से हो प्रयास ||

१२ ११1 ११२ ११ =12 १११ २ २ १२१ =11

मृत्यु समय जो करता , मन में हरी का ध्यान |

1२ १११ २ ११२ , ११ २ १२ २ २१ =११

वह जीवन सफल रहे , जाये सीधे धाम ||

११ २१२ १११ 1२ = १३, २२ २२ २१ =११

सब कला - विद्या में नीति , जब जाये है जोड़ |

११ १२ १२ २ २१ =१३, ११ २२ २ २१ =११


पूर्ण हो जाये हर गुण , स्वार्थ का यही तोड़ ||

२१ २ २२ ११ ११ =१३ २१ २ १२ २१ = ११

साथ ही दो‍हे के द्वितीय और चतुर्थ चरण का अन्तिम अक्षर समान होना चाहिए। पहले दोहे में काम/निर्माण, दूसरे में नाश/प्रयास, तीसरे में ध्‍यान/धाम सही नहीं है जबकि चौथे में जोड़/तोड़ सही है। यदि मात्राएं सही होंगी तो स्‍वत: ही लय भी बनेगी। इसी के साथ दोहे के प्रथम शब्‍द में जगण अर्थात 121 मात्राओं का प्रयोग वर्जित है। आपके लिखने के क्रम से अर्थ में भी बदलाव दिखायी देता है। जैसे आए अन्‍त में काम। फिर भी आपका प्रयास और आपके विचार स्‍वागत योग्‍य हैं, हम भी ऐसे ही सीख रहे हैं, आप भी शीघ्र ही समाधान पा जाएंगे।
divya naramada का कहना है कि -
अजित जी!
आपने बहुत अच्छा कार्य किया है, कसौटी पर खरी उतरीं हैं, आपको बधाई.
संशोधन के कार्य में संकोच न करें. अवनीश जी के दोहों में अभी भी लय-दोष है. आप चाहें तो कुछ शब्द बदल सकती हैं,
अगली गोष्ठी में अब तक के पाठों का संक्षिप्त सार दोहराने की दृष्टि से प्रस्तुत कीजिये ताकि विलंब से आनेवाले छात्र अब तक की पढ़ाई से परिचत हो ले..
अजित गुप्ता का कोना का कहना है कि -
अवनीश जी
आचार्य जी ने मुझे आपके दोहों को सही करने का गृहकार्य दिया है। आपके तीन दोहों को आपकी भावना के अनुरूप लिखने का प्रयास कर रही हूँ, आशा है आचार्य जी इन्‍हें पास कर देंगे।
1 रूप रंग न धन दौलत, आये अंत न काम
बस चरित्र हॅ स्‍थायी धन, बन जाएगा राम।
2 मन में हरि का ध्‍यान धरे, मरण समय जो लोग
जीवन उनका सफल है, स्‍वर्ग लोक का जोग।
3 कला औ विद्या में नीति, का लगता है जोड़
तब सारे गुण पूर्ण हो, यही स्‍वार्थ का तोड़।

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