कुल पेज दृश्य

शुक्रवार, 17 जनवरी 2020

मुक्तिका

मुक्तिका
*
नाव ले गया माँग, बोल 'पतवार तुम्हें दे जाऊँगा'
यह न बताया सलिल बिना नौका कैसे खे पाऊँगा?

कहा 'अनुज' हूँ, 'अग्रज' जैसे आँख दिखाकर चला गया
कोई बताये क्या उस पर आशीष लुटाने आऊँगा?

दर्पण दरकाया संबंधों का, अनुबंधों ने बरबस
प्रतिबंधों के तटबंधों को साथ नहीं ले पाऊँ

आ 'समीप' झट 'दूर' हुआ क्यों? बेदर्दी बतलाये तो
यादों के डैनों नीचे पीड़ा चूजे जन्माऊँगा

अंबर का विस्तार न मेरी लघुता को सकता है नाप
बिंदु सिंधु में समा, गीत पल-पल लहरों के गाऊँगा

बुद्धि विनीतामय विवेक ने गर्व त्याग हो मौन कहा
बिन अवधेश न मैं मिथलेश सिया को अवध पठाऊँगा

कहो मुक्तिका सजल तेवरी ग़ज़ल गीतिका या अनुगीत
शब्द-शब्द रस भाव बिम्ब लय सलिला में नहलाऊँगा
***
संजीव
१७-१-२०२०
७९९९५५९६१८



कोई टिप्पणी नहीं: