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रविवार, 19 जनवरी 2020

दोहा गाथा सनातन ३

Wednesday, December 31, 2008


दोहा गाथा सनातन : 3- दोहा छंद अनूप


नाना भाषा-बोलियाँ, नाना भूषा-रूप.
पंचतत्वमय व्याप्त है, दोहा छंद अनूप.


"भाषा" मानव का अप्रतिम आविष्कार है। वैदिक काल से उद्गम होने वाली भाषा शिरोमणि संस्कृत, उत्तरीय कालों से गुज़रती हुई, सदियों पश्चात् आज तक पल्लवित-पुष्पित हो रही है। भाषा विचारों और भावनाओं को शब्दों में साकारित करती है। संस्कृति वह बल है जो हमें एकसूत्रता में पिरोती है। भारतीय संस्कृति की नींव "संस्कृत" और उसकी उत्तराधिकारी हिन्दी ही है। "एकता" कृति में चरितार्थ होती है। कृति की नींव विचारों में होती है। विचारों का आकलन भाषा के बिना संभव नहीं. भाषा इतनी समृद्ध होनी चाहिए कि गूढ, अमूर्त विचारों और संकल्पनाओं को सहजता से व्यक्त कर सकें. जितने स्पष्ट विचार, उतनी सम्यक् कृति; और समाज में आचार-विचार की एकरुपता याने "एकता"।

भाषा भाव विचार को, करे शब्द से व्यक्त.
उर तक उर की चेतना, पहुँचे हो अभिव्यक्त.


उच्चार :


ध्वनि-तरंग आघात पर, आधारित उच्चार.
मन से मन तक पहुँचता, बनकर रस आगार.


ध्वनि विज्ञान सम्मत् शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र पर आधारित व्याकरण नियमों ने संस्कृत और हिन्दी को शब्द-उच्चार से उपजी ध्वनि-तरंगों के आघात से मानस पर व्यापक प्रभाव करने में सक्षम बनाया है। मानव चेतना को जागृत करने के लिए रचे गए काव्य में शब्दाक्षरों का सम्यक् विधान तथा शुद्ध उच्चारण अपरिहार्य है। सामूहिक संवाद का सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सर्व सुलभ माध्यम भाषा में स्वर-व्यंजन के संयोग से अक्षर तथा अक्षरों के संयोजन से शब्द की रचना होती है। मुख में ५ स्थानों (कंठ, तालू, मूर्धा, दंत तथा अधर) में से प्रत्येक से ५-५ व्यंजन उच्चारित किए जाते हैं।

सुप्त चेतना को करे, जागृत अक्षर नाद.
सही शब्द उच्चार से, वक्ता पाता दाद.


उच्चारण स्थान
वर्ग
कठोर(अघोष) व्यंजन
मृदु(घोष) व्यंजन




अनुनासिक
कंठ
क वर्ग
क्
ख्
ग्
घ्
ङ्
तालू
च वर्ग
च्
छ्
ज्
झ्
ञ्
मूर्धा
ट वर्ग
ट्
ठ्
ड्
ढ्
ण्
दंत
त वर्ग
त्
थ्
द्
ध्
न्
अधर
प वर्ग
प्
फ्
ब्
भ्
म्
विशिष्ट व्यंजन

ष्, श्, स्,
ह्य्, र्ल्व्


कुल १४ स्वरों में से ५ शुद्ध स्वर अ, इ, उ, ऋ तथा ऌ हैं. शेष ९ स्वर हैं आ, ई, ऊ, ऋ, ॡ, ए, ऐ, ओ तथा औ। स्वर उसे कहते हैं जो एक ही आवाज में देर तक बोला जा सके। मुख के अन्दर ५ स्थानों (कंठ, तालू, मूर्धा, दांत, होंठ) से जिन २५ वर्णों का उच्चारण किया जाता है उन्हें व्यंजन कहते हैं। किसी एक वर्ग में सीमित न रहने वाले ८ व्यंजन स्वरजन्य विशिष्ट व्यंजन हैं।

विशिष्ट (अन्तस्थ) स्वर व्यंजन :

य् तालव्य, र् मूर्धन्य, ल् दंतव्य तथा व् ओष्ठव्य हैं। ऊष्म व्यंजन- श् तालव्य, ष् मूर्धन्य, स् दंत्वय तथा ह् कंठव्य हैं।

स्वराश्रित व्यंजन: अनुस्वार ( ं ), अनुनासिक (चन्द्र बिंदी ँ) तथा विसर्ग (:) हैं।

संयुक्त वर्ण : विविध व्यंजनों के संयोग से बने संयुक्त वर्ण श्र, क्ष, त्र, ज्ञ, क्त आदि का स्वतंत्र अस्तित्व मान्य नहीं है।

मात्रा :
उच्चारण की न्यूनाधिकता अर्थात किस अक्षर पर कितना कम या अधिक भार ( जोर, वज्न) देना है अथवा किसका उच्चारण कितने कम या अधिक समय तक करना है ज्ञात हो तो लिखते समय सही शब्द का चयन कर दोहा या अन्य काव्य रचना के शिल्प को संवारा और भाव को निखारा जा सकता है। गीति रचना के वाचन या पठन के समय शब्द सही वजन का न हो तो वाचक या गायक को शब्द या तो जल्दी-जल्दी लपेटकर पढ़ना होता है या खींचकर लंबा करना होता है, किंतु जानकार के सामने रचनाकार की विपन्नता, उसके शब्द भंडार की कमी, शब्द ज्ञान की दीनता स्पष्ट हो जाती है. अतः, दोहा ही नहीं किसी भी गीति रचना के सृजन के पूर्व मात्राओं के प्रकार व गणना-विधि पर अधिकार कर लेना जरूरी है।

उच्चारण नियम :

उच्चारण हो शुद्ध तो, बढ़ता काव्य-प्रभाव.
अर्थ-अनर्थ न हो सके, सुनिए लेकर चाव.

शब्दाक्षर के बोलने, में लगता जो वक्त.
वह मात्रा जाने नहीं, रचनाकार अशक्त.

हृस्व, दीर्घ, प्लुत तीन हैं, मात्राएँ लो जान.
भार एक, दो, तीन लो, इनका क्रमशः मान.


१. हृस्व (लघु) स्वर : कम भार, मात्रा १ - अ, इ, उ, ऋ तथा चन्द्र बिन्दु वाले स्वर।

२. दीर्घ (गुरु) स्वर : अधिक भार, मात्रा २ - आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं।

३. बिन्दुयुक्त स्वर तथा अनुस्वारयुक्त या विसर्ग युक्त वर्ण भी गुरु होता है। यथा - नंदन, दु:ख आदि.

४. संयुक्त वर्ण के पूर्व का लघु वर्ण दीर्घ तथा संयुक्त वर्ण लघु होता है।

५. प्लुत वर्ण : अति दीर्घ उच्चार, मात्रा ३ - ॐ, ग्वं आदि। वर्तमान हिन्दी में अप्रचलित।

६. पद्य रचनाओं में छंदों के पाद का अन्तिम हृस्व स्वर आवश्यकतानुसार गुरु माना जा सकता है।

७. शब्द के अंत में हलंतयुक्त अक्षर की एक मात्रा होगी।

पूर्ववत् = पूर् २ + व् १ + व १ + त १ = ५

ग्रीष्मः = ग्रीष् 3 + म: २ +५

कृष्ण: = कृष् २ + ण: २ = ४

हृदय = १ + १ +२ = ४

अनुनासिक एवं अनुस्वार उच्चार :

उक्त प्रत्येक वर्ग के अन्तिम वर्ण (ङ्, ञ्, ण्, न्, म्) का उच्चारण नासिका से होने का कारण ये 'अनुनासिक' कहलाते हैं।

१. अनुस्वार का उच्चारण उसके पश्चातवर्ती वर्ण (बाद वाले वर्ण) पर आधारित होता है। अनुस्वार के बाद का वर्ण जिस वर्ग का हो, अनुस्वार का उच्चारण उस वर्ग का अनुनासिक होगा। यथा-

१. अनुस्वार के बाद क वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चार ङ् होगा।

क + ङ् + कड़ = कंकड़,

श + ङ् + ख = शंख,

ग + ङ् + गा = गंगा,

ल + ङ् + घ् + य = लंघ्य

२. अनुस्वार के बाद च वर्ग का व्यंजन हो तो, अनुस्वार का उच्चार ञ् होगा.

प + ञ् + च = पञ्च = पंच

वा + ञ् + छ + नी + य = वांछनीय

म + ञ् + जु = मंजु

सा + ञ् + झ = सांझ

३. अनुस्वार के बाद ट वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चारण ण् होता है.

घ + ण् + टा = घंटा

क + ण् + ठ = कंठ

ड + ण् + डा = डंडा

४. अनुस्वार के बाद 'त' वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चारण 'न्' होता है.

शा + न् + त = शांत

प + न् + थ = पंथ

न + न् + द = नंद

स्क + न् + द = स्कंद

५ अनुस्वार के बाद 'प' वर्ग का व्यंजन हो तो अनुस्वार का उच्चार 'म्' होगा.

च + म्+ पा = चंपा

गु + म् + फि + त = गुंफित

ल + म् + बा = लंबा

कु + म् + भ = कुंभ

आज का पाठ कुछ कठिन किंतु अति महत्वपूर्ण है। अगले पाठ में विशिष्ट व्यंजन के उच्चार नियम, पाद, चरण, गति, यति की चर्चा करेंगे।

आज का गृह कार्य :
प्रारम्भिक ४ पाठ केवल दोहा ही नहीं अपितु गीत, गजल, मुक्तक यहाँ तक की गद्य लेखन में भी उपयोगी हैं। हिंद-युग्म में गजल लेखन के पाठों में भी मात्रा और उच्चार की चर्चा चल रही है। पाठक दोनों का अध्ययन करें तो उन्हें हिन्दी एवं उर्दू के भाषिक नियमों में समानता व अन्तर स्पष्ट होगा।
आज का गृह कार्य यह है कि आप अपनी पसंद का एक दोहा चुनें और उसकी मात्राओं की गिनती कर भेजें। अगली गोष्ठी में हम आपके द्वारा भेजे गए दोहों के मात्रा सम्बन्धी पक्ष की चर्चा कर कुछ सीखेंगे।

गौ भाषा को दुह रहा, दोहा कर पय-पान.
सही-ग़लत की 'सलिल' कर, सही-सही पहचान.

29 कविताप्रेमियों का कहना है :

सुनीता शानू का कहना है कि -
आपको व पूरी हिन्द-युग्म टीम को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऐं.
manu का कहना है कि -
आचार्य को प्रणाम ..........
नव वर्ष की शुभकामनाएं .......
गृह कार्य तो शायद अधिक ना कहूं पर पाठ बहुत बड़ा है..........
प्रिंट निकलवा कर जेब में रख लिया है........बच्चे को कुछ समझ नहीं आया तो फोन भी खडका सकता है............
नव वर्ष में नव छात्र को झेलने के लिए तैयार रहें....
दुबारा प्रणाम..............
Smart Indian का कहना है कि -
गज़ब की जानकारी दे रहे हैं आचार्य जी आप, धन्यवाद!
आपको, परिजनों और मित्रों को भी नववर्ष की मंगल-कामनाएं!
तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -
मात्राओं की गिनती.. ह्म्म्म.. कोशिश करता हूँ..
दोबारा पढ़ने पढ़ेंगे पिछले २ पोस्ट...

नव वर्ष की शुभकामनायें
विश्व दीपक का कहना है कि -
’सलिल’ जी आपकी कक्षा की प्रतीक्षा रहती है। आप बहुत हीं बेहतरीन तरीके से दोहा के सूक्ष्म-अतिसूक्ष्म अंगों की जानकारी दे रहे हैं। इसके लिए तहे-दिल से शुक्रिया।

ग्रीष्मः = ग्रीष् 3 + म: २ +५

कृष्ण: = कृष् २ + ण: २ = ४

हृदय = १ + १ +२ = ४

आपने उपरोक्त उदाहरणों में मात्राओं की जो गिनती दिखाई एवं सिखाई है,वो मुझे स्पष्ट नहीं हुआ।
मसलन.. "ग्रीष्" में ३ तो "कृष्" में २ क्यों? और साथ-हीं-साथ "य" में २ मात्राएँ कहाँ से आईं।

कृप्या...इस पर प्रकाश डालेंगे।

-विश्व दीपक

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