नवगीत
*
रहे तपते गर्मियों में
बारिशों में टपकते थे
सर्दियों में हुए ठन्डे
*
रहे तपते गर्मियों में
बारिशों में टपकते थे
सर्दियों में हुए ठन्डे
रौशनी गायब हवा
आती नहीं है
घोंसलें है कॉन्क्रीटी
घुट रही दम
हवा तक दूभर हुई है
सोम से रवि तक न अंतर
एक से सब डे
आती नहीं है
घोंसलें है कॉन्क्रीटी
घुट रही दम
हवा तक दूभर हुई है
सोम से रवि तक न अंतर
एक से सब डे
श्वास नदिया सूखती
है नहीं पानी
आस घाटों पर न मेले
नहीं हलचल
किंतु हटने को नहीं
तैयार तिल भर भी यहाँ से
स्वार्थ के पंडे
है नहीं पानी
आस घाटों पर न मेले
नहीं हलचल
किंतु हटने को नहीं
तैयार तिल भर भी यहाँ से
स्वार्थ के पंडे
अस्पताली तीर्थ पर है
जमा जमघट
पीडितों का, लुटेरों का
रात-दिन नित
रोग पहचाने बिना
परीक्षण-औषधि अनेकों
डॉक्टरी फंडे
***
संजीव
२०-१-२०२०
७९९९५५९६१८
जमा जमघट
पीडितों का, लुटेरों का
रात-दिन नित
रोग पहचाने बिना
परीक्षण-औषधि अनेकों
डॉक्टरी फंडे
***
संजीव
२०-१-२०२०
७९९९५५९६१८
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