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मंगलवार, 28 जनवरी 2020

नवगीत

नवगीत
*
बदल गए रे
दिन घूरे के

कैक्टस
दरवाज़े पर शोभित
तुलसी चौरा
घर से बाहर
पिज्जा
गटक रहे कान्हा जू
माखन से
दूरी जग जाहिर
गौरैया
कौए न बैठते
दुर्दिन पनघट-
कंगूरे के

मत पाने 
चाहे जो बोलो
मत पाकर 
निज पत्ते खोलो
सरकारी 
संपत्ति बेच दो
जनगण-मन में 
नफरत घोलो 
लड़ा-भिड़ा 
खेती बिकवा दो 
तार तोड़ दो
तंबूरे के
***
संजीव 

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