कुल पेज दृश्य

शनिवार, 25 जनवरी 2020

नवगीत

एक रचना
संजीव
.
छोडो हाहाकार मियाँ!
. दुनिया अपनी राह चलेगी खुदको खुद ही रोज छ्लेगी साया बनकर साथ चलेगी छुरा पीठ में मार हँसेगी आँख करो दो-चार मियाँ! . आगे आकर प्यार करेगी फिर पीछे तकरार करेगी कहे मिलन बिन झुलस मरेगी जीत भरोसा हँसे-ठगेगी करो न फिर भी रार मियाँ! . मंदिर मस्जिद कह लड़ लेगी
गिरजे को पल में तज देगी लज्जा हया शरम बेचेगी इंसां को बेघर कर देगी पोंछो आँसू-धार मियाँ!

आंदोलन-धरने की मारी
भूखा पेट बहुत लाचारी
राजनीति धोखा-अय्यारी
पत्रकारिता है बटमारी
कहीं नहीं है प्यार मियाँ

इसे चाहिए खूब दहेज़
उसे फैमिली से परहेज
जेल रहे अपनों को भेज
तीन तलाक़ सजाये सेज
दुनिया है बेज़ार मियाँ
***

कोई टिप्पणी नहीं: