एक रचना
संजीव
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छोडो हाहाकार मियाँ!
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दुनिया अपनी राह चलेगी
खुदको खुद ही रोज छ्लेगी
साया बनकर साथ चलेगी
छुरा पीठ में मार हँसेगी
आँख करो दो-चार मियाँ!
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आगे आकर प्यार करेगी
फिर पीछे तकरार करेगी
कहे मिलन बिन झुलस मरेगी
जीत भरोसा हँसे-ठगेगी
करो न फिर भी रार मियाँ!
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मंदिर मस्जिद कह लड़ लेगी
गिरजे को पल में तज देगी
लज्जा हया शरम बेचेगी
इंसां को बेघर कर देगी
पोंछो आँसू-धार मियाँ!
आंदोलन-धरने की मारी
भूखा पेट बहुत लाचारी
राजनीति धोखा-अय्यारी
पत्रकारिता है बटमारी
कहीं नहीं है प्यार मियाँ
इसे चाहिए खूब दहेज़
उसे फैमिली से परहेज
जेल रहे अपनों को भेज
तीन तलाक़ सजाये सेज
दुनिया है बेज़ार मियाँ
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