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शुक्रवार, 10 जनवरी 2020

दोहा सलिला

दोहा सलिला
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मन मीरां तन राधिका,तरें जपें घनश्याम।
पूछ रहे घनश्याम मैं जपूँ कौन सा नाम?
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जिसको प्रिय तम हो गया, उसे बचाए राम।
लक्ष्मी-वाहन से सखे!, बने न कोई काम।।
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प्रिय तम हो तो अमावस में मत बालो दीप।
काला कम्बल ओढ़कर, काजल नैना लीप।।
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प्रियतम बिन कैसे रहे, मन में कहें हुलास?
विवश अधर मुस्का रहे, नैना मगर उदास।।
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चाह दे रही आह का, अनचाहा उपहार।
वाह न कहते बन रहा, दाह रहा आभार।।
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बिछुड़े आनंदकंद तो, छंद आ रहा याद।
बेचारा कब से करे, मत भूलो फरियाद।।
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निठुर द्रोण-मूरत बने, क्यों स्नेहिल संजीव।
सलिल सलिल सा तरल हो, मत करिए निर्जीव।।

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