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मंगलवार, 21 जनवरी 2020

छंद - बहर दोउ एक हैं विधाता मात्रिक छंद

छंद - बहर दोउ एक हैं
मुक्तिका 
*
तुझे भी क्या कभी गुजरे ज़माने याद आएँगे
मापनी - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
गणसूत्र - य र त म य ग
मात्रभार - २८, यौगिक जातीय, विधाता मात्रिक  छंद
वर्णभार - १६, अष्टादि: जातीय छंद
रुक्न - मुफाईलुं  x  ४ 
टीप : 'गुजरे' को 'बीते' करने पर १२२२ के स्थान पर १२११२ करने से बचा जा सकता है।
गुरु को दो लघु करने की छूट लेने पर काव्य रचना आसान हो जाती है पर पिंगल शास्त्र
के अनुसार ऐसा करने पर उन पंक्तियों में छंद भिन्न हो जाता है।
  
*
तुझे भी क्या कभी गुजरे ज़माने याद आएँगे
मिलें तन्हाईयाँ सपने सुहाने याद आएँगे

करोगे गुफ्तगू खुद से कभी तो जान लो जानां 
लिखोगे मुक्तिका  दोहे  तराने याद आएँगे

बहाओगे पसीना, बादलों में देखना हमको
हँसेंगी खेत में फ़स्लें बहाने याद आएँगे

इसे देखो दिखा उसको न वो दिन अब रहे बाकी
नए साधो न तुम बीते निशाने याद आएँगे

न तुमसे दूर हैं, तुम भी न हमसे दूर हो यारां
हमें तुम याद आओगे, तुम्हें हम याद आएँगे
***
तुझे भी क्या कभी बीते ज़माने याद आएँगे
नहीं जो साथ वो भूले ज़माने याद आएँगे

हमेशा प्यार ही पाओ नहीं होता कभी ऐसा
न चाहो तो नहीं झूठे ज़माने याद आएँगे

नदी ने प्यास से पूछा कहाँ क्या दाम वो देगी?
लुटा दी तृप्ति पाने आ  जमाने याद आएँगे

मिलेगा साथ साथी का न सच्चा आप खोजोगे
न चाहोगे जिसे वो ही जमाने याद आएँगे

न भूली हो, न भूलोगी, कहो या ना कहो प्यारी
रहे संजीव जो वो ही जमाने याद आएँगे
***
संजीव
२१.१.२०१०
७९९९५५९६१८

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