लघुकथा प्रश्नोत्तरी, laghukatha prashnottaree - आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
प्र.१. लघुकथा को एक गम्भीर विधा कहा गया है। इन दिनों जिस तरह से ये लिखी जा रही हैं उससे इस विधा को नुकसान नहीं होगा?
साहित्य सृजन की हर विधा अपने आपमें गंभीर होती है। यहाँ तक की हास्य कवि हास्य रचना भी पूरी गंभीरता से लिखता है। किसी विधा को हानि लिखने से नहीं न लिखने से पहुँचती है। यह शोर कुछ मठाधीश मचाते हैं जब वे देखते हैं की उनके बताये मार्ग को छोड़कर नए लघुकथाकार अपना अलग मार्ग बना रहे हैं।
प्र २. जिस तरह से पाठक एक लघुकथा को देखता है पढ़ता है उसको समझने की उसकी अपनी सोच होती है वह अपने नज़रिये से उसकी समीक्षा करता है। फिर कैसे समझा जाये कि लघुकथा कैसी हुई है?
पाठक ही अंतिम परीक्षक होता है जिसके लिए रचना की जाती है। लेखक की सोच की कैद में पाठक को बंदी न तो बनाया जा सकता है, न बनाया जाना चाहिए। लघुकथा कैसी हुई है यह पाठकीय प्रतिक्रिया से ही जाना जा सकता है। पाठकीय प्रतिक्रिया तात्कालिक होती है, समीक्षकीय प्रतिक्रिया सुविचारित होती हैं। ये दोनों एक दूसरे की पूरक होती हैं।
प्र३. हर विधा गम्भीर होती है फिर लघुकथा के लिए ही ये शब्द क्यों इस्तेमाल किया जाता है?
जो लघुकथाकार हीनता के भाव से ग्रस्त हैं वे खुद की दृष्टी में खुद को महत्वपूर्ण दिखा ने के लिए ऐसे बेमानी शब्दों का प्रयोग करते हैं।
प्र४. जिस गम्भीरता से लघुकथा को लिया जाता है क्या उस गम्भीरता को नवोदित समझ पाये है?
लघुकथा को हर पाठक अपनी दृष्टि से समझे यही स्वाभाविक और आवश्यक है। हर बाप बेटे को बुद्धिहीन मंटा है और हर बीटा बाप से आगे जाता है। ये दोनों सनातन सच हैं।
प्र५. लघुकथा पर जो कार्य हो रहा है क्या नवोदित सही दिशा में जा रहा है?
कोइ पीढ़ी अपनी अगली पीढ़ी को समझ, रोक या प्रोत्साहित नहीं करती। नयी पीढ़ी की भिन्न दिशा को गलत दिशा कहना 'फतवेबाजी की तरह बेमानी है। नयी पीढ़ी की नई दिशा को पुरानी पीढ़ी जब नहीं समझती तो काल-बाह्य होने लगती है।
प्र ६. हर विधा भाषा और शैली से उभर कर आ रही है। इन दिनों जिस तरह से बोल्ड विषयों पर उसी तरह की भाषा का उपयोग हो रहा है वह किस हद्द तक लघुकथा के लिये हितकारी होगा।
बोल्ड विषयों पर उसी तरह की भाषा का उपयोग हितकारी न होगा यह शंका किस आधार पर? 'विश्वासं फल दायकं'।
प्र ७. लोगों की धारणा लघुकथा को लेकर अलग अलग है और तरह तरह की लघुकथाएँ नज़र आती है क्या वे सभी सच में भी लघुकथा हैं भी?
लघुकथा है या नहीं यह तय करने का अधिकार रचनाकार, पाठक और या समीक्षक का है। इन तीनों को छोड़कर खेमेबाज अपने आप को स्थापित करने के लिए व्यर्थ के प्रश्न उठाते रहते हैं।
प्र८. लघुकथा का मारक क्या होना चाहिए?
मारक? यह क्या होता है? मानक की बात करें तो हर रचनात्मक विधा के मानक सतत परिवर्तनशील होते हैं तभी तो विधा का विकास होता है। मानक पत्थर की तरह जड़ हो तो विधा पिजरे के पक्षी की तरह कल्पना के आकाश में उड़ ही नहीं सकेगी।
प्र ९. लघुकथा को पढ़ते वक़्त एक पाठक को किन बातो पर ध्यान देना चाहिए?
पाठक को यह बताने की आवश्यकता ही क्या और क्यों है? पाठक के विवेक पर भरोषा कीजिए। रचनाकार या खेमेबाज पाठक को बताकर कहें कि तुम्हें अमुक लघुकथा पर ऐसी प्रतिक्रिया देनी है तो उसका कोई मूल्य होगा क्या?
प्र १०. हर विधा को लिखने का एक तरीका होता है। लघुकथा में ऐसा क्यों नही नज़र आ रहा?
किसी विधा को लिखने का एक तरीका कभी हो ही नहीं सकता। रचना कर्म किसी कारखाने में उत्पादित एक तरह का उत्पाद नहीं है। एक ही परिस्थिति या घटनाक्रम में हर रचनाकार की प्रतिक्रिया, सोचने का तरीका और लिखने की शैली भिन्न होगी, तभी तो रचना मौलिक होगी अन्यथा हर र अचना एक-दूसरे की नकल होगी।
प्र ११. कहा जाता है कि साहित्य लोगों को जागृत करता है। लघुकथा किस हद तक कामयाब हो पायी है?
जब साहित्य लेखन नहीं होता था तब क्या लोग जाग्रत नहीं थे? यदि यह सत्य होता तो आज तक वैसी ही दशा में पड़े होते। साहित्य का पठान-पाठन करना ही लोगों के जाग्रत होने का चिन्ह है। साहित्य जाग्रत लोगों को सोचने की दृष्टि प्रदान करता है।
प्र १२. आत्मकथ्य और लघुकथा में इस शैली को कहने में क्या कोई फर्क होना चाहिए? गर हाँ तो क्या?
लघु कथा अनेक शैलियों में कही जा सकती है। विवरणात्मक, विवेचनात्मक, उपदेशात्मक, बोधात्मक, आलोचनात्मक, संस्मरणात्मक, संवादात्मक, आत्मकथ्यात्मक आदि। कुछ कठमुल्ले इनमें से कुछ को लघुकथा न मानें तो भी अंतर नहीं पड़ता। लिखनेवाले इन सहेलियों में लिखते, पाठक पढ़ते, समीक्षक स्वीकारते या नकारते रहेंगे।
प्र १३. जिन शैली में लघुकथा कम कही गयी है उसकी क्या कोई खास वजह रही है?
नहीं। सृजन अनेक स्थानों पर अनेक लेखकों द्वारा अनेक विषयों पर की जानेवाली प्रतिक्रिया है। शैली हर रचनाकार की अपनी होती है, बहुधा हर रचनाकार विषय के अनुरूप शैली चुनता है। हर एक की वजह अलग होती है।
प्र१४. लघुकथा की प्रगति को आप किस तरह से लेते है?
मैं कौन होता हूँ प्रगति या अवनति को लेने या न लेने वाला? प्रश् यह है कि लघुकथा का विकास हुआ है या नहीं हुआ है? हुआ है तो कितना और किस दिशा में तथा भावी संभावनाएँ क्या हैं?इस प्रश्नों का उत्तर लघुकथाकार, पाठक और समीक्षक तीनों की भूमिका में भिन्न-भिन्न होगा। रचनाकार के नाते लघुकथा में हो रहे पपरिवर्तनमेरे सामने खुद को बदलने की चुनौती उपस्थित करते हैं, समीक्षक के नाते मुझे उनका आकलन करने और पाठक के नाते उनसे प्रभावित होना या न होना होता है।
प्र १५. लघुकथा अब तक किन किन भाषाओँ में लिखी गई है?
लघुकथा तो लिपि का आविष्कार होने के पहले भी वाचिक रूप में कही जाती थी। विश्व की हर भाषा में लघुकथा है। नाम भिन्न हो सकता है। यह भी कि जिस भाषा में लघुकथा नहीं कही गयी वह भाषा ही मर गई।
प्र१ ६. जिस तरह से सोशल मीडिया पर लघुकथाएँ लिखी जा रही हैं क्या नवोदित को उन्हें पढ़ना चाहिए?
क्यों नहीं पढ़ना चाहिए? अवश्य पढ़ना चाहिए। जहाँ भी मिले, जो भी मिले उसे पढ़ना और समझना तथा उपयो गी को स्मरण और निरुपयोगी का विस्मरण करना चाहिए।
प्र १७. जिस तरह से लघुकथाकारों का सैलाब आया है आप उनसे कुछ कहना चाहेंगे?
कुछ कहने का औचित्य क्या है? वर्षा न हो तो सूखा पद जाता है। वर्षा हो तो पानी मैला हो जाता है, तटबंध टूटते हैं, वर्षा में कचरा बाह जाता है और निर्मल जल बचता है। लघुकथाकार खूब आएं, खूब लिखें उससे बहुत ज्यादा पढ़ें और थोड़ा लिखें।
प्र १८. लघुकथा में भी शोध कार्य हो रहे है। अब तक किन किन विषयों पर शोध हो चुके है। क्या उनकी कोई किताबें हैं?
प्र 19 लघुकथा की किताबें आसानी से उपलब्ध नही हो पाती, किताबे कहाँ से तलाशी जा सकती हैं?
लघुकथा को तलाशने के दिन लड़ गए। अब तो हर अखबार, हर पत्रिका में बरसाती मेंढक की तरह लघुकथा उपलब्ध है। जितना चाहें पढ़िए, गुनिए और लिखिए।
प्र २०. लघुकथा के विद्यार्थी को किस तरह का होना चाहिए?
वैसा ही जैसा वह है। जिसे किसी ढांचे, किसी खाके, किसी लीक में कैद न किया जा सके।
***
विश्ववाणी हिंदी संस्था, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबल्ल्पुर ४८२००१
७९९९५५९६१८/९४२५१८३२४४, salil.sanjiv@gmail.com
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें