श्री श्री रविशंकर:शिवसूत्र
प्रथम खंड: चैतन्य आत्मा
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शुभ जीवन में घट रहा, पर मन जाता भूल।
अशुभ नकारात्मक पकड़, नाहक देते तूल।।
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यही नकारात्मक अशुभ, अपना हुआ स्वभाव।
मुक्ति मिले शिवसूत्र से, शुभ का बढ़े प्रभाव।।
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शिव शुभ सुंदर सत्य से, कर सकते भव पार।
है उपाय शिव सूत्र ही, भव से तारणहार।।
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शिव कहते: चैतन्य है, आत्मा; करो तलाश।
वस्तु नहीं; वह दूर भी, नहीं; पा सको काश।।
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सकल सृष्टि जिससे बनी, आत्मा वह चैतन्य।
अपना अनुभव भी हमें, करा रहा अन-अन्य।।
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बढ़ता जब चैतन्य तब, बढ़ जाता है होश।
सोया खुद को जानकर, भी रहता बेहोश।।
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मनु सोया या जागता, दोनों में चैतन्य।
सोया जान न पा रहा, जागा जाने, धन्य।।
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संजीव, 20.5.2018
salil.sanjiv@gmail. com
दिव्य नर्मदा : हिंदी तथा अन्य भाषाओँ के मध्य साहित्यिक-सांस्कृतिक-सामाजिक संपर्क हेतु रचना सेतु A plateform for literal, social, cultural and spiritual creative works. Bridges gap between HINDI and other languages, literature and other forms of expression.
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रविवार, 20 मई 2018
श्री श्री चिंतन: शिव सूत्र
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