दोहा सलिला 
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वसुंधरा से मिल गले, बारिश होती धन्य। 
बहनापे का सुख 'सलिल', दुर्लभ दिव्य अनन्य।।
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बारिश बिटिया मायके, आई रोई डूब। 
ममता के सैलाब में, धरा जा रही डूब।। 
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बूँद पसीने की झरीं, या होती बरसात।
जहाँ गिरें जन्नत वहीं, करें रात को प्रात।।
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